अशक्तता के कारण सेवानिवृत्ति पर आश्रितों को नौकरी देने की सरकारों की नीति
|मैं देवबंद (सहारनपुर) में रह रहा हूँ। मैं सिविल अपील सं. 4210/ 2003 शिवामूर्ती बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक 12.08.2008 को दिए गए निर्णय के बारे में जानना चाहता हूँ, जिस की सूचना 15 अगस्त 2008 के अमर उजाला में प्रकाशित हुई है। इस निर्णय के अनुसार यदि कोई सरकारी कर्मचारी शारीरिक रूप से कार्य करने में अक्षम हो जाए तो उस के किसी आश्रित को उस के स्थान पर नौकरी दी जा सकती है।
क्या यह पूरे देश में प्रभावी होगा? मुझे जल्दी इस निर्णय के नियमों और उपनियमों के बारे में बताएँ।
आप ने सर्वोच्च न्यायालय के जिस निर्णय का उल्लेख किया है वह अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में है। इस निर्णय की एक प्रमुख बात यह है कि इस में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति राज्य की नीति से सम्बद्ध मामला है और इस में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
मामला यह था कि आंध्रप्रदेश की सरकार ने 30 जुलाई,1980 के सरकारी आदेश से एक योजना लागू की गई थी जिस में चिकित्सकीय आधार पर अक्षम होने के आधार पर सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के आश्रितों को अनकंपा नियुक्ति दिए जाने का प्रावधान था। 4 जुलाई 1985 तो सरकारी आदेश से इस योजना में यह संशोधन किया गया कि सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी की वास्तविक सेवानिवृत्ति के पांच या अधिक वर्ष शेष हों तभी इस योजना का लाभ वह कर्मचारी उठा पाएगा। 9 जून 1998 को एक और सरकारी आदेश यह जारी हुआ कि इस योजना का अनुचित लाभ न उठाया जाए इस के लिए जब भी इस योजना के अंतर्गत सेवानिवृत्ति हेतु किसी कर्मचारी का आवेदन प्राप्त होगा तो उसे मेडीकल बोर्ड के समक्ष भेजा जाएगा। मेडीकल बोर्ड द्वारा मामला उचित पाए जाने पर जिला स्तर की, और सचिवालय के कर्मचारियों के मामले में राज्य स्तर की समिति के पास अनुशंसा के लिए भेजा जाएगा जो मामलों की जांच करेगी और निश्चित मानदंडों के आधार पर अपनी सिफारिश देगी। जिस के उपरांत ही राज्य सरकार निर्णय करेगी कि आवेदक कर्मचारी को इस योजना के अंतर्गत सेवा निवृत्ति की अनुमति प्रदान की जाए अथवा नहीं। 25 जून 1999 को एक सरकारी स्मरणपत्र जारी किया गया कि इस योजना के अंतर्गत मामले में सरकार द्वारा अनुमति दिए जाने की तिथि के उपरांत सेवा काल 5 वर्ष का शेष होना चाहिए, अर्थात वास्तविक सेवानिवृत्ति की तिथि में पाँच वर्ष शेष होने चाहिए।
इस मामले में जिन लोगों ने आवेदन किए थे उन्हों ने आवेदन की तिथि से पांच साल की सेवा अवधि शेष मानते हुए आवेदन किए थे और निर्णय की प्रक्रिया लंबी होने के कारण देरी हो गई थी और अवधि पांच वर्ष से कम रह गई जिस के कारण आवेदन इस योजना में स्वीकार योग्य न रह गया थे। प्रभावित कर्मचारियों ने इस मामले में अधिकरण के समक्ष अपीलें प्रस्तुत की जो मंजूर कर ली गईं। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में रिटें प्रस्तुत की। उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि इस मामले में पांच वर्ष की अवधि सेवानिवृत्ति की तिथि से ही मानी जाएगी। मामला उच्च न्यायालय गया और वहाँ यह कहते हुए कि यह राज्य का नीतिगत मामला है और इस में न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, निर्णय दिया कि पांच वर्ष की अवधि राज्य सरकार द्वारा सेवानिवृति को अनुमति देने की तिथि से देखी जाएगी। निर्णय में यह भी उल्लेख है कि राज्य सरकार ने इस योजना को वापस ले लिया है। यदि राज्य सरकार चाहे तो इस योजना को पुनः लागू कर सकती है।
इस प्रकार यह निर्णय कोई भी लाभकारी प्रभाव कर्मचारियों के हित में नहीं रखता। इस तरह की योजनाएँ यदि कहीं किसी रा
जकीय संस्थान में लागू हैं तो कर्मचारी को अपने संस्थान या विभाग में ही पता करना पड़ेगा कि उन के यहाँ यह योजना लागू है अथवा नहीं? और इस योजना का लाभ उन्हें मिल सकता है या नहीं। हाँ यदि किसी कर्मचारी के संस्थान या विभाग या राज्य में यह योजना लागू हो तो फिर उस योजना को सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय प्रभावित करेगा।
वैसे भी अनुकंपा नियुक्ति के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का यह मानना है कि यह सरकार की अनुकंपा है न कि कर्मचारी का अधिकार।
bahut achchha kar rahen aap.
वाह दादा… ग्यानवर्धन के लिये आभार..
मैं पहले भी एकाधिक बार कह चुका हूं – काश ! कानून की किताबों को आपकी लेखनी मिल जाती ।
वाह बहुत खुब अच्छी अच्छी जानकारिया दे रहे है आप.
द्विवेदी जी नमस्कार.
बढ़िया काम की जानकारी मिली है आज तो.
आज मैं भी एक सवाल पूछ रहा हूँ. उम्मीद है कि जल्दी ही उत्तर भी मिल जायेगा.
अगर किसी रेलयात्री के पास जनरल टिकट है और वह जनरल डिब्बे में भीड़ होने के कारण चढ़ नहीं सका, फिर वह शयनयान वाले डिब्बे में चढ़ जाता है. अगर टीटी उसे पकड़ लेता है तो फिर जेल जाने की धमकी देकर उससे सौ डेढ़ सौ रूपये लेकर हड़प लेता है.
तो क्या ऐसे मामलों का दंड, जेल और/या जुरमाना ही है. रेलवे के टाइम टेबल में तो लिखा होता है कि ऐसे मामलों में यात्री को पकडे जाने पर डिब्बे से निकाला जा सकता है.
एक और अच्छी जानकारी मिली कानून के बारे मे.
रामराम.