मानहानि का दावा क्या है? और कैसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है?
|जो कोई बोले गए, या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य निरूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाएया यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी अपवादों को छोड़ कर यह कहा जाएगा कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।
यहाँ मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आता है, यदि वह लांछन उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उस की ख्याति की अपहानि होती और उस के परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुँचाने के लिए आशयित हो। किसी कंपनी, या संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी यही बात लागू होगी। व्यंगोक्ति के रूप में की गई अभिव्यक्ति भी इस श्रेणी में आएगी। इसी तरह मानहानिकारक अभिव्यक्ति को मुद्रित करना, या विक्रय करना भी अपराध है।
लेकिन किसी सत्य बात का लांछन लगाना, लोक सेवकों के आचरण या शील के विषय में सद्भावनापूर्वक राय अभिव्यक्ति करना तथा किसी लोक प्रश्न के विषय में किसी व्यक्ति के आचरण या शील के विषय में सद्भावना पूर्वक राय अभिव्यक्त करना तथा न्यायालय की कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग भी इस अपराध के अंतर्गत नहीं आएँगी। इसी तरह किसी लोककृति के गुणावगुण पर अभिव्यक्त की गई राय जिसे लोक निर्णय के लिए ऱखा गया हो अपराध नहीं मानी जाएगी।
मानहानि के इन अपराधों के लिए धारा 500,501 व 502 में दो वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। लोक शांति को भंग करा
ने को उकसाने के आशय से किसी को साशय अपमानित करने के लिए इतनी ही सजा का प्रावधान धारा 504 में किया गया है।
यदि कोई व्यक्ति अपनी मानहानि से हुई हानि की क्षतिपूर्ति प्राप्त करना चाहता है तो उसे, सब से पहले उन लोगों को जिन से वह क्षतिपूर्ति चाहता है एक नोटिस देना चाहिए कि वह उन से मानहानि से हुई क्षति के लिए कितनी राशि क्षतिपूर्ति के रूप में चाहता है। नोटिस की अवधि व्यततीत हो जाने पर वह मांगी गई क्षतिपूर्ति की राशि के अनुरूप न्यायालय शुल्क के साथ सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय में वाद दस्तावेजी साक्ष्य के साथ प्रस्तुत कर सकता है। वाद प्रस्तुत करने पर संक्षिप्त जाँच के बाद वाद को दर्ज कर न्यायालय समन जारी कर प्रतिवादियों को बुलाएगा और प्रतिवादियों को वाद का उत्तर प्रस्तुत करने को कहेगा। उत्तर प्रस्तुत हो जाने के उपरांत यह निर्धारण किया जाएगा कि वाद और प्रतिवाद में तथ्य और विधि के कौन से विवादित बिंदु हैं और किस बिन्दु को किस पक्षकार को साबित करना है। प्रत्येक पक्षकार को उस के द्वारा साबित किए जाने वाले बिन्दु पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। अंत में दोनों पक्षों के तर्क सुन कर निर्णय कर दिया जाएगा। यहाँ पर्याप्त साक्ष्य न होने पर दावा खारिज भी किया जा सकता है और पर्याप्त साक्ष्य होने पर मंजूर किया जा कर हर्जाना और उस के साथ न्यायालय का खर्च भी दिलाया जा सकता है।
उक्त विवरण के बाद भी एक बात स्मरण रखें कि हमारी न्याय व्यवस्था में वकील का बहुत महत्व है। उस के बिना शायद ही कोई मुकदमा ठीक से लड़ा जा सकता हो।
आदरणीय गुरु जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो मेरे द्वारा पूछे गए सवालो का जवाब देते है. आपके पास समय की कमी है परन्तु फिर भी आपके ब्लॉग में मेरे सवालो के लिए जगह देते है. मैं आपका आभारी रहूँगा. धन्यवाद
बहुत सुन्दर जानकारी आपने दी है ! मै भी एक इसी तरह के मामले की तैयारी कर रहा हूँ ! एक दो महीने में केश फाईल करूंगा !
इसे पढ़कर महसूस हुआ कि कुटिल सिब्बल वाले मामले मे आपका परामर्श उचित था यदि संभव हो तो देखकर अव्श्य बतायें कि उस लेख के आधार पर मुझे दोषी ठहराया जा सकता था कि नही और लेख के उपर "इस लेख के पात्रो का किसी भी जीवित या म्रुत व्यक्ति से कोई संबंध नही है " लिखने से क्या कोई बचाव हो सकता है ।
सर एक बहुत ज्यादा पूछा जाने वाला प्रश्न । अच्छा किया आज आपने इसे सबको सरल भाषा में समझा के ।
इस ब्लाग दुआरा आप लोगों मे जागरुकता फैलाने का सार्थक कार्य कर रहे हैं। धन्यवाद।
vaah jnaab bhtrin post ..akhtar khan akela kota rajsthan
it,s good
आज के लेख से काफ़ी कुछ सीख्नने को मिला, नई जानकारी मिली।