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अंतर्धार्मिक विवाह किस पद्धति से हों तथा कैसे संरक्षित हों?

समस्या-

मोहम्मद जीशान ने सीतापुर उत्तर प्रदेश से पूछा है-

एक मुस्लिम वयस्क लड़की एक हिन्दू वयस्क लड़के से शादी करना चाहती है। लेकिन लड़के को भय है कि लड़की के घर वाले पुलिस में रिपोर्ट कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में लड़के के लिए क्या विधिक उपचार है। लड़का शादी किस प्रकार से करे विशेष विवाह अधिनियम (special marriage act) में या धर्मानुसार? जिससे उसे भविष्य में कोई समस्या ना हो।

समाधान-

आप का प्रश्न अत्यन्त गंभीर है। विगत एक दो दशकों से, जब से भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण तेज हुआ है। अन्तर्धार्मिक विवाह कठिन से कठिनतर हुए हैं और ऐसा विवाह करने वालों को बहुत परेशानियाँ उठानी पड़ी हैं। न केवल दोनो के परिवार वाले बल्कि उन के रिश्तेदार और समूहों ने भी इस तरह के विवाह में अड़चनें डाली हैं। इस तरह के विवाहों को स्वीकार नहीं किया गया अथवा बहुत अधिक संघर्ष के उपरान्त स्वीकार किया गया। अक्सर लड़की के परिजन रिपोर्ट कराते हैं कि लड़की को बहका कर दबाव से विवाह किया गया। परिजनों के साथ रिश्तेदार, मित्र और राजनैतिक और प्रशासनिक प्रभावशाली व्यक्ति खड़े हो जाते हैं और पुलिस किसी भी तरह लड़की को उस के पति से अलग कर देती है, उस के मां बाप के बीच छोड़ देती है वहाँ उसकी प्रताड़ना आरंभ हो जाती है। एक दो दिन में उसी प्रताड़ना के बीच उस के धारा 164 के बयान मजिस्ट्रेट के सामने कराए जाते हैं। दूसरी और लड़के को लड़की को अपहृत करने और उस के साथ अनेच्छिक यौन संबंध बनाने (बलात्कार) के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाता है। गिरफ्तारी के बाद मारपीट भारतीय पुलिस थानों में आम है। यदि गिरफ्तारी करने वाली पुलिस पर लड़की के परिजनों का प्रभाव हुआ तो यह पिटाई बहुत गंभीर भी हो जाती है। पुलिस के बीच में आ जाने से राज्य की भूमिका भी इस में जुड़ जाती है। तब हम उच्च न्यायालय को रिट जारी करने का क्षेत्राधिकार उत्पन्न हो जाता है।

इस तरह की परिस्थितियों में एक ही सही उपाय है कि दोनों पति-पत्नी उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करें और कहें कि वे विवाह करना चाहते हैं उन के परिजन ऐसा नहीं चाहते और वे जन-बल, धन-बल और पुलिस की मदद से उन्हें ऐसा करने से रोक रहे हैं उन्हें आशंका है कि उन की जान तक जा सकती है। इस कारण पुलिस को हिदायत दी जाए कि वह ऐसी किसी भी कोशिश को रोके और उन्हें स्थिति सामान्य होने तक संरक्षण प्रदान करे। तो आपके ये दोनों लड़के लड़की भी यह उपाय कर सकते हैं और यदि जरा भी आशंका हो ऐसा करना चाहिए। इस से लड़की को भगा ले जाने और उस के साथ बलात्कार के आरोप में मुकदमा दर्ज होने से बचा जा सकता है।

आप का दूसरा प्रश्न है कि ऐसा विवाह विशेष विवाह अधिनियम में होना चाहिए या धार्मिक रीति से। धार्मिक रीति से विवाह करने में कम से कम दोनों में से एक को अपना धर्म परिवर्तन करना होगा। जो जरूरी नहीं कि वे करना चाहें। इस तरह मजबूरी में या केवल विवाह के कारण धर्म परिवर्तन ठीक नहीं है। बेहतर तो यह है कि दोनों या तो अपने अपने धर्म में बने रहें। वैसे भी इस युग में एक धर्म को त्याग कर दूसरे धर्म को अंगीकार करने का कोई औचित्य नहीं रहा है। उस से बेहतर तो धर्मविहीन हो कर एक तार्किक व्यक्ति के रूप मे जीना बेहतर है। इस कारण मेरी व्यक्तिगत सलाह यही है कि ऐसे लोगों को विशेष विवाह अधिनियम में विवाह करना चाहिए। जैसे जैसे राज्य की मशीनरी पर धर्म का प्रभाव बढ़ा है विशेष रूप से हिन्दू धर्म का तब से विवाह पंजीयक जो कि अक्सर जिले का कलेक्टर होता है वह इस तरह के विवाह में यह अड़चन पैदा करता है कि कम से कम लड़के और लड़की के माता पिता में से कोई एक गवाह के रूप में उपस्थित रहे। हालांकि यह विधि विरुद्ध है और सीधे सीधे कानून की मंशा के विरुद्ध है। रिट याचिका प्रस्तुत करते समय इस बात को भी अंकित किया जाना चाहिए और विवाह पंजीयक (जिला कलेक्टर) के विरुद्ध भी रिट जारी कराना चाहिए कि वह इस तरह की अड़चनें विवाह पंजीयन में पैदा न करे।

इतना करने के बाद भी भविष्य में समस्याएँ तो हो ही सकती हैं। जैसे लड़की और लड़के के परिवार वाले आसानी से इस युगल को स्वीकार न करें। उन के जीवन में अक्सर कठिनाइयाँ पैदा करें। समाज में असहयोग मिलने की असुविधा भी होगी। इस का कारण है कि अभी हमारे यहाँ अन्तर्धार्मिक विवाह करने वालों का एक समाज नहीं बन सका है। जब कि अब ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और ऐसे समाज का निर्माण आरंभ हो चुका है। हम हर नगर में ऐसे संगठन बना सकते हैं जिस में इस तरह से विवाह करने वाले और उस का विरोध न करने वाले सम्मिलित हों। जरूरत पड़ने पर ऐसे संगठन अंतर्धार्मिक विवाह करने वालो की परेशानी में उनकी मदद करे।