धोखा दे कर अवैध विवाह करने वाले पति से तुरंत संबंध समाप्त कर लेना ही उचित है
|रंजीता जी,
आप मुसीबत में हैं। जो कुछ भी आप का दो पंक्तियों का यह प्रश्न बता रहा है, वह आप के लिए अच्छी स्थिति नहीं है। यदि पुलिस ने धारा 498-ए में दर्ज रिपोर्ट पर कार्यवाही की है और आप के पति को गिरफ्तार किया है, तो यह तो निश्चित है कि वह लड़की जो आप के घर आई थी, वह आप के विवाह के पूर्व से ही आप के पति की विवाहिता पत्नी है जिस से आप के पति का तलाक नहीं हुआ था। धारा 498-ए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत केवल एक पत्नी ही अपने पति और उस के संबंधियों के विरुद्ध रिपोर्ट करवा सकती है। सामान्य रूप से पुलिस भी इस बात की पुष्टि किए बिना कि शिकायत दर्ज करवाने वाली स्त्री वैध पत्नी है उस शिकायत को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में दर्ज नहीं करती है। कोई भी हिंदू जो विवाहित है और जिस की पत्नी जीवित है उस का दूसरा विवाह चाहे वह रजिस्ट्रार के समक्ष संपन्न हुआ हो वह वैध नहीं है। इस से यह तथ्य भी प्रकट होता है कि आप के पति ने विवाह रजिस्ट्रार को मिथ्या सूचनाएँ और शपथ-पत्र दिया है उस की कोई जीवित पत्नी नहीं है, हो सकता है यह भी प्रकट किया हो कि वह अभी तक अविवाहित है। इस तरह उस ने रजिस्ट्रार को मिथ्या सूचनाएँ दे कर अपराध किया है।
आप के पति ने इस प्रवंचना से कि वे अविवाहित हैं आप से विवाह किया, आप को यह प्रवंचना दी कि आप के साथ उन का विवाह विधिपूर्ण है, औऱ आप के साथ दो वर्ष से भी अधिक समय तक सहवास किया। आप के पति का यह कृत्य धारा 493 भा.दं.सं. के अंतर्गत आप के और समाज के प्रति अपराध है जिस के लिए दस वर्ष तक के कारावास का दंड उसे दिया जा सकता है। इसी तरह पहली पत्नी के जीवित होते हुए भी उस ने आप के साथ विवाह किया जो धारा 493 भा.दं.सं. के अंतर्गत पहली पत्नी के प्रति अपराध है। इतना होते हुए भी वह व्यक्ति अत्यन्त भाग्यशाली है कि जिस स्त्री को उस ने धोखा दे कर उस के साथ अवैध विवाह का अपराध किया वही उसे दंडित कराने के स्थान पर उस दंड से उसे बचाना चाहती है।
आप ने मुझ से उस व्यक्ति की जमानत के बारे में सलाह मांगी है। हमारी न्याय व्यवस्था की यह मान्यता है कि जब तक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य से यह साबित न हो जाए कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है तब तक उसे अपराधी नहीं मानना चाहिए। ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति के विरुद्ध सिर्फ आरोप है, जिसे न्यायालय के समक्ष होने वाले विचारण में साबित किया जाना शेष है उसे कारागार में निरुद्ध रखना उचित नहीं है। केवल उन अभियुक्तों को जिन के न्याय प्रणाली से भाग जाने की संभावना हो, जिन के द्वारा अपने विरुद्ध आने वाली साक्ष्य को नष्ट करने व साक्षियों को लालच या डरा धमका कर अपने पक्ष में करने की संभावना हो, या जो खुले रहने पर समाज को हानि पहुँचा
सकते हों, कारागार में विचारण के दौरान निरुद्ध किया जाना चाहिए। इस आधार पर आप के पति की जमानत हो सकती है। लेकिन उस पर इतने गंभीर अपराधों के आरोप हैं कि उस की जमानत मजिस्ट्रेट न्यायालय या सत्र न्यायालय से संभव नहीं हो सकेगी। आप को इस के लिए कम से कम उच्च न्यायालय तक जाना होगा। यह भी हो सकता है कि उच्च न्यायालय उन का आवेदन यह कहते हुए निरस्त कर दे कि इस व्यक्ति के विरुद्ध इतने मजबूत साक्ष्य हैं कि जब तक विचारण आरंभ न हो जाए और एक दो महत्वपूर्ण गवाहों के बयान न हो जाएँ उन की जमानत नहीं ली जा सकती है। फिर भी जो लोग चाहते हैं कि आप के पति की जमानत हो जाए, उन्हें प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। क्यों कि सामान्य नीति यह है कि जब तक प्रमाणित नहीं हो जाए तब तक किसी को कारागार में निरुद्ध नहीं रखा जाना चाहिए। आप के पति की जमानत के लिए पहले मजिस्ट्रेट न्यायालय में आवेदन करना होगा। वहाँ से निरस्त हो जाने पर सत्र न्यायालय में और वहाँ से निरस्त होने पर उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन किया जा सकता है।
आप के लिए मेरी सलाह यह है कि यदिआप आत्मनिर्भर हैं तो अपने पति से तुरंत नाता समाप्त कर लें। इसी में आप की भलाई है। यदि आप आत्मनिर्भर नहीं हैं तो होने का प्रयत्न करें। जो व्यक्ति अपनी पहली विवाहिता पत्नी को धोखे में रख कर आप के साथ धोखा कर सकता है, आप के प्रति गंभीरतम अपराध कर सकता है। आप उस पर कैसे विश्वास कर सकती हैं?
एक धोखेबाज़ पति को दूसरी पत्नी बचाना चाहती है ! वाह री भारतीय नारी |
गंभीर समस्या, 'बेहतरीन राय'.
वो दो पत्नी का मालिक है, मेरा भी 'सिर' 'फिरा' सुनकर,
मैं इक के साथ ही 'सठिया' लिया! अल्लाहो अकबर.
http://aatm-manthan.com
गुरुवर जी, मैंने पहले ही लिखा है कि-आपसे पूर्णत सहमत हूँ,क्योंकि पूरा प्रश्न आपको मिला है.मैंने केवल संभवाना व्यक्त की है. जहाँ तक रंजीता के यह 'अचानक एक लड़की अपने परिवार के साथ मेरे घर आई' लिखने की बात है.वो सार्वजनिक न करने के कारण हो सकता है.आपके पास हजारों प्रश्न आते हैं,ऐसा आपने भी देखा होगा.कुछ लोग नाम छुपाने की बात करते हैं या फर्जी ईमेल से प्रश्न पूछते है क्यों? क्योंकि कहीं-कहीं पर लोग बदनामी के भय से और कुछ अन्य कारणों से.कई बार कुछ लोगों को ऐसी परिस्थियों का आभास नहीं होता है और जानकारी के अभाव में छुपकर रहते हैं या दूसरे शहर में रहते हैं.फिर पहली पत्नी को पता चलने पर ऐसी समस्या का समाधान खोजते हैं.यदि रंजीता के पति की कोई पहली पत्नी है तो रजिस्ट्रार के दफ्तर में हुए विवाह का कोई मूल्य नहीं। बल्कि वह पहली पत्नी के हाथों दूसरे विवाह का और भी पक्का सबूत है। आपकी इस बात को भी जायज मानता हूँ.आज दुनियाँ में थोड़े से स्वार्थ के लिए झूठा हलफनामा देने को तैयार रहते हैं और कुछ लोगों का धोखा देना पेशा बन गया है.जहाँ तक बात आती हैं "एक पत्नी के जीवित रहते और उस से विवाह विच्छेद के बिना दूसरा विवाह अनुचित और गैर कानूनी है। पुरुष को हमेशा ही ऐसी पत्नी से जितनी जल्दी हो विवाह विच्छेद कर लेना चाहिए। इस के उपरांत ही विवाह करना चाहिए।" हमारी कानून व्यवस्था अभी ऐसे फैसलों को जल्दी निपटाने के लिए इतनी तैयार नहीं है और आपसी समझौते में इतने धन की मांग की जाती है कि-वो राशि पति और उसके परिजनों की पहुँच से बाहर होती हैं. यहाँ पर मेरा उदहारण ले लें.आप मेरे पूरे केस से लगभग परिचित है. अब बताईये आज भी मेरी पत्नी की पांच लाख की मांग है. जो पहले 15 लाख थी. बिना किसी प्रकार का दान-दहेज लिए कोर्ट मैरिज हुई थी.
@रमेश कुमार जैन
रमेश जी, आप ने जो संभावना व्यक्ति की है वैसा भी हो सकता है। लेकिन तब वैसी स्थिति में रंजीता जी ये नहीं लिखती कि 'अचानक एक लड़की अपने परिवार के साथ मेरे घर आई'। तब उसे इस तरह की संभावित परिस्थितियों के बारे में पता होता और वह उस के लिए तैयार भी होती।
एक पत्नी के जीवित रहते और उस से विवाह विच्छेद के बिना दूसरा विवाह अनुचित और गैर कानूनी है। पुरुष को हमेशा ही ऐसी पत्नी से जितनी जल्दी हो विवाह विच्छेद कर लेना चाहिए। इस के उपरांत ही विवाह करना चाहिए। यदि रंजीता के पति की कोई पहली पत्नी है तो रजिस्ट्रार के दफ्तर में हुए विवाह का कोई मूल्य नहीं। बल्कि वह पहली पत्नी के हाथों दूसरे विवाह का और भी पक्का सबूत है।
गुरुवर जी, आप द्वारा रंजीता जी को दी क़ानूनी जानकारी से पूर्णत: सहमत हूँ. इसके साथ एक बात पर गौर कीजिये-यहाँ माता सीता जैसी अच्छी महिला भी है और सूर्पनखा जैसी बुरी महिला भी है.नोट करें: महिला बुरी और अच्छी नहीं होती बल्कि अच्छी व बुरी उनकी मानसिकता कहूँ या विचार होते हैं.अब एक बात आप मानेंगे हर कोई आप जैसा या "सिरफिरा" नहीं होता है. जो कभी ऐसा कोई कार्य नहीं करते, जिससे सार्वजनिक न कर सकें. मेरा एक अनुभव(मत) कहूँ या विचार मानिए कि-हो सकता @रंजीता उपरोक्त बात जानती हो कि-उसके पति दीपक की पहले शादी हो चुकी है और उसकी पत्नी दूषित मानसिकता वाली थीं और शायद इसलिए अब @दीपक को बचाना चाहती हैं. अपनी उपरोक्त बात को इन्टरनेट पर सार्वजनिक करने से डर रही हो. मैं पिछले दिनों ऐसे कई केसों को द्वारका कोर्ट में देखने को मिले, जिसमें मुझे दोनों पत्नियों से बात करने का सौभाग्य मिला. तब पाया कि-अनेक जगह पर पहली पत्नी दूषित मानसिकता और चरित्रहीन थीं और दूसरी पत्नी को सावित्री का रूप कह सकते हैं. आपका यह शिष्य जल्दी सही-गलत का फैसला नहीं लेता है. जब तक अच्छे और ठोस सबूत ना हो. एक चीज़ मैंने यह भी पाई कि-जहाँ पर पहली पत्नी सही है, वहाँ पर पति शराबी, नशेड़ी आदि होने के साथ अनेक बुरी आदतों से ग्रस्त था. वहाँ पर उन पत्नी की पीड़ा देखकर भ्रष्ट, गूंगी, बहरी और अंधी न्याय व्यवस्था के आगे कुछ भी नहीं कर पाया.
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय" ब्लॉग की मूल भावना" http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_23.html
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "सच लिखने का ब्लॉग जगत में सबसे बड़ा ढोंग-सबसे बड़ी और सबसे खतनाक पोस्ट" http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/07/blog-post.html