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अपील और पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) में क्या अन्तर है?

समस्या-

पील और रिवीजन पिटीशन में क्या अंतर है? लोग राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष अपील या रिवीजन क्यों प्रस्तुत करते हैं?

-बबीता वाधवानी, जयपुर, राजस्थान

समाधान-

प की समस्या एक उपभोक्ता विवाद से संबंधित है।  हमारे यहाँ उपभोक्ता विवादों को सुलझाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 अधिनियमन किया गया है। इस अधिनियम की धारा-12 सपठित धारा 11 (1) के अंतर्गत कोई भी उपभोक्ता 20 लाख रुपए तक के मूल्य के उपभोक्ता विवाद की शिकायत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच को प्रस्तुत कर  सकता है।  20 लाख से अधिक और अधिनियम की धारा-17 (a) (i)  के अंतर्गत एक करोड़ रुपये तक के मूल्य के उपभोक्ता विवाद की शिकायत राज्य उपभोक्ता आयोग को तथा अधिनियम की धारा-21 (a) (i)  के अंतर्गत एक करोड़ से अधिक मूल्य के उपभोक्ता विवाद की शिकायत राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को प्रस्तुत कर सकता है।

किसी भी उपभोक्ता विवाद में जिला मंच द्वारा दिए गए अंतिम आदेश की अपील अधिनियम की धारा-17 (a) (ii)  के अंतर्गत राज्य आयोग को प्रस्तुत की जा सकती है। जिस में वह अंतिम आदेश पारित कर सकता है।  इसी तरह राज्य आयोग द्वारा किसी उपभोक्ता विवाद में अधिनियम की धारा-17 (a) (i)  के अंतर्गत ग्रहण की गई उपभोक्ता विवाद में दिए गए आदेश की अपील राष्ट्रीय आयोग को अधिनियम की धारा-21 (a) (ii)  के अंतर्गत प्रस्तुत की जा सकती है। राष्ट्रीय आयोग द्वारा अधिनियम की धारा-21 (a) (i)  के अंतर्गत ग्रहण किए गए उपभोक्ता विवाद के अंतिम आदेश की अपील अधिनियम की धारा-23 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत की जा सकती है।

दि किसी उपभोक्ता विवाद में जिला मंच द्वारा अंतिम आदेश पारित किया जाता है और राज्य आयोग के समक्ष उस आदेश की अपील प्रस्तुत की जाती है तथा राज्य आयोग उस अपील में अपील को स्वीकार करते हुए अथवा उसे अस्वीकार करते हुए  कोई आदेश पारित करता है तो राज्य आयोग द्वारा अपील का निस्तारण करते हुए दिए गए आदेश की कोई अपील करने का कोई उपबंध उपभोक्ता संरक्षण में नहीं दिया गया है। इस का सीधा अर्थ यह है कि इस अधिनियम में दूसरी अपील करने का कोई अधिकार किसी पक्षकार को प्रदान नहीं किया गया है। ऐसी अवस्था में यदि राज्य आयोग द्वारा किसी अपील का निस्तारण करते हुए कोई आदेश दिया जाता है और उस से किसी पक्षकार को कोई नाराजगी है तो वह अपील प्रस्तुत नहीं कर सकता और उसे इस अधिनियम में दिए गए अन्य उपाय का सहारा लेना पड़ेगा।

पभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा  21 (b) द्वारा राष्ट्रीय आयोग को यह क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है कि वह किसी भी राज्य आयोग के समक्ष लंबित या उस के द्वारा निर्णीत किए गए किसी मामले में राज्य आयोग द्वारा उसे कानून से प्रदत्त नहीं किए गए क्षेत्राधिकार का उपयोग करने पर या उसे प्रदत्त किए गए क्षेत्राधिकार का उपयोग करने में असफल रहने पर  अथवा अवैधानिक रूप से या तात्विक अनियमितता के साथ क्षेत्राधिकार का उपयोग करने पर रिकार्ड मंगा सकता है और उचित आदेश पारित कर सकता है। इसी अधिकार को पुनरीक्षण (रिविजन) कहा जाता है।

स प्रकार जब अपील का उपचार उपभोक्ता विवाद के किसी पक्षकार को उपलब्ध नहीं होता है तो वह रिविजन पिटीशन या पुनरीक्षण याचिका के उपचार का प्रयोग करता है।  अपील तथा पुनरीक्षण याचिका में न्यायालय का क्षेत्राधिकार भिन्न होता है।  जहाँ अपील में विवेच्य आदेश के विरुद्ध सभी बिन्दुओं पर विचार किया जा सकता है वहाँ पुनरीक्षण याचिका में न्यायालय केवल इसी बात पर विचार कर सकता है कि क्या राज्य आयोग ने  उसे कानून से प्रदत्त नहीं किए गए क्षेत्राधिकार का उपयोग किया है या वह उसे प्रदत्त किए गए क्षेत्राधिकार का उपयोग करने में असफल रहा है अथवा उस ने अवैधानिक रूप से या तात्विक अनियमितता के साथ क्षेत्राधिकार का उपयोग किया है।

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