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अवयस्क के विवाह के शून्यकरण के लिए वयस्क होने के दो वर्ष की अवधि में ही आवेदन संभव

ChildMarriageसमस्या-
नालंदा, बिहार  से अनिल ने पूछा है-

मेरी शादी मेरे माता-पिता ने तथा मेरी पत्नी के माता-पिता ने 15 वर्ष की उम्र में वर्ष 2004 में मेरी मर्जी के बिना कर दी थी। जबकि मैंने इस शादी के लिए अपने पिता एवम् ससुर दोनो को ही मना किया था लेकिन वे नहीं माने। वो लडकी मुझे पसंद नहीं थी और सही से पढ़ी लिखी भी नहीं थी । मैं ने अपनी पत्नी से अभी तक शारीरिक सम्बन्ध भी नहीं बनाया है और ना ही उसे अपने पास रखा है। सभी के दबाब बनाने पर 4 साल पहले पहले उसे पढाने के लिए अपने ससुर को बोला। लेकिन उस का अब कहना है कि उस से अब पढ़ाई नहीं होगी। हर समय आकर गाली गलौज भी ससुराल वाले करते हैं और धमकी देते हैं कि अगर अब मैं उसे नहीं रखता हूँ तो अब वो लोग दहेज का केस कर देंगे।  मेरी नौकरी बर्बाद कर देंगे। मैं क्या करूँ? क्या ये विवाह वैध है? यदि वैध है तो तलाक कैसे लूँ।

समाधान-

प दोनों का विवाह अवैध और शून्य नहीं है। लेकिन बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा -3 ने बालक-बालिका को यह अधिकार प्रदान किया है कि यदि उस का विवाह अवयस्क हालत में कर दिया जाए तो वह उस विवाह को न्यायालय में आवेदन दे कर अकृत करवा सकता है। यह आवेदन बालक या बालिका वयस्क होने के दिन से दो वर्ष की अवधि में न्यायालय को प्रस्तुत कर सकते हैं।

प ने यह नहीं बताया कि आप का विवाह 2004 में किस तिथि को संपन्न हुआ था तथा आप की जन्मतिथि क्या है? इस से यह निर्धारित करना असंभव है कि आप अब भी ऐसा आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर सकते हैं या नहीं। आप ने विवाह के समय 2004 में अपनी उम्र 15 वर्ष बताई। इस तरह आप 2010 में 21 वर्ष की आयु के हो जाते हैं। 21 वर्ष की उम्र के होने से दो वर्ष की अवधि में अर्थात 2012 में आप के 23 वर्ष की उम्र के होने तक यह आवेदन जिला न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता था और आप के विवाह को अकृत घोषित किया जा सकता था। लैकिन इस मामले में आप ने कम से कम एक-दो वर्ष की देरी कर दी है। इन परिस्थितियों में आप का विवाह अकृत घोषित नहीं करवाया जा सकता।

प ने अपनी समस्या में पत्नी को न अपनाने के मात्र दो कारण बताए हैं जिन में से एक उस का पढ़ा लिखा न होना है और दूसरा आप की पसंद का न होना है। इन दोनों कारणों के आधार पर आप विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त नहीं कर सकते। विवाह विच्छेद की डिक्री केवल उन्हीं आधारों पर प्राप्त की जा सकती है जो आधार हिन्दू विवाह अधिनियम में वर्णित हैं। इस के लिए आप को स्वयं किसी स्थानीय वकील को सारी परिस्थितियाँ बता कर सलाह लेनी चाहिए कि आप दोनों का तलाक हो सकता है अथवा नहीं।

न परिस्थितियों में आप के पास अपनी पत्नी को अपनाने के सिवा अन्य कोई मार्ग नहीं है। यदि आप की पत्नी और उस के मायके वाले दहेज का मुकदमा करने की धमकी दे रहे हैं तो उस का उद्देश्य यही है कि आप अपनी पत्नी को अपना लें। यदि वे दहेज का मुकदमा करते हैं तो यह झूठा होगा और बाद में समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसे ले कर आप को परेशान तो किया ही जा सकता है। इन परिस्थितियों में बहुत सोच समझ कर निर्णय लें। क्यों कि आप अपनी पत्नी के साथ निबाह कर पाएंगे यह संभव नहीं लग रहा है। इस स्थिति में कोई मार्ग ऐसा निकल आए कि दोनों पति-पत्नी आपसी सहमति से विवाह विच्छेद कर लें तो सब से उत्तम है। अन्यथा, फिलहाल तो यही मार्ग है कि आप अपनी पत्नी को अपना लें।

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