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धोखा दे कर अवैध विवाह करने वाले पति से तुरंत संबंध समाप्त कर लेना ही उचित है

 रंजीता सिंह ने पूछा है –

मेरा विवाह दीपक कुमार के साथ 6 मार्च 2009 को हुआ था। अचानक 9 जुलाई 2011 एक महिला अपने परिवार के साथ मेरे घर आई और मुझे इंगित करते हुए कहा कि “मेरे पति ने इस लड़की के साथ विवाह किया है” उस ने एक एफआईआर धारा 498-ए में मेरे पति के विरुद्ध करवा दी, पुलिस । अब मेरे पति जेल में हैं। मुझे आप की मदद चाहिए मैं उन की जमानत कैसे करवा सकती हूँ? कृपया मुझे उचित सलाह दें।

 उत्तर –

रंजीता जी,

प मुसीबत में हैं। जो कुछ भी आप का दो पंक्तियों का यह प्रश्न बता रहा है, वह आप के लिए अच्छी स्थिति नहीं है। यदि पुलिस ने धारा 498-ए में दर्ज रिपोर्ट पर कार्यवाही की है और आप के पति को गिरफ्तार किया है, तो यह तो निश्चित है कि वह लड़की जो आप के घर आई थी, वह आप के विवाह के पूर्व से ही आप के पति की विवाहिता पत्नी है जिस से आप के पति का तलाक नहीं हुआ था। धारा 498-ए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत केवल एक पत्नी ही अपने पति और उस के संबंधियों के विरुद्ध रिपोर्ट करवा सकती है। सामान्य रूप से पुलिस भी इस बात की पुष्टि किए बिना कि शिकायत दर्ज करवाने वाली स्त्री वैध पत्नी है उस शिकायत को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में दर्ज नहीं करती है। कोई भी हिंदू जो विवाहित है और जिस की पत्नी जीवित है उस का दूसरा विवाह  चाहे वह  रजिस्ट्रार के समक्ष संपन्न हुआ हो वह वैध नहीं है। इस से यह तथ्य भी प्रकट होता है कि आप के पति ने विवाह रजिस्ट्रार को मिथ्या सूचनाएँ और शपथ-पत्र दिया है  उस की कोई जीवित पत्नी नहीं है, हो सकता है यह भी प्रकट किया हो कि वह अभी तक अविवाहित है। इस तरह  उस ने रजिस्ट्रार को मिथ्या सूचनाएँ दे कर अपराध किया है।

प के पति ने इस प्रवंचना से कि वे अविवाहित हैं आप से विवाह किया, आप को यह प्रवंचना दी कि आप के साथ उन का विवाह विधिपूर्ण है, औऱ आप के साथ दो वर्ष से भी अधिक समय तक सहवास किया।  आप के पति का यह कृत्य धारा 493 भा.दं.सं. के अंतर्गत आप के और समाज के प्रति अपराध है जिस के लिए दस वर्ष तक के कारावास का दंड उसे दिया जा सकता है। इसी तरह पहली पत्नी के जीवित होते हुए भी उस ने आप के साथ विवाह किया जो धारा 493 भा.दं.सं. के अंतर्गत पहली पत्नी के प्रति अपराध है। इतना होते हुए भी वह व्यक्ति अत्यन्त भाग्यशाली है कि जिस स्त्री को उस ने धोखा दे कर उस के साथ अवैध विवाह का अपराध किया वही उसे दंडित कराने के स्थान पर उस दंड से उसे बचाना चाहती है।

प ने मुझ से उस व्यक्ति की जमानत के बारे में सलाह मांगी है। हमारी न्याय व्यवस्था की यह मान्यता है कि जब तक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य से यह साबित न हो जाए कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है तब तक उसे अपराधी नहीं मानना चाहिए। ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति के विरुद्ध सिर्फ आरोप है, जिसे न्यायालय के समक्ष होने वाले विचारण में साबित किया जाना शेष है उसे कारागार में निरुद्ध रखना उचित नहीं है। केवल उन अभियुक्तों को जिन के न्याय प्रणाली से भाग जाने की संभावना हो, जिन के द्वारा अपने विरुद्ध आने वाली साक्ष्य को नष्ट करने व साक्षियों को लालच या डरा धमका कर अपने पक्ष में करने की संभावना हो, या जो खुले रहने पर समाज को हानि पहुँचा
सकते हों, कारागार में विचारण के दौरान निरुद्ध किया जाना चाहिए। इस आधार पर आप के पति की जमानत हो सकती है। लेकिन उस पर इतने गंभीर अपराधों के आरोप हैं कि उस की जमानत मजिस्ट्रेट न्यायालय या सत्र न्यायालय से संभव नहीं हो सकेगी। आप को इस के लिए कम से कम उच्च न्यायालय तक जाना होगा। यह भी हो सकता है कि उच्च न्यायालय उन का आवेदन यह कहते हुए निरस्त कर दे कि इस व्यक्ति के विरुद्ध इतने मजबूत साक्ष्य हैं कि जब तक विचारण आरंभ न हो जाए और एक दो महत्वपूर्ण गवाहों के बयान न हो जाएँ उन की जमानत नहीं ली जा सकती है। फिर भी जो लोग चाहते हैं कि आप के पति की जमानत हो जाए, उन्हें प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। क्यों कि सामान्य नीति यह है कि जब तक प्रमाणित नहीं हो जाए तब तक किसी को कारागार में निरुद्ध नहीं रखा जाना चाहिए। आप के पति की जमानत के लिए पहले मजिस्ट्रेट न्यायालय में आवेदन करना होगा। वहाँ से निरस्त हो जाने पर सत्र न्यायालय में और वहाँ से निरस्त होने पर उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन किया जा सकता है।

प के लिए मेरी सलाह यह है कि यदिआप आत्मनिर्भर हैं तो अपने पति से तुरंत नाता समाप्त कर लें। इसी में आप की भलाई है। यदि आप आत्मनिर्भर नहीं हैं तो होने का प्रयत्न करें। जो व्यक्ति अपनी पहली विवाहिता पत्नी को धोखे में रख कर आप के साथ धोखा कर सकता है, आप के प्रति गंभीरतम अपराध कर सकता है। आप उस पर कैसे विश्वास कर सकती हैं?

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