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विवाह को अकृत व शून्य घोषित करने की याचिका

मैं ने अपनी मौसी की लड़की से शादी कर ली है और अब वह माँ बनने वाली है। मेरी पत्नी के पिता ने विवाह को शून्य घोषित करने के लिए परिवार न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया है। मुझे क्या करना चाहिए?

-प्रवीण खरे, झाँसी, उत्तर प्रदेश

किसी पुरुष और उस की माँ की बहिन (मौसी) की पुत्री के मध्य सपिंड संबंध है और इस कारण उन के बीच विवाह होना हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 (iv) के द्वारा निषिद्ध बताया गया है। इसी अधिनियम की धारा 11 के द्वारा ऐसे विवाह को शून्य एवं अकृत विवाह कहा गया है। धारा 11 में ही यह उपाय दिया गया है कि विवाह का कोई भी पक्षकार दूसरे पक्षकार के विरुद्ध न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर विवाह के अकृत होने की डिक्री प्राप्त कर सकता है।

स धारा के उपबंध के अनुसार केवल विवाह के पक्षकार ही एक दूसरे के विरुद्ध आवेदन कर सकते हैं अन्य व्यक्ति नहीं। इस कारण से एक शून्य और अकृत विवाह को उस विवाह के पक्षकारों (पति या पत्नी) के अतिरिक्त किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा अकृत व शून्य घोषित करने हेतु प्रस्तुत किया गया कोई भी आवेदन पोषणीय नहीं होगा। यदि आप की पत्नी के पिता ने ऐसा आवेदन प्रस्तुत किया है तो वह पोषणीय न होने के कारण निरस्त कराया जा सकता है। आप और आप की पत्नी दोनों इसी आधार पर उक्त आवेदन का विरोध कर सकते हैं।

प की पत्नी गर्भवती हैं और संतान को जन्म देने वाली हैं। होने वाली संतान वैध मानी जाएगी। वह अपने माता पिता की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त कर सकती है। लेकिन ऐसी संतान परिवार की किसी सहदायिक संपत्ति में हिस्सेदारी प्राप्त करने की अधिकारी नहीं होगी।

हालांकि धारा-11 के अंतर्गत इस तरह के विवाह को अकृत व शून्य घोषित कराने के लिए पति या पत्नी के अतिरिक्त अन्य कोई भी व्यक्ति आवेदन प्रस्तुत नहीं कर सकता। लेकिन विवाह के अवैध होने के कारण उसे अवैध घोषित कराने के लिए ऐसा कोई भी व्यक्ति जिस के हित इस विवाह से प्रभावित हो रहे हों दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकता है (राम प्यारी बनाम धर्मदास, इलाहाबाद उच्च न्यायालय) लेकिन उसे यह बताना होगा कि उस का कौन सा हित इस विवाह से प्रभावित हो रहा है। इस तरह आप अपने पत्नी के पिता द्वारा प्रस्तुत इस याचिका को यदि वह धारा 11 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत की गई है तो पोषणीय न होने के आधार पर चुनौती दे सकते हैं। यदि वह घोषणा का सामान्य वाद है तो इस आधार पर चुनौती दे सकते हैं कि इस विवाह से वादी का कोई हित प्रभावित नहीं हो रहा है।