अन्तरिम राहत प्रदान करने के लिए न्यायालय को प्रार्थी के बयान की आवश्यकता नहीं।
|समस्या-
सुषमा तिवारी ने उन्नाव, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिताजी रोडवेज में नौकरी करते हैं। मेरे माता-पिता के बीच विवाद है। मेरी माता के अनुसार वह विवाह के बाद कभी भी प्रसन्न नहीं रही। मेरे पिताजी बहुत लालची हैं। उन्हें पैसों वजह से कुछ दिखाई नहीं देता वे बहुत कंजूस भी हैं। उन का पहला और अन्तिम प्यार पैसा ही है। मैं ने 14 वर्ष की हो कर भी कभी एक रुपया हाथ में नहीं रखा है। मेरे पिता जी ने नकली तलाक के कागज बनवा लिए थे जिस का हमें बहुत बाद में पता लगा। मेरी जन्म 2000 में हुआ। मेरे पिताजी मेरी माँ को बहुत मारते थे मेरी माँ वह सब भी सहन कर लेती थी। मेरे पिता बेटे की इच्छा रखते हैं। शायद इसी कारण से उन्हों ने हम सब से छिपा कर दूसरा विवाह कर लिया है। मेरी माँ ने उस पर आपत्ति की और उन पर खर्चे का मुकदमा कर दिया। लेकिन अभ तक केस मेंमेरी माँ के बयान भी नहीं हुए हैं। मुझे लगता है कि हम सही दिशा में नहीं जा रहे हैं। कृपया हमारा मार्ग दर्शन करें।
समाधान-
यह हमारे देश, समाज और कानून व्यवस्था की दुर्गति है कि आप जैसी लड़की को 14 वर्ष की छोटी उम्र में यह सब सोचना पड़ रहा है। आप के पिताजी ने आप की माताजी के साथ कुछ भी किया हो लेकिन उन्हों ने आप के प्रति भी अपना कोई दायित्व ठीक से नहीं निभाया है।
आप की माता जी सही मार्ग पर हैं। उन्हों ने आप के पिता के विरुद्ध खर्चे का मुकदमा सही ही किया है। इस में उन्हों ने स्वयं अपने लिए और आप के लिए भी भरण पोषण खर्च मांगने का आवेदन अवश्य किया होगा। यह मुकदमा उन्हों ने धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता में किया होगा। उन्हें चाहिए कि वे इस के साथ ही घरेलू हिंसा अधिनियम में आप दोनों के भरण पोषण तथा आप की पढ़ाई लिखाई व आवास की व्यवस्था करने के लिए भी आवेदन प्रस्तुत करें। इस आवेदन में आप दोनों की ओर से यह प्रार्थना भी की जा सकती है कि आप के पिता आप की माताजी और आप के साथ किसी तरह की हिंसा न करें यहाँ तक कि आपके आवास, स्कूल आदि के नजदीक भी न जाएँ।
आप की माता जी को पहले किए गए मुकदमे में और इस नए मुकदमे में भी अन्तरिम रूप से राहत प्रदान करने के लिए न्यायालय को आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए। अन्तरिम रूप से भरण पोषण दिए जाने का आदेश देने के लिए न्यायालय को किसी के बयान लेने की आवश्यकता नहीं है। हम इस मामले में आप का इतना ही मार्गदर्शन कर सकते थे। आप की माताजी ने जो मुकदमा पहले से किया हुआ है उस में कोई वकील भी अवश्य किया होगा। आप को व माताजी को चाहिए कि वे अपने वकील से सारी परिस्थितियों की पूरी चर्चा कर के तय करें कि आगे क्या करना चाहिए? जिस से आप की माता जी स्वयं का और आप का ठीक से पालन पोषण करते हुए एक शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें।
हमारा मानना है कि महिलाओं के लिए सब से बड़ी ताकत और सुरक्षा की गारन्टी उन की खुद की आमदनी और संपत्ति होती है। इस लिए यह भी सलाह है कि आप की माताजी को चाहिए कि वे कोई भी कार्य कर के स्वयं की आमदनी का स्रोत तैयार करें और उसे बढ़ाएँ। आप भी अभी से यह लक्ष्य रखें कि आप को पैरों पर खड़ा होना है अपनी नियमित आमदनी के बदले किसी भी प्रकार का समझौता जीवन में नहीं करना है। विवाह और अच्छे विवाहित जीवन के सपने के बदले भी नहीं।
क्या आप कभी अपने पापा से मिली हो यदि नहीं तो भगवन आपके जैसी बेटी किसी को भी न दे . मान ने बोला आपने मान लिया कभी मिल के पूछो की क्या था . आप दोनों ही जिसे हक़ कहती हो वह आपकी मन सिर्फ कानून से लेना चाहती हो . kes करो और भीख पाओ . आपके पापा या कोई भी मारपीट ke लिए शादी नहीं करता, कहीं न कहीं आपकी माँ भी जिम्मेदार हो सकती हैं. सच ka sath do, jhooth ka नहीं.