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मुकदमे के पक्षकार की मृत्यु पर वादी, प्रार्थी, अपीलार्थी का दायित्व …

समस्या-

अनिल ने पुनसावा, खंडवा, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरी समस्या यह हे कि मेरे दादाजी ने मेरे पिताजी को वसीयत मे सँपूर्ण सँपत्ति का वारिस बनाया। लेकिन 2016 मेरे पिताजी के खिलाफ उनकी बहन, भाई तथा भाँजे ने न्यायालय के फैसले के विरोध में सत्र न्यायालय मे केस चला रखा है। लेकिन मेरे पिताजी की मौत 2017 मे हो गई। अब मैं दुविधा आ गया हूं कि बिना केस जीते मेरा नामांतरण केसे होगा? क्या मुझे फिर केस लगाना पड़ेगा? क्या करूँ?

समाधान-

प के द्वारा दिए गए विवरण से लगता है कोई मुकदमा आप के पिताजी या उन के बहन, भाई तथा भांजे ने किया था जिस में निर्णय हो गया और आप के पिता की बहन, भाई और भांजे ने जिला न्यायालय में उस की अपील कर रखी है जिस के दौरान ही आप के पिताजी का देहान्त हो गया।

इस तरह किसी भी मुकदमे में किसी पक्षकार का देहान्त हो जाने पर प्रक्रिया का उल्लेख दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 22 में वर्णित है।  किसी दीवानी वाद में मुकदमे को दायर करने वाले वादी, अपील में अपीलार्थी और आवेदन में प्रार्थी का यह दायित्व  है कि वह मरने वले पक्षकार की सूचना न्यायालय को दे और आवेदन करे कि उस के विधिक प्रतिनिथियों को रिकार्ड पर ले जिस से मुकदमा आगे चले।

आप के मुकदमे में यदि अपील आप के पिता की थी तो आप का दायित्व था कि आप उन के देहान्त के 90 दिनों में इस तरह का आवेदन प्रस्तुत करते। अन्यथा वह अपील एबेट हो कर खारिज हो जाती। आप के विवरण के अनुसार यह अपील आप के पिता के विरुद्ध अन्य अपीलार्थियों ने की थी। इस स्थिति में अपीलार्थियों का दायित्व है कि वे 90 दिनों में विधिक प्रतिनिधियों को रिकार्ड पर लिए जाने का आवेदन करें। यदि वे आवेदन नहीं करते हैं और आप के पिता को अनुपस्थित मान कर कोई निर्णय किया जाता है तो वह आप पर प्रभावी नहीं होगा। क्यों कि वह अपील ही एबेट हो चुकी होगी। लेकिन आप को तुरन्त अपने पिता के वकील से मिल कर उसे कहना चाहिए कि वह अदालत को आप के पिता के देहान्त की सूचना दे दे। जरूरत हो तो आप की ओर से विधिक प्रतिनिधि रिकार्ड पर लेने का आवेदन प्रस्तुत करे।

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