क्या अपराधिक मामले में अंतिम रिपोर्ट मंजूर हो जाने पर भी परिवाद पर प्रसंज्ञान लिया जा सकता है?
|समस्या-
परिवादी ने मेरे मित्र के विरुद्ध एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने अन्वेषण के बाद अदालत में अंतिम आख्या (Final Report) प्रस्तुत की जिस के अनुसार मेरे मित्र पर कोई आरोप साबित नहीं पाया गया। न्यायालय द्वारा परिवादी को समन करने पर उस ने न्यायालय के समक्ष शपथ-पत्र दिया कि पुलिस ने अन्वेषण सही किया है और अपराध घटित न हुआ पाया जाने के कारण वह केस चलाना नहीं चाहता। न्यायालय ने अंतिम आख्या को स्वीकार कर लिया। लेकिन परिवादी के विरूद्ध किसी अन्य व्यक्ति को हानि पहुँचाने के लिए लोक सेवक को उस की विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करने हेतु मिथ्य़ा सूचना देने के लिए धारा 182 आईपीसी के अंतर्गत कार्यवाही प्रारम्भ कर दी। उसके बाद परिवादी की पत्नी ने उसी घटना के सम्बन्ध में, उन्हीं तथ्यों के आधार पर उसी न्यायालय में परिवाद दायर कर मेरे मित्र के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने की प्रार्थना की और कहा कि उस के पति द्वारा दर्ज कराए गए मामले में पुलिस ने गलत अंतिम आख्या प्रस्तुत की है। परिवादी की पत्नी ने अपने परिवाद के समर्थन में गवाही दी है। क्या न्यायालय एक ही घटना के मामले में अंतिम आख्या को पुनः खोल सकता है? यदि नहीं, तो किस धारा के अंतर्गत? इस सम्बन्ध में माननीय सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के निर्णय प्रकाश डालते हों उन का विवरण उपलब्ध करा सकें तो उचित होगा।
-राम पाल सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
समाधान-
इस मामले में आप और आप के मित्र व्यर्थ ही चिंतित हो रहे हैं। आप के मित्र के विरुद्ध पहले एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुई जिस में पुलिस ने पाया कि इस तरह का अपराध घटित ही नहीं हुआ है और उस में अंतिम आख्या प्रस्तुत कर दी। न्यायालय के लिए यह आवश्यक था कि मामले में अंतिम आख्या को स्वीकार करने के पूर्व परिवादी को सुनवाई का अवसर देता। उस ने ऐसा अवसर परिवादी को प्रदान किया। जिस में स्वयं परिवादी ने पुलिस के अन्वेषण के परिणाम को सही स्वीकार करने हेतु शपथ पत्र प्रस्तुत किया। न्यायालय ने अंतिम आख्या को स्वीकार कर लिया। लेकिन न्यायालय ने पाया कि परिवादी ने पुलिस को मिथ्या सूचना इस कारण से दी थी कि वह अपनी शक्तियों का प्रयोग आप के मित्र को हानि पहुँचाई जाए। न्यायालय ने परिवादी के विरुद्ध धारा 182 आईपीसी में कार्यवाही कर उचित किया है।
इस के उपरान्त एक नया परिवाद उसी परिवादी की पत्नी ने प्रस्तुत किया है जिस में उस ने पुलिस पर गलत अंतिम आख्या प्रस्तुत करने का आरोप लगाते हुए आप के मित्र के विरुद्ध मुकदमा चलाने की प्रार्थना की है। इस में कहीं कोई विरोधाभास नहीं है। पति और पत्नी दो अलग अलग व्यक्तित्व हैं। यदि परिवादी की प्रथम सूचना रिपोर्ट में ऐसे किसी अपराध की सूचना दी गयी थी जिस में परिवादी की पत्नी को चोट पहुँची हो या उसे किसी तरह की हानि हुई हो तो प्रभावित व्यक्ति पत्नी है और वह न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकती है। इस तरह के परिवाद पर न्यायालय को सुनवाई करनी होगी। जो साक्ष्य न्यायालय के सामने आएगी उस के आधार पर न्यायालय यह निश्चित करेगा कि आप के मित्र के विरुद्ध कार्यवाही करने का कोई आधार है अथवा नहीं है।
उक्त दोनों ही मामलों में अभी तक ऐसा कोई अवसर उपस्थित नहीं हुआ है जिस में आप के मित्र को सुनवाई का कोई अवसर दिया जाए। आप के मित्र को तो सुनवाई का अवसर तभी मिल सकता है जब कि उन के विरुद्ध किसी अपराध का प्रसंज्ञान न्यायालय द्वारा ले लिया जाए। तब तक आप के मित्र केवल यह कर सकते हैं कि जो कार्यवाहियाँ अभी तक न्यायालय के समक्ष हुई हैं उन से संबंधित दस्तावेजों व न्यायालय के आदेशों की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ प्राप्त कर के रखें जिस से आगे कार्यवाही की जा सके।
यदि न्यायालय उक्त मामले में आप के मित्र के विरुद्ध प्रसंज्ञान ले लेता है तो आप के मित्र प्रसंज्ञान लिए जाने के आदेश के विरुद्ध निगरानी प्रस्तुत कर उसे चुनौती दे सकते हैं। जिस में दोनों प्रकरणों के दस्तावेजात और आदेश उन की मदद करेंगे। अभी आप के मित्र को परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। क्यों कि इस स्तर पर आरोपी पक्ष प्रवेश ही प्रकरण में होना संभव नहीं है इस कारण से इस मामले में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय भी आप को नहीं मिलेंगे।