बंगाल, मद्रास और बोम्बे के बाहर वसीयत को प्रोबेट कराना आवश्यक नहीं।
|समस्या-
राजीव चंद्र गुप्ता ने मुखर्जीनगर, काशीपुर, जनपद उधमसिंहनगर, उत्तराखंड से पूछा है-
मेरे पिता ने अपनी मृत्यु से पूर्व रजिस्टर्ड वसीयत द्वारा अपनी समस्त चल अचल संपत्ति मेरे नाम की थी। अब उनके बैंक खाते में जमा धनराशि को बैंक मुझे देने से इनकार कर रहे हैं कि पहले रजिस्टर्ड वसीयत को कोर्ट से प्रोबेट करा कर लाओ। प्रोबेट कराने के लिए अलग अलग वकील अलग प्रोजीसर और अलग अलग खर्चा बता रहे हैं।
मैं जानना चाहता हूं कि-
१- क्या रजिस्टर्ड वसीयत को भी उत्तराखण्ड राज्य में प्रोबेट कराना आवयश्क है?
२- यदि हाँ तो इसका सरलतम तरीका क्या है?
समाधान-
वसीयत को प्रोबेट कराने की आवश्यकता का उल्लेख भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 213 (2) मे किया गया है। यह धारा निम्न प्रकार है-
“Section 213 – Right as executor or legatee when established.- (1) No right as executor or legatee can be established in any Court of Justice, unless a Court of competent jurisdiction in India has granted probate of the Will under which the right is claimed, or has granted letters of administration with the Will or with a copy of an authenticated copy of the Will annexed. (2) This section shall not apply in the case of Wills made by Muhammadans, and shall only apply- (i) in the case of Wills made by any Hindu, Buddhist, Sikh or Jaina where such Wills are of the classes specified in clauses (a) and (b) of section 57; and (ii) in the case of Wills made by any Parsi dying, after the commencement of the Indian Succession (Amendment) Act, 1962 (16 of 1962.) where such Wills are made within the local limits of the [ordinary original civil jurisdiction] of the High Courts at Calcutta, Madras and Bombay, and where such Wills are made outside those limits, in so far as they relate to immovable property situated within those limits.]
इस धारा में कहा गया है कि प्रोबेट प्राप्त किए बिना वसीयती अपने अधिकार को किसी न्यायालय के समक्ष स्थापित नहीं कर सकता। लेकिन यह धारा धारा 57 से जुड़ी हुई है जो निम्न प्रकार है-
Section 57 – Application of certain provisions of Part to a class of Wills made by Hindus, etc. – The provisions of this Part which are set out in Schedule III shall, subject to the restrictions and modifications specified therein, apply- (a) to all Wills and codicils made by any Hindu, Buddhist, Sikh or Jaina on or after the first day of September, 1870, within the territories which at the said date were subject to the Lieutenant-Governor of Bengal or within the local limits of the ordinary original civil jurisdiction of the High Courts of Judicature at Madras and Bombay; and (b) to all such Wills and codicils made outside those territories and limits so far as relates to immoveable property situate within those territories or limits; and (c) to all Wills and codicils made by any Hindu, Buddhist, Sikh or Jaina on or after the first day of January, 1927, to which those provisions are not applied by clauses (a) and (b): Provided that marriage shall not revoke any such Will or codicil.”
उच्चतम न्यायालय ने Kanta Yadav vs Om Prakash Yadav on 24 July, 2019 के प्रकरण में उक्त दोनों धाराओं तथा विभिन्न उच्च न्यायलयों द्वारा दिए गए निर्णयों की विवेचना करते हुए कहा है कि अधिनिमय की धारा 213 की उपधारा (2) हिन्दू, बौद्ध, सिख और जैन धर्मावलम्बियों द्वारा की गयी वसीयत को प्रोबेट कराने की आवश्यकता केवल लेफ्टीनेण्ट गवर्नर बंगाल और मद्रास तथा बोम्बे उच्च न्यायालयों के सिविल अधिकारिता में स्थित सम्पत्तियों तथा निवासियों पर भी प्रभावी होगी।
इससे स्पष्ट है कि शेष भारत में की गयी वसीयतों को प्रोबेट कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपकी वसीयत को भी प्रोबेट कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप बैंक मैनेजर को उक्त निर्णय की प्रतिलिपि प्रस्तुत कर बता सकते हैं। इसे प्रकरण के शीर्षक पर क्लिक कर के डाउनलोड किया जा सकता है।