न जज, न अदालत और न ही वकील अंधे हैं
|कल के आलेख एक ने आजीवन कारावास की सजा दी, दूसरे ने बरी कर दिया पर सर्व श्री विवेक सिंह, ताऊ रामपुरिया, पिन्टू, डा. अमर कुमार, लावण्या दीदी , पीएन सुब्रमण्यम, अभिषेक ओझा, राज भाटिय़ा, बवाल, रविरतलामी, पापुलर इंडिया, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, सी एम प्रसाद और तनु शर्मा की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई। उन में से कुछ बहुत दिलचस्प थीं। इन का दिलचस्प होना स्वाभाविक ही था। कुछ टिप्पणियाँ इस तरह हैं ….
- इसीलिए तो भारत महान है . इनक्रेडीबल इंडिया 🙂
- शायद इसी को कानून में छिद्र होना कहते हैं !
- सच में कानून अंधा होता है । आज ही रायबरेली में एक केस चर्चा का विषय है.. गुमशुदगी के केस मे, गुम लड़की का शव नदी से बरामद करा दिया .. पोस्टमार्टम होगया, शव घर वालों को दे दिया गया ! दाहसंस्कार भी हो गया ! हत्यारोपी भी पकड़े गये.. जाने कैसे गुनाह भी कबूल लिया ! केस कोर्ट में दाख़िल हो गया .. और सुनवाई चल रही है !
अचानक..
अचानक, तीन महीने बाद लड़की कल एक आश्रम से बरामद हुई ! केस की तफ़्सीस फिर से आरंभ करने के आदेश जारी कर दिये गये हैं ..अब सवाल यह है, कि वह शव किसका था.. और कोर्ट में हत्या कैसे साबित किया जा रहा था ?
- एक और “रईसा” की तबाही के लिये द्वार खुल गये अगर उसके पति की रिहाई हो गई।
- ऐसी विसंगतियाँ अदालत के अंदर ही समन्वय की कमी दर्शाता है. स्थिति बड़ी गंभीर है।
- कानून अंधा नही इसे हमारे वकीलो ओर जजो ने अंधा बना दिया है, या फ़िर पैसे वालो ने, वरना तो कानून से बच पाना बहुत कठिन है।
- सब ऊपर वाले की मर्ज़ी है सर. इसमें क्या किया जावे यही तो यक्ष प्रश्न है आजकल
- आश्चर्य ! घोर आश्चर्य! तो, अब ये भी संभव है!
- ना क़ानून अंधा है…और ना इसको चलाने वाले औऱ न्याय देने वाले अंधे हैं….अंधे तो हम सब हो चुके हैं…सबको अपनी सहूलत के हिसाब से काम करवाने की आदत पढ़ चुकी है…हर चीज़ में सिर्फ—–मैं—–शब्द हावी है…..अगर हमारा काम बन रहा है तो क्य
More from my site
9 Comments
तीएसरे खंभे को तीसरे कदम का सलाम
अपने यहाँ न्याय प्रक्रिया लम्बी या जटिल ही नहीं… कहते हैं की घर बिक जाता है सुनवाई होने में, यूँ ही नहीं कहते…!!!
अच्छा… तो ये बात हुई हो सकती है? बताने का आभार।
“किसी वकील के मुलजिम की पैरवी के लिए नहीं पहुँचने की दशा में अपील पैरवी के अभाव में खारिज कर के निचली अदालत की सजा बहाल रख दी हो।”
क्या फौजदारी की अपीलें भी अदम पैरवी पर खारिज की जाती हैं या फिर गुण दोष पर तय की जाती हैं और यदि वह बेकसूर हो तो उसे छोड़ दिया जाता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह जेल में व्यक्ति के साथ अन्याय होगा कि पैसे के आभाव में उसका पक्ष नहीं देखा गया।
बहुत अच्छी जानकारी मिली इस पोस्ट से….कभी-कभार न्याय-प्रशासन में ऐसी गलतियां हो जाना स्वाभाविक है…आपने स्थिति पर प्रकाश डालकर इसे नाहक ही मजाक का विषय बनने से बचा लिया
बहुत बढ़िया यथार्थपरक ज्ञानवर्धक जानकारी प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
आपको पढना आवश्यक नहीं, अनिवार्य विवशता है ।
आपके कानूनी लेखन का
कोई सानी नहीँ _
-हिन्दी ब्लोग जगत के लिये
ये बडे काम की बातेँ सिध्ध होँगीँ
स स्नेह सादर,
– लावण्या
बढिया जानकारी। आपकी यत्र तत्र टिप्पणियां भी प्रोत्साहित करने वाली होती हैं
prakashbadal.blogspot.com