चरागाह भूमि पर खेती करना अतिक्रमण है।
|समस्या-
जरौद, रायपुर, छत्तीसगढ़ से प्रेमनाथ लहरी ने पूछा है –
मेरे पिता जी, 1978-80 से घास भूमि (चरागाह) पर कास्तकारी कृषि कार्य कर जीवन यापन कर रहे हैं। उसके अलावा हमारे पास और कोई जमीन नहीं है, न दादा जी के पास थी और न ही काबिल कास्त मिला है। लेकिन पंचायत हमें हटाना चाहती है और मामला तहसीलदार के पास भेज दिया है। तहसीलदार ने हमे 3000/- जुरमाना भी किया है। अब हम क्या करें? कृपया उचित सलाह दे ।
समाधान-
किसी भी गाँव के पालतू पशु चारे के लिए इधर उधर न घूमें और फसलों को नष्ट न करें इस के लिए प्रत्येक गाँव की भूमि में चरागाह की भूमि को छोड़ा जाता है। इस भूमि को किसी भी व्यक्ति को काश्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ऐसी भूमि चरागाह के लिए ही सुरक्षित रहती है। ऐसी भूमि पर यदि कोई व्यक्ति कृषि कार्य या अन्य कोई कार्य करता है तो यह अतिक्रमण है जिस के लिए दंडित किया जा सकता है।
आप के पिताजी ने चरागाह भूमि पर खेती कर के अतिक्रमण किया है। उस भूमि से उन का कब्जा हटाए जाने का जो भी आदेश तहसीलदार ने दिया गया है वह सही है। आप के पिताजी को वह भूमि छोड़नी पड़ेगी और जुर्माना भी देना होगा। अन्यथा आप के पिताजी को कारावास के दंड से भी दंडित किया जा सकता है।
इस तरह के मामले में एक ही बचाव हो सकता है कि आप यह साबित करें कि जिस भूमि पर आप के पिताजी ने खेती की है वह चरागाह या किसी तरह की सरकारी भूमि नहीं है।
गुरूजी आपके सलाह के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद्
उक्त ज़मीन का एक ही खसरा नम्बर १४२९ के टुकड़े का पट्टा किसी और के नाम में दिया गया है और मुझे पंचायत द्वारा रोक लगाया जा रहा है सर ये कैसे संभव है की एक ही ज़मीन के टुकड़े का पट्टा उनको देकर मेरे साथ अन्याय क्यों किया जा रहा है
हुकुम जयपुर में जो सेज (SEZ ) डवलप हुआ हैं हमारे गाँव के गौचर भूमि पर हुआ हैं, क्या सरकार द्वारा ऐसा किया संभव हैं ?
हमारे गांव में गांव बसाते समय पूर्वजों ने इसी तरह सार्वजनिक चारागाह के लिए जमीन छोड़ी थी जो आज आधी से ज्यादा अतिक्रमण कर लोग बस गये|
इसमें पंचायत के विभिन्न सरपंचों का हाथ रहा, इसी गौचर भूमि से समय समय पर पंचायत ने प्रस्ताव पास कर इसे आबादी में कन्वर्ट करा रिश्वत के बदले पट्टे काट दिए|
कुछ भूमि बचाने के लिए गांव के कुछ समझदार लोगों ने सरकारी स्कुल के खेल मैदान को आवंटित करा दी पर उस भूमि पर भी कई अनुसूचित जाति के लोगों ने कब्जे कर लिए. शिक्षा विभाग में शिकायत करने के बावजूद वे कार्यवाही करने को तैयार नहीं !
गौचर भूमि में पुराने कब्जों के बाद भी पिछले दिनों सरपंच ने बारह परिवारों को बिना किसी पट्टा आदि दिये कब्ज़ा करा दिया, गांव के कुछ लड़कों ने उनकी शिकायत तहसीलदार से की जिसे पहले तो तहसीलदार आपसी व राजनैतिक रंजिस मान कार्यवाही से बचता रहा पर आखिर उसे बात समझ आई और उसनें अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिए|
अब नायाब तहसीलदार लड़कों को कहता है कि- अतिक्रमण हटाने के लिए संसाधन यथा जेसीबी, ट्रेक्टर आदि जुटाओ, अब लड़कों के पास इतने पैसे नहीं कि वे संसाधन जुटाये|
कल मैंने नायब तहसीलदार से फोन पर बात की तो वह कब्ज़ा हटाने के लिए तैयार है पर कहता है उसके पास संसाधन नहीं है और न ही उसे इसके लिए कोई बजट मिलता है उसे तो गांव व पंचायत के सहयोग से कब्जे हटाने होते है|
पंचायत सरपंच भी जिम्मेदारी उन पर डाल फ्री हुए जा रहा है क्योंकि कब्जे उसी ने करवाये थे| बल्कि कहता है कि आप खुद ही कब्जे हटादें, जबकि यदि गांव के लड़के या लोगों द्वारा कब्जे हटाने में हस्तक्षेप करना तो दूर उनके द्वारा की गयी शिकायत के बाद उन्हें डर है कि मौका पाते ही वे लोग उन्हें किसी झूंठे आरोप के तहत अनुसूचित जाति जनजाति वाले कानून के तहत मुकदमें में फंसा देंगे|
वैसे भी शिकायत करने वालों को दलित विरोधी प्रचारित कर चुप कराने की कोशिश की जा रही है, लड़कों को यह भी डर है कि मामला बढ़ते ही वोटों के चक्कर माकपा विधायक कब्जेधारियों का पक्ष लेने के लिए इसे दलित विरोधी मामला दे इसे तूल दे देगा| इससे पहले भी वह कुछ ऐसा कर चूका है ! तब तो वह एक था अब तो वे दो विधायक है| जिनमें एक दलित भी है|
शिकायत कर्ता ब्राह्मण व राजपूत जाति से होने के चलते उन पर दलित विरोधी व सामंती आरोप लगाना भी बचावकर्ताओं के लिए आसान होगा~!
यदि यही हाल रहा तो आने वाले समय में भूमिहीन पशुपालकों के पशुओं के लिए चारागाह बचना तो दूर गांव की नालियों का पानी निकालने के लिए भी भूमि नहीं बचेगी !!
रतन सिंह शेखावत का पिछला आलेख है:–.कहाँ गया आपातकाल में खोदा जयपुर के पूर्व राजघराने का खजाना ?