बैंक द्वारा ग्राहक सेवा में कमी के लिए उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करें
|मेरा एक चैक जिस की वैधता की छह माह की अवधि 13 फरवरी को समाप्त होनी थी, मैं ने बैंक में 9 फरवरी को प्रस्तुत किया था। बैंक ने चैक जमा कर के मुझे रसीद प्रदान की थी। बाद में बैंक ने मुझे चैक इस टिप्पणी के साथ वापस किया कि यह अवधिपार हो चुका है। आठ सौ रुपए के इस चैक पर बैंक ने 250 रुपए भी काट लिए। मुझे क्या करना चाहिए?
मनु जी,
आप अपने बैंक को लिख कर दें कि बैंक ने सेवाएँ प्रदान करने में त्रुटि की है और आप सेवा में की गई इस त्रुटि के लिए जो भी हानियाँ आप को हुई हैं वे और जो मानसिक संताप हुआ है उस की क्षतिपूर्ति बैंक से प्राप्त करने के अधिकारी हैं। आप इस पत्र में जो भी हानियाँ इस सेवा में कमी के कारण आप को हुई हैं और जो मानसिक संताप आप को हुआ है उस का मूल्यांकन कर बैंक से मांग करें कि वह इस क्षतिपूर्ति राशि का वह आप को निश्चित समय में ( इस के लिए एक-माह का समय बैंक को दिया जा सकता है) भुगतान करे। यदि आप का बैंक इस मामले में आप के साथ वार्ता करता है और आप की क्षतियों की समुचित पूर्ति करने को तैयार हो जाता है तो आप बैंक के साथ इस मामले को आपसी सहमति से निपटा सकते हैं। यदि आप का बैंक आप की क्षतियों की पूर्ति के लिए तैयार नहीं होता है तो आप को चाहिए कि आप अपने जिले के उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष अपनी शिकायत प्रस्तुत करें। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच आप को बैंक से उचित क्षतिपूर्ति दिलाएगा।
सर मेरा किसी पार्टी से पेमेंट लेना था जो कि काम करके 2साल हो चुके है और अब उन्होंने मुझे पेमेंट भी दिया (जो कि 8लाख था) लेकिन तीन दिन बाद मुझे पता चला कि उस पार्टी ने गलती से पेमेंट हो गया का हवाला देकर मेरा खाता सील करवा दिया, जबकि मेरे पास उनके दिए गये पेमेंट का TDS सर्टिफिकेट भी है,
अब समस्या ये हो गई कि मैने लोगों को चेक भी दे दिए वो पास नहीं हुए, मुझे क्या करना चाहिए कृपया मार्गदर्शन करें।
apke lekha bahut kam ke he sir
पेटी में चेक डालना अनिवार्यता नहीं है यह बैंकों ने अपनी सुविधार्थ परम्परा बना राखी है | चेक देकर रसीद प्राप्त की जा सकरी है व बैंक का काउंटर क्लर्क रसीद देने के लिए अधिकृत है किसी अधिकारी के हस्ताक्षरों की भी आवश्यकता नहीं है |
जिस बैंक में रशीद दी जाती है वंहा तो सबूत बन जाता है लेकिन कु्छ बैंको में तो चेक पेटी में डाला जाता है वहा क्या सबूत रहेगा |
बैंकों के सेवादोष के लिए बैंकिंग लोकपाल कार्यालय से भी राहत मांगी जा सकती है जो कि निशुल्क है |इसके लिए सम्बंधित क्षेत्राधिकार वाले रिजर्व बैंक कार्यालय में स्थित कार्यालय से संपर्क इया जा सकता है |
केवल बैंक ही नहीं, किसी भी मामले में यदि आपको लगता है कि 'ये ग़लत है' तो, लिखा-पढ़ी ज़रूर करनी चाहिये. अन्यथा इसी प्रकार का अन्याय दूसरों के साथ भी भविष्य में होता रहेगा. दूसरे, यह मान कर नहीं बैठ जाना चाहिये कि कुछ नहीं होगा. यह ग़लत अवधारणा है. आपके लिखे पत्र पर कार्यवाही ज़रूर होती है, भले ही आपको लगता है कि इसमें समय बहुत लगता है. अगर आपको उत्तर न भी मिले तो भी हो सकता है कि अन्यायपू्र्ण सिस्टम पर ब्रेक लगाये जाने के प्रयास प्रारम्भ किये जा चुके हों. हां, कुछ मामलों में हो सकता है कि वांछित कार्यवाही न हो पर यह मुद्दे उठाने के रूक जाने का तर्कसंगत कारण नहीं है…
अच्छी प्रस्तुति,आभार.
गुरुवर जी, बहुत अच्छी जानकारी दी है. अपने पांच-छह अनुभव बैंक की सेवा में कमी से संबंधित के आधार पर कह रहा हूँ कि- वैसे बैंक में थोड़ी सख्ती से अगर अपना पक्ष रख दिया जाए.तब अपनी गलती मानकर आपसी समझौता कर लेते हैं. अगर फिर भी ऐसा न हो तब उस बैंक की मुख्य शाखा उसी लैटर की प्रति बहुत असरदार साबित होती हैं.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/SIRFIRAA-AAJAD-PANCHHI/
सुझाव के साथ बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है आपने…आभार
बज़ पर विष्णु बैरागी जी ने टिप्पणी की, वहाँ मैं ने उन की टिप्पणी का उत्तर दिया। दोनों यहाँ प्रस्तुत है।
विष्णु बैरागी – मुझे नहीं लगता कि मनुजी को कोई अनुकूल सहायता मिल पाएगी। मनुजी की बैंक ने भले ही अपनी ओर से, चेक मिलते ही चेक, मनुजी की बैंक को भेज दिया हो। किन्तु सामनेवाला बैंक तो इसी आधार पर कार्रवाई करेगा कि उसे चेक कब मिला – निर्धारित अवधि में या अवधिपार। मनुजी से अनुरोध है कि इसम मामले में वे यदि दिनेशजी के परामर्श अनुसार कोई कार्रवाई करें तो उसके परिणाम अवश्य सूचित करें।8:33 am
Dineshrai Dwivedi – बैरागी जी,
आप का कहना सही है। चैक जारीकर्ता बैंक का कोई दोष नहीं है। लेकिन यहाँ मनु जी का अपना बैंकर दोषी है। उन्हों ने चैक बैंक की पेटी में नहीं डाला है, उस की रसीद प्राप्त की है। यदि बैंक को जरा भी संदेह हो कि यह चैक जारीकर्ता बैंक तक अवधि में नहीं पहुँचेगा तो इस की सूचना तुरंत या अगले दिन अवश्य ही ग्राहक को देनी चाहिए थी। जिस से वह समय रहते उस की व्यवस्था कर लेता। इस का अर्थ यह है कि सेवादोष मनु जी के बैंक का है। उन्हें राहत अवश्य मिलनी चाहिए। हाँ यह मामला मेरे पास कोई मुवक्किल ले कर आता तो मैं सारे तथ्यों की जाँच के उपरान्त यह बता सकता था। कि इस मामले में हर हाल में राहत प्राप्त की जा सकती है अथवा नहीं।