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वाद कारण उत्पन्न हुए बिना किया गए परिवाद पर प्रसंज्ञान लेना अवैध है।

rp_NIAct.jpgसमस्या-

एडवोकेट बृजेश पाण्डेय ने सतना, मध्यप्रदेश से समस्या भेजी है कि-

धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम (निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट) के अंतर्गत चेक बाउंस के प्रकरण में परिवादी के द्वारा परिवाद न्यायालय मे प्रस्तुत करने की समय सीमा के सात दिन पहले ही दायर कर दिये जाने से माननीय न्यायालय ने प्री-मेच्योर प्रकरण होने के कारण प्रकरण को खारिज कर दिया। तब परिवादी ने जिला सत्र-न्यायालय में निगरानी प्रस्तुत की। परंतु न्यायालय ने निचली अदालत के निर्णय की पुष्टि कर के निर्णय यथावत रखा है। कृपया यह सलाह दें की अब परिवादी को क्या करना चाहिए। चेक बाउंस के इस प्रकरण मे आरोपी को क्या फायदा हो सकता है, या आरोपी को कुछ करने की आवश्यकता है।

समाधान

ब्रजेश जी,

प स्वयं वकील हैं। आप ने योगेन्द्र प्रताप सिंह बनाम सावित्री पाण्डे के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पढ़ा होगा। चैक बाउंस होने की सूचना प्राप्त होने के 30 दिनों में चैक धारक चैक जारीकर्ता को चैक की राशि अदा करने हेतु लिखित नोटिस देगा। यह नोटिस मिलने की तिथि से 15 दिन की अवधि में चैक जारीकर्ता को चैक की राशि चैक धारक को अदा करनी है, यदि वह 15 दिन की अवधि में इस राशि का भुगतान नहीं करता है तो 15 दिन की इस अवधि के समाप्त होने पर धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम के अंतर्गत वाद कारण उत्पन्न होता है। वाद कारण उत्पन्न हो जाने के उपरान्त एक माह की अवधि में इस अपराध का परिवाद लिखित में मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत किया जा सकता है। इस निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया है कि यदि वाद कारण उत्पन्न होने के पूर्व कोई शिकायत प्रस्तुत की जाती है तो वह अवैध होगी और ऐसी शिकायत पर प्रसंज्ञान लेना भी अवैध होगा चाहे प्रसंज्ञान लेने के समय तक वाद कारण उत्पन्न क्यों न हो गया हो। इस परिवाद को दुबारा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। हाँ, एक नया परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है, लेकिन उसे भी कानून के अनुसार मियाद में होना चाहिए।

स निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने सभी तब तक लंबित मुकदमों में यह राहत प्रदान कर दी थी कि यदि इस तरह का कोई प्रीमेच्योर प्रकरण लंबित है तो परिवादी नया परिवाद प्रस्तुत कर सकता है जिस में गलत परिवाद प्रस्तुत करने में व्यतीत समय को माफ करते हुए परिवाद को मियाद में मान लिया जाए। इस तरह आप के मामले में परिवाद के मजिस्ट्रेट के न्यायालय में लंबित रहते हुए अथवा उस की निगरानी के लंबित रहते हुए प्रीमेच्योर परिवाद को वापस लेते हुए नया परिवाद प्रस्तुत कर दिया जाता तो वह मियाद में होता और मुकदमे को बचाया जा सकता था। लेकिन अब तो निगरानी का निर्णय हो चुका है और नया परिवाद प्रस्तुत नहीं हुआ है तो उस का लाभ नहीं लिया जा सकता।

च्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है कि नया परिवाद प्रस्तुत होने पर उस में मियाद की जांच की जाएगी और उचित कारण होने पर मियाद के बाहर हुई देरी को माफ किया जा सकता है। हमारी राय में जिस चैक के बारे में आप ने राय पूछी है उस चैक का मामला तो समाप्त हो चुका है। कोई परिवाद अब दुबारा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यदि परिवादी यह प्रमाणित करे कि चैक वास्तव में किसी विशिष्ट दायित्व के लिए दिया गया था और उस दायित्व के संबंध में धन की वसूली के लिए कोई दीवानी वाद अब भी लाया जा सकता है तो दीवानी वाद प्रस्तुत किया जा सकता है।

स मामले में जो भी करना है वह परिवादी को ही करना है। आरोपी के लिए करने को कुछ नहीं है। आरोपी को तो परिवादी या उस के वकील की जल्दबाजी के कारण जो लाभ मिलना है वह मिल चुका है। अब यह परिवाद दुबारा पुनर्जीवित हो सकना संभव नहीं है।

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