अंतिम प्रतिवेदन पर मजिस्ट्रेट के निर्णय तक परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं।
माताशरण शर्मा ने अजमेर, राजस्थान से राजस्थान राज्य की समस्या भेजी है कि-
मेरे एक मित्र का पुत्र लव मेरिज कर अपने परिवार से अलग रहता है। पिछले 6 वर्षो से उस का उन से कोई सबंध नहीं हैं। अब उसने अपनी पत्नि की मदद से परेशान करने की नीयत से 498 ए की झूठी एफ आई आर दर्ज करायी। सारे सबूत मित्र के परिवार के पक्ष में होने से पुलिस ने एफआर मित्र के परिवार के पक्ष में लगा अदालत में पेश कर दी। जिस पर अदालत ने एफआर की पुष्टि हेतु उन्हें (पुत्रवधु) को अदालत में हाज़िर होने का नोटिस भेजा जो बाद तामील आ गया। परन्तु वे लोग दो बार हाजिर नहीं हुए। अदालत ने फिर उन्हें तारीख दी है। वो परेशान करने की नीयत से शायद ही अगली पेशी पर आयेंगे। जिस से मेरे मित्र का परिवार भयंकर तनाव मे रह रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में मेरे मित्र को इस समस्या से कानूनी रूप से छुटकारा पाने के लिये क्या करना चाहिए? अदालत से किस तरह से राहत प्राप्त की जा सकती है? क्या अदालती कार्यवाही में परास्त होने के बाद भी पुत्रवधु आगे की अदालत में जा सकती है? इस विषय मे सम्पूर्ण सभांवित स्थिति पर अपनी राय देकर अनुग्रहित करें।
समाधान-
आप के मित्र की सारी घबराहट इस कारण है कि उन्हें न्यायालय की प्रक्रिया का ज्ञान नहीं है और उस अज्ञान के कारण वे परेशान हैं कि अब न जाने क्या होगा। इस के लिए आप के मित्र को चाहिए कि वे किसी स्थानीय और विश्वसनीय वकील की सेवाएँ प्राप्त कर लें और जब भी कोई सवाल मन में हो उस के बारे में वकील से पूछ लें। अक्सर लोग वकील से सवाल तो पूछते हैं लेकिन उस के लिए किसी तरह की फीस का भुगतान नहीं करते। इस कारण से वकील भी कुछ समय के बाद ये समझने लगते हैं कि उन का क्लाइंट बेवजह उन से सवाल पूछता है, उसे वकील पर ही भरोसा नहीं है। यदि आप के मित्र परामर्श के लिए वकील को फीस देने का प्रस्ताव रखेंगे तो उन्हें भी विश्वास होगा और वकील को भी उन्हें कानूनी जानकारियाँ देने में लगने वाले समय का पारिश्रमिक मिल जाएगा.
जिन मामलों में पुलिस का अन्तिम प्रतिवेदन अभियुक्तों के पक्ष में होता है उन में न्यायालय के लिए यह जरूरी है कि वह शिकायती पक्ष को सुनवाई का अवसर दे। वह अवसर न्यायालय शिकायती पक्ष को दे चुका है। लेकिन न्यायालयों के पास समय की कमी होती है। सभी जजों व मजिस्ट्रेटों के दैनिक कार्य का ब्यौरा उच्चन्यायालय को जाता है। हर काम के लिए एक समय उन्हें मिलता है। अंतिम प्रतिवेदन को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए न्यायालय को समय कम मिलता है। इस कारण उस पर न्यायालय कम तरजीह देता है। खुद न्यायालय के पास समय न होने से ही उस ने शिकायती पक्ष को समन मिल जाने पर भी आदेश पारित नहीं किया है। अन्य कारण कोई नहीं दिखाई देता। राजस्थान के न्यायालयों पर कार्यभार अत्यधिक होने से अंतिम प्रतिवेदनों को स्वीकार करने में कुछ समय लगता है।
अंतिम प्रतिवेदन अभियुक्तों के पक्ष में है इस कारण से उन्हें सुनवाई का अवसर नहीं मिलता। केवल शिकायत पक्ष उस अन्तिम प्रतिवेदन पर आपत्तियाँ प्रस्तुत कर सकता है और न्यायालय उन पर सुनवाई कर सकता है। एफआर पर अभियुक्तों के विरुद्ध प्रसंज्ञान ले कर उन्हें न्यायालय में समन से तलब कर सकता है। इस कारण से जब तक अंतिम प्रतिवेदन पर निर्णय नहीं हो जाता है आप के मित्र के पास करने को कुछ नहीं है। आप के मित्र को इस से परेशान नहीं होना चाहिए।
यदि न्यायालय अंतिम प्रतिवेदन को स्वीकार न कर के अभियुक्तों के विरुद्ध प्रसंज्ञान लेता है तो उन्हें समन भेजेगा। समन मिलने पर आप के मित्र प्रसंज्ञान आदेश की प्रतिलिपि प्राप्त कर उस के विरुद्ध ऊँचे न्यायालय में रिविजन याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। इसी तरह यदि अंतिम प्रतिवेदन को स्वीकार कर लिया जाता है तो शिकायती पक्ष भी रिविजन याचिका प्रस्तुत कर सकता है। इस कारण आप अपने मित्र को समझाएँ कि अभी से परेशान होने की आवश्यकता नहीं है जिस दिन उन्हें समन मिले प्रसंज्ञान आदेश की प्रमाणित प्रति के लिए तुरन्त आवेदन करें और प्राप्त करें तथा निगरानी याचिका प्रस्तुत कर दें।
अपनी सटीक सलाह के लिये आभार ।
एक अंतिम जीज्ञासा
माननीय न्यायालय शिकायती पशक्ष को सुनने के अघीकतम कितने अवसर दे सकता हैं ?
सादर