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प्रस्ताव और प्रस्तावों की स्वीकृतियाँ निरस्त करने का महत्वपूर्ण अधिकार

भुवनेश जी ने सही कहा कि देखने से तो ये बड़ा सरल लग रहा है….पर प्रैक्टिकली मुकदमों में काफी दिमाग खपाऊ होगा”।

वाकई मुकदमों में यह सब बहुत सिर खपाऊ होता है। क्यों कि लोग जब कंट्रेक्ट करते हैं तब कानून नहीं जानते, अलावा उन बड़ी व्यावसायिक कंपनियों के जहाँ हर कंट्रेक्ट कानूनी जानकारों के छिद्रान्वेषण से गुजरे बगैर अंतिम नहीं किया जाता, और कंट्रेक्ट के पहले वार्ताओं के अनेक दौर हो जाते हैं। लेकिन वहाँ यह समस्याएँ भी कम आती हैं क्यों कि वहाँ कंट्रेक्ट लिखित होता है और कंट्रेक्ट के सभी पक्षकारों के हस्ताक्षऱ उन पर उपलब्ध होते हैं। लेकिन वहाँ भी दूसरे-दूसरे विवाद उत्पन्न होते रहते हैं।

किसी अनुबंध के होने के पहले प्रस्ताव और स्वीकृति को वापस लेने या निरस्त करने का भी अपना नियम है, कि कोई भी प्रस्ताव या प्रस्ताव पर दी गई स्वीकृति का निरसन, स्वीकृति के उस व्यक्ति तक नहीं पहुँचने तक ही किया जा सकता है जिसे वह भेजी गई है।

जैसे मैं भुवनेश जी को डाक से यह प्रस्ताव प्रेषित करता हूँ कि वह मेरे लिए हिन्दू विवाह अधिनियम का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किसी निश्चित शुल्क पर कर दें, और भुवनेश जी डाक से ही मुझे उस की स्वीकृति प्रेषित कर देते हैं। तो यह स्वीकृति मुझे प्राप्त होते ही अनुबंध हो जाएगी।

लेकिन, यदि मैं मेरे प्रस्ताव को वापस लेना चाहूँ, तो यह तभी तक संभव है जब तक कि मेरा प्रस्ताव भुवनेश जी को प्राप्त होने के पूर्व ही प्रस्ताव के निरसन की सूचना भुवनेश जी को मिले। इस के लिए मुझे अधिक तीव्र माध्यम से अपने प्रस्ताव के निरसन के संदेश को भुवनेश जी तक पहुँचाना पड़ेगा। मैं उन्हें टेलीफोन कर सकता हूँ, तार कर सकता हूँ या फिर किसी अन्य व्यक्ति को फोन कर के भुवनेश जी तक यह संदेश तुरंत पहुँचाने की व्यवस्था कर सकता हूँ। एक बार भुवनेश जी को मेरा प्रस्ताव मिल जाने पर मैं उसे वापस नहीं ले सकता। उसे स्वीकार करना या न करना पूरी तरह भुवनेश जी पर ही निर्भर रहेगा। हाँ, उन से यह अनुरोध अवश्य कर सकता हूँ कि वे मेरे प्रस्ताव को स्वीकार न करें।

इसी तरह यदि भुवनेश मुझे मेरे प्रस्ताव की भेजी गई स्वीकृति निरस्त करना चाहें, तो वे उन की स्वीकृति मुझे प्राप्त होने के पहले ही मुझे अपना निरसन पहुँचा कर ही कर पाएंगे, उस के बाद नहीं। क्यों कि उन की स्वीकृति मुझे मिलते ही मेरा प्रस्ताव एक अनुबंध में परिवर्तित हो चुका होगा, और अगर वह कानून के द्वारा लागू कराई जाने योग्य हुई तो एक कंट्रेक्ट बन जाएगा।

यहाँ इस कानून में प्रस्ताव और प्रस्ताव की स्वीकृति को निरस्त किए जाने के सम्बन्ध में जो कुछ कहा गया है, वह एक अधिकार है, अर्थात अपने प्रस्ताव और प्रस्ताव की स्वीकृति को एक अवधि विशेष में निरस्त किए जाने का अधिकार की संज्ञा दी जा सकती है। जैसे अनेक बार सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएँ निविदाएँ आमंत्रित करते समय यह शर्त अपनी आमंत्रण सूचना में अंकित कर देती हैं कि निविदाएँ एक निश्चित समय तक ही स्वीकार की जाएंगी और निविदा पत्र में अंकित प्रस्तावों को वापस नहीं लिया जा सकेगा। इस तरह के विज्ञापन से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रस्तावों को वापस लिया ही नहीं जा सकेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। किसी भी प्रस्ताव को जब तक की उस की स्वीकृति प्रस्तावक को संसूचित नहीं हो जाती है, प्रस्तावक द्वारा निरस्त किया जा सकता है, और यह प्रस्तावक का महत्वपूर्ण अधिकार है।

लेकिन ऐसे मामलों में जहाँ प्रस्ताव की स्वीकृति स्वीकृतिगृहीता के किसी कार्य के करने से अभिव्यक्त होनी हो तो स्थिति भिन्न हो जाएगी। जैसे मैं किसी प्रकाशक को प्रस्ताव करता हूँ कि मैं कुछ पुस्तकें निर्धारित कीमत पर खरीदना चाहता हूँ, उसे कीमतें स्वीकार हों तो वह पुस्तकें मुझे भेज दे। इस मामले में यदि प्रकाशक मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए प्रस्तावित पुस्तकें डाक से मेरे पते पर प्रेषित करने के लिए डाक में छोड़ देता है तो प्रस्ताव की उसी समय स्वीकृति पूर्ण हो जाती है। प्रस्ताव की स्वीकृति पृथक से प्रेषित करने की आवश्यकता नहीं है। मैं अपने प्रस्ताव को प्रकाशक द्वारा पुस्तकों को डाक में छोड़ने के पहले तो निरस्त कर सकता हूँ, उस के बाद नहीं।

इसी तरह कोई कर्मचारी यदि अपने पद से त्याग-पत्र देता है, यह एक प्रस्ताव है। इस त्याग-पत्र के प्रस्ताव को वह स्वीकार किए जाने के पहले तक निरस्त कर सकता है दूसरे शब्दों में कर्मचारी को अपना त्याग-पत्र स्वीकार किये जाने तक निरस्त करने या वापस लेने का अधिकार है।

इसी तरह एक नीलामी में बोली लगाने वाला बोली लगाता है तो वह केवल उस के द्वारा बताई गई कीमत पर माल खरीदने का प्रस्ताव करता है। जब तक बोली सम्पूर्ण (1..2..3) नहीं हो जाती है बोली लगाने वाला अपना प्रस्ताव वापस ले सकता है। नीलामी में अगर यह शर्त हो कि नीलामी पूरी होने के बाद किसी अधिकारी की स्वीकृति पर ही पूर्ण मानी जाएगी तो सर्वोच्च बोली लगाने वाले व्यक्ति को ऐसे अधिकारी की स्वीकृति के पूर्व अपने प्रस्ताव को वापस लेने का अधिकार है, वह ऐसी स्वीकृति के पूर्व अपना प्रस्ताव वापस ले सकता है।(धारा-5)

एक प्रस्ताव या प्रस्तावों की स्वीकृतियाँ कुछ अन्य परिस्थितियों में भी निरस्त हो सकती हैं, अथवा निरस्त मानी जा सकती हैं। इस विषय पर हम अगले आलेख में बात करेंगे……………..(जारी)

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