झूठ के पैर नहीं होते
|दिनेश ने नैनीताल, उत्तराखंड से समस्या भेजी है कि-
मेरा विवाह 10 मई 2006 को हिंदू रीति रिवाज से हुआ था। , मेरे दो पुत्रियाँ हैं, एक 7 साल की है ओर एक 5 साल की हो चुकी है। मेरी पत्नी अपने पिता के कहने पर चलती है और नवम्बर 2006 से अपने मायके में रह रही है जब कि दोनों बेटी मेरे पास है जो स्कूल में पढ़ती हैं, मेरी पत्नी ने मुझ पर सीजेएम कोर्ट में एक वकील से आवेदन प्रस्तुत करवा कर मुझ पर 498ए, 323, 504 आईपीसी का मुक़दमा दर्ज करवाया। जिस में मुझे पुलिस के दवाब में सरेंडर करना पड़ा और मैं 3 दिन हिरासत में रहा। जब कि मैं मार्च में फॅमिली कोर्ट में धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन प्रस्तुत कर चुका था। क्या मुझ को कोर्ट हिरासत में भेज सकती थी जब कि चार्ज शीट अभी प्रस्तुत नहीं हुई है? ये एक महीने पहले की बात है। क्या मेरी पत्नी मुझ से हर्जे खर्चे की अधिकारी है? क्या वो मुझ से मेरी पुत्रियों की कस्टडी ले सकती है? जब कि मैं उस को बच्चे नहीं देना चाहता। मेरी पत्नी खुद मुझ को छोड़ कर अपने मायके में अपने पिता के साथ अपनी मर्ज़ी से गई है। लेकिन इस का कोई भी सबूत मेरे पास नहीं है।
समाधान-
आप ने जो समस्या लिख कर भेजी है उस में कोई गलती है। 10 मई 2006 को आप का विवाह हुआ और पत्नी नवम्बर 2006 से मायके में रह रही है। फिर आप के सात और पाँच वर्ष की दो बेटियाँ कैसे हो गईं? यदि 2006 से आप की पत्नी मायके में है तो फिर 498-ए का मुकदमा कैसे हुआ? क्यों कि उस में तो घटना के तीन वर्ष बाद प्रसंज्ञान नहीं लिया जा सकता। ऐसा लगता है कि आप के विरुद्ध मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाई गई है। आप चाहें तो इस प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त करवाने के लिए उच्च न्यायालय में निगरानी याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। जब तक प्रथम सूचना रिपोर्ट न पढ़ी जाए और उस पर आप से बात न की जाए तब तक उस के बारे में अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। यह काम आप के स्थानीय वकील बेहतर कर सकते हैं।
मजिस्ट्रेट आप को हिरासत में भेज सकता था इस कारण ही उस ने हिरासत में रखा। जब न्यायालय को लगा कि आप को हिरासत में रखा जाना उचित नहीं है तो उस ने आप की जमानत ले ली।
झूठ के पैर नहीं होते। यदि आप के विरुद्ध मामला बनावटी और मिथ्या है तो यह न्यायालय में नहीं टिकेगा। आप को एक ही भय हो सकता था कि आप को हिरासत में न भेज दिया जाए। अब आप वहाँ हो कर आ चुके हैं इस कारण डरने का कोई कारण नहीं है। आप मुकदमे में प्रतिरक्षा करें। यदि आप के वकील ने ठीक से मामले में प्रतिरक्षा की तो मामला मिथ्या सिद्ध हो जाएगा।
आप की पत्नी जब तक विवाह विच्छेद न हो जाए और दूसरा विवाह न कर ले तब तक आप से भरण पोषण का खर्च मांग सकती है। पत्नी होने के नाते उसे यह अधिकार है आप उस के लिए तभी मना कर सकते हैं जब कि आप की पत्नी के पास आय का कोई स्पष्ट साधन हो।
यदि आप की पत्नी बच्चियों की कस्टडी के लिए आवेदन करती है तो न्यायालय इस तथ्य पर विचार करेगा कि बच्चियों की भलाई किस में है और उन का भविष्य कहाँ सही हो सकता है। आप की छोटी बेटी 5 वर्ष की हो चुकी है। मुझे नहीं लगता कि आप की पत्नी उन की कस्टड़ी आप से ले सकती है।
आपकी पत्नी स्वयं आप को छोड़ कर गई है इस का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं हो सकता। लेकिन आप गवाहों के बयानों से साबित कर सकते हैं कि ऐसा हुआ है।
थैंक्स अ लोट
गुड मॉर्निंग सर,
धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन कोर्ट में हो चूका.
प्रतिवादी अगर कोर्ट में उपस्थिति नही हो रहा है. तू क्या अर्रेस्टिंग के लिए कोर्ट आर्डर दे सकता है. या और कुछ आर्डर हो सकता है.
धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम का आवेदन कोर्ट में हो चूका. क्या उसे डाइवोर्स दिया जायेगा. या गुजारा भत्ता दे का आर्डर हो सकता है. या कुछ और आर्डर हो सकता है.
Sorry सर मेरीपत्नी २०१३नोव से अपने मायके मैहै .आपके मार्गििदर्सन क लिए ड्न्य्बाद
आप की पत्नी नवम्बर २०१३ से उस के मायके में है। यही कारण है कि उस की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली गई और आप के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ। वैवाहिक विवादों में पुरुषों पर सर्वाधिक दबाव ४९८ ए और ४०६ आईपीसी के मुकदमों में गिरफ्तारी का होता है। उस भय से आप निकल चुके हैं। आप को चाहिए कि अपने मुकदमे सावधानी से लड़ें और अपराधिक मुकदमे की पेशी पर गैर हाजिर न हों। आप को राहत प्राप्त हो जाएगी।
तीसरा खंबा का पिछला आलेख है:–.झूठ के पैर नहीं होते