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प्रस्ताव का निरस्त और स्वीकृत होना; तथा स्पष्ट व अंतर्निहित वादे

आज हम बात कर रहे हैं, प्रस्तावों के निरसन की, कि प्रस्ताव किन किन हालात में निरसित माने जायेंगे?

एक प्रस्ताव निम्न परिस्थितियों में निरसित हो जाएगा…..

    1. प्रस्तावक द्वारा प्रस्ताव को निरस्त किए जाने की सूचना दूसरे पक्ष को पहुँचा कर;
    2. प्रस्ताव में वर्णित उसे स्वीकार किए जाने के समय व्यतीत हो जाने पर, और प्रस्ताव में ऐसा कोई भी समय निर्धारित नहीं होने पर उचित समय व्यतीत हो जाने पर भी कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं होने पर;
    3. प्रस्ताव को स्वीकार करने की पूर्व-शर्त को स्वीकर्ता द्वारा पूरी नहीं किए जाने पर; या
    4. प्रस्तावक की मृत्यु या उस के पागल हो जाने पर यदि प्रस्तावक की मृत्यु या पागल हो जाने के तथ्य का ज्ञान प्रस्ताव के स्वीकर्ता को स्वीकृति देने के पहले प्राप्त हो गया था। (धारा -6)

प्रस्ताव की स्वीकृति सम्पूर्ण होना चाहिए…..

किसी भी प्रस्ताव को एक वादे में परिवर्तित होने के लिए स्वीकृति की आवश्यकता होती है, लेकिन

  1. यह सम्पूर्ण (absolute) और अपरिवर्तित (unqualified) होनी चाहिए।

यहाँ सम्पूर्ण से तात्पर्य यह है कि जो प्रस्ताव दिया गया है वह पूरा का पूरा स्वीकार किया जाना चाहिए, और उस में फेर बदल नहीं होनी चाहिए। जैसे रामलाल अपने ट्रेक्टर-ट्रॉली को दो लाख रुपए में बेचने का प्रस्ताव करता है, तो स्वीकर्ता की स्वीकृति यही होनी चाहिए कि वह दो लाख में ट्रेक्टर और ट्रॉली दोनों को खरीदने को तैयार है, न कि एक लाख नब्बे हजार में, तभी वह संपूर्ण हो सकेगी।

इसी प्रकार स्वीकृति ट्रेक्टर और ट्रॉली दोनों के लिए होना चाहिए न कि केवल ट्रेक्टर के लिए ही हो, तभी वह अपरिवर्तित होगी।

  1. स्वीकृति को सामान्य और यथोचित रीति से प्रकट करना चाहिए, जब तक कि खुद प्रस्ताव में ही उस के प्रकट किए जाने की रीति को निर्धारित न कर दिया गया हो। यदि प्रस्ताव में स्वीकृति को प्रकट करने की रीति निर्धारित कर दी गई हो, और स्वीकृति को निर्धारित की गई रीति से न भेजा गया हो, तो प्रस्तावक को ऐसी स्वीकृति के उसे प्राप्त होने के उपरांत उचित अवधि में स्वीकर्ता को यह प्रकट कर देना चाहिए कि स्वीकृति निर्धारित रीति में ही मान्य होगी अन्य रीति से नहीं, यदि प्रस्तावक ऐसा नहीं करता है तो वह स्वीकृति को स्वीकार कर लेता है।

यहाँ स्पष्ट है कि स्वीकृति को ऐसी रीति से प्रकट करना चाहिए जैसा की सामान्य रूप से सब लोग किया करते हैं, जैसे एक जमाने में हमारे यहाँ कन्या का अभिभावक वर के अभिभावकों को अपने यहाँ कन्या को देखने को आमंत्रित करता था, यह कन्या के विवाह का प्रस्ताव होता था। यदि कन्या को देखने के उपरांत वर के अभिभावक कन्या को कोई गहना, कपड़ा या रुपया दे कर चल देते थे तो यह मान लिया जाता था कि विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है और वादा हो चुका है। यह एक सामान्य रीति थी जो लोगों में प्रचलित थी।

लेकिन उस कन्या को देखने आए लोगों को पहले से यह कह दिया जाए कि वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे और अपनी स्वीकृति बाद में पत्र लिख कर सूचित करेंगे। कन्या को देखने के उपरांत वे न तो कुछ दे कर जाते हैं और न ही कोई पत्र लिख कर देते हैं लेकिन कुछ दिन बाद वर की माता आ कर कन्या को पुनः देखती है और उसे एक साड़ी और सुहाग चिन्ह दे जाती है। ऐसी हालत में वर की माता का बाद में आ कर कुछ दे जाना निर्धारित रीति से न होने पर भी प्रस्ताव की स्वीकृति माना जाएगा। यदि कन्या के अभिभावक एक-दो सप्ताह में ही यह सूचित न कर दें कि उन्हें तो पत्र की दरकार है, प्रस्ताव को वादे में बदलने के लिए। (धारा-7)

किसी शर्त को पूरी कर देना या प्रतिफल को स्वीकार लेना भी स्वीकृति है-

किसी प्रस्ताव में रखी गई शर्त को स्वीकर्ता द्वारा पूरी कर देने या उस का प्रति
फल स्वीकार कर लेने से भी यह मान लिया जाएगा की प्रस्ताव स्वीकृत हो गया है।

मान लिजिए मैं किसी कवि को प्रस्ताव करता हूँ कि मेरे ब्लाग पर कविता प्रकाशन हेतु भेजने पर मैं 100 रुपए प्रति कविता उन्हें भुगतान करूंगा। वे कविता प्रेषित कर देते हैं तो यह माना जाएगा कि कवि महोदय को मेरा कविता के प्रकाशन की यह दर का प्रस्ताव स्वीकार है, क्यों कि उन्हों ने अपेक्षा के अनुरूप कविता प्रेषित करने की शर्त पूरी कर दी।

इसी तरह मैं किसी उपन्यासकार को एक मनिऑर्डर इस संदेश के साथ प्रेषित करता हूँ कि मैं उन के नए उपन्यास की रॉयल्टी की आधी रकम भेज रहा हूँ। और वे संदेश पढ़ कर मेरा मनिऑर्डर प्राप्त कर लेते हैं तो माना जाएगा कि उन्हें न्ए उपन्यास की रॉयल्टी का प्रस्ताव स्वीकार है। (धारा-8)

स्पष्ट (express) और विवक्षित/अन्तर्निहित (implied) वादे

जिन वादों के प्रस्ताव या उन की स्वीकृति लिखित होती है वे स्पष्ट वादे कहे जाते हैं, और जिन के प्रस्ताव और स्वीकृति लिखित न हो कर अन्य प्रकार से होते हैं वे विवक्षित या अन्तर्निहित वादे कहे जाते हैं। (धारा-9)

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