असफल नसबंदी में चिकित्सक की लापरवाही, असावधानी पर ही क्षतिपूर्ति
|समस्या-
राजस्थान से सुहानी पाटीदार ने पूछा है-
मेरा नसबन्दी आपरेशन 2006 में सरकारी अस्पताल में हुआ था। इस के बाद 2007 में मैं ने एक बेटी को जन्म दिया। मैं ने जिला प्रशासन से सम्पर्क किया तो 30000 रुपये के मुआवजे की बात हुई तो मैं ने मना कर दिया। मैं ने जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया तो वहाँ भी सही मुवावजा नहीं मिला। अभी मेरा केस उच्च न्यायालय में लंबित है। क्या मुझे मेरी बेटी के जीवन के लालन पालन के लिये 30000 रुपये पर्याप्त है? मुझे अदालती काम काज की कोई जानकारी नहीं है। कृपया मुझे सही जानकारी दें।
समाधान-
आरंभ में इस तरह के बहुत मामले अदालतों में प्रस्तुत हुए और अदालतों ने भारी भरकम राशि मुआवजे के बतौर लोगों को दिलाई भी। लेकिन फिर उन की अपीलें उच्च न्यायालयों के समक्ष प्रस्तुत हुईं और बाद में सर्वोच्च न्यायालय तक मामला गया। सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब राज्य बनाम शिव राम एवं अन्य के मामले में दिनांक 25 अगस्त 2005 को निर्णय पारित करते हुए कहा कि इस तरह के क्षतिपूर्ति के मामले दुष्कृत्य विधि (Law of Tort) के अंतर्गत ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। दुष्कृत्य विधि का सामान्य सिद्धान्त है कि जिस के विरुद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का वाद प्रस्तुत किया गया हो उस की कोई असावधानी और लापरवाही रही हो। यदि ऐसा नहीं है तो क्षतिपूर्ति नहीं दिलाई जा सकती।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में यह भी कहा कि कोई भी चिकित्सक किसी भी ऑपरेशन के शतप्रतिशत सफल होने की गारंटी नहीं देता। चिकिसा विज्ञान में पूरी सजगता और सावधानी रखने के उपरान्त भी ऑपरेशन के असफल होने की संभावना बनी रहती है। ऐसी स्थिति में ऑपरेशन के असफल होने के लिए चिकित्सक को लापरवाह और असावधान नहीं माना जा सकता। यदि चिकित्सक या अस्पताल ने ऑपरेशन के पूर्व आपरेशन के शतप्रतिशत सफल रहने की गारंटी दी हो तो ही बिना लापरवाही और असावधानी साबित किए किसी तरह की क्षतिपूर्ति दिलाई जा सकती है। अन्यथा किसी तरह की क्षतिपूर्ति दिलाया जाना संभव नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त निर्णय में वादी को कोई भी क्षतिपूर्ति नहीं दिलायी। लेकिन यह आदेश दिया कि यदि निचले न्यायालय के निर्णय व डिक्री के अनुसार सरकार ने 50,000 रुपये का भुगतान कर दिया हो तो उसे वसूल नहीं किया जाए।
इस तरह यदि आप के मामले में चिकित्सक ने अथवा अस्पताल ने ऑपरेशन सफल रहने की कोई गारंटी नहीं दी हो या फिर आप चिकित्सक या अस्पताल की लापरवाही व असावधानी साबित नहीं कर सके हों तो आप को उच्च न्यायालय से अपनी अपील वापस ले कर जो भी क्षतिपूर्ति जिला न्यायालय से दिलाई गई हो उसे प्राप्त कर लेना चाहिए। अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय की रोशनी में आप की अपील में आप की स्वयं की डिक्री निरस्त की जा सकती है।
क्या बिना केस लगाये prashasan कुछ मुआवजा दिल सकता हैयदि व्यक्ति बोहुत गरीब है,ओअर नया बच्चा पलने मैं असमर्थ hai
कानून के आधार पर नहीं सरकार और प्रशासन की ऐसे लोगों को सहायता प्रदान करने की नीति के आधार पर कुछ हो सकता है। लेकिन वह अधिकार नहीं केवल अनुग्रह होगा। आप जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री सहायता कोष से पीड़ित को कुछ सहायता प्रदान करवा सकते हैं।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.सचाई साबित करने के लिए जिरह (Cross Examination) का प्रयोग करें।
बहुत ही सटीक जानकारी उपलब्ध कराइ हॆ आपने, धन्यवाद
धन्यवाद
सुहानी राजस्थान