आतंकवाद से निपटने को कानूनी ढांचा (पोटा)
|1995 में टाडा के समाप्त कर दिए जाने के बाद देश ने 1999 की इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 का कंधार अपहरण और 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हमले जैसी आतंकवादी घटनाओं को सहा। जिस के परिणाम स्वरूप सरकार को आतंकवाद निरोधक अध्यादेश लाना पड़ा जो आगे जा कर कानून बना। इस अध्यादेश को लाए जाने के उद्देश्यों और कारणों के वक्तव्य में कहा गया था कि….
“देश अपने आंतरिक सुरक्षा के प्रबंधन में विविध चुनौतियों का सामना कर रहा है। देश में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि, सीमापार आतंकवादी गतिविधियाँ और देश के विभिन्न भागों में विद्रोही गुट उभर कर सामने आए हैं। अक्सर ही संगठित अपराध और आतंकवादी गतिविधियाँ एक दूसरे से निकटता से जुड़े रहे हैं। आतंकवाद ने वैश्विक आयामों को ग्रहण कर लिया है और पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती बन गया है। आतंकवादी समूह और संगठन संचार और प्रौद्योगिकी के आधुनिक उच्च तकनीकी द्वारा उपलब्ध संचार प्रणालियों, परिवहन, अत्याधुनिक हथियारों और विभिन्न साधनों का उपयोग कर रहे हैं। इन के कारण वे इच्छानुसार जनता को निशाना बना कर आतंक पैदा कर रहे हैं। मौजूदा आपराधिक न्याय प्रणाली इस प्रकार के जघन्य अपराधों से निपटने के लिए सक्षम नहीं है, जिन के लिए प्रस्तावित कानून में प्रावधान किए गए हैं। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए आतंकवाद की रोकथाम के लिए यह कानून बनाना आवश्यक महसूस किया गया है। आतंकवादियों की गतिविधियों से निपटने के लिए बनाए गए इस प्रस्तावित कानून में इसके दुरूपयोग की संभावना को रोकने के लिए आवश्यक प्रावधान किए गए हैं।
संसद सत्र में नहीं होने के कारण इस कानून के लिए राष्ट्रपति द्वारा आतंकवाद निरोधक अध्यादेश, 2001 दिनांक 24 अक्तूबर, 2001 को जारी किया गया। दिसम्बर, 2001 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आतंकवाद निरोधक विधेयक, 2001 को लोक सभा में लाने के लिए प्रयास किए गए लेकिन 13 दिसंबर को संसद पर हुए हमले के कारण संसद को 19 दिसंबर को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिए जाने के कारण यह विधेयक पेश नहीं किया जा सका और राष्ट्रपति द्वारा 30 दिसम्बर को आतंकवाद निरोधक (द्वितीय) अध्यादेश, जारी करना पड़ा। बाद में इस अध्यादेश का स्थान लेने के लिए आतंकवाद निरोधक विधेयक, 2002 संसद के समक्ष प्रस्तुत किया गया और दिनांक 28.03.2002 को संसद ने इसे पारित कर दिया। (जारी)
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अब तक की दोनों टिप्पणियां सरसरी तौर पर ही पढी हैं ।
मेरे विचार से, कानून तो हामरे पास पहले सह पर्याप्त हैं । आवश्यकता है, उन पर कठोरता से अमल करने की ।
सरकार नहीं चलती है, सरकार का जलवा चलता है और जलवा बनता है – कानून के राज से । कानून का राज, सब पर, समान रूप से ।
पंडितजी, ज़ान की ज़मानत मिले, तो एक प्रश्न करूँ, क्या न्यायव्यव्स्था के लचरपन से बहुत सारी तक़लीफ़ें हमनें स्वयं उत्पन्न नहीं की हैं ?
किसी भी आतंकी को यदि कोई पैरोकार न मिले, ऎसी स्थिति की भी कल्पना करके देखें ।
हो सकता है, कि 10-12 निर्दोष भी न्याय की बलिवेदी पर कुर्बान हो जायें, हम इसकी तुलना 15-16 ज़ाँबाज़ों के खोने से कर संतोष कर लेंगे, किन्तु 200-250 निर्दोषों के मारे जाने की घटनाओं में निश्चित रूप से लगाम लग सकेगा, डील बुरी न होगी !
ऎसे अमानवीय कृत्य के अपराधियों को मानवाधिकार के लाभ क्यों मिलें ? हम अपना घर देखें, फिर अंतर्राष्ट्रीय छवि की चिन्ता करें..समरथ को नहीं दोष गोंसाई !
यह तो निश्चित है, कि बिना स्थानीय सहयोग के कोई भी वारदात का अंज़ाम दिया जा नामुमकिन है, इनको बख़्सा न जाये ।
कोफ़ेकोसा.. रासुका, फिर पोटा फिर ये ..फिर वो , क्या एक सार्वभौमिक कानून ही काफी नहीं है ?
ऎसे कानून… तकिये के नीचे रखे जाने वाले रिवाल्वर से ज़्यादा हैसियत नहीं रखते । जिसको बना कर सरकारें बना कर निश्चिन्त हो जाती हैं ।
क्या यह एक अनाड़ी डाक्टर से इलाज़ के परिदृश्य का परिचय नहीं दे रहीं हैं, यह गोली काम नहीं आयी, अब यह इन्ज़ेक्शन देकर देखो, यह भी नहीं.. तो अब यह पुल्टिस बाँध कर देखो, शायद इससे राहत मिले ।
यही शायद, आतंकतंत्र को रोकने के मशीनरी को बाधित करते हैं, सरकारीतंत्र की इच्छाशक्ति दृढ़ होते होते रह जाती है ।
दे नीड टू बी ट्राइड इन कैमरा, सारी डियर.. आई डिफ़र विथ दीज़ प्लेथोरा आफ़ कानून्स !
दिनेश जी आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी है धन्यवाद
भारत की सुरक्षा के सूत्र
1. भारत में कोई भी व्यक्ति या समुदाय किसी भी स्थिति में जाति, धर्म,भाषा,क्षेत्र के आधार पर बात करे उसका बहिष्कार कीजिए ।2. लच्छेदार बातों से गुमराह न हों ।3. कानूनों को जेबी घड़ी बनाके चलने वालों को सबक सिखाएं ख़ुद भी भारत के संविधान का सम्मान करें ।4. थोथे आत्म प्रचारकों से बचिए ।5. जो आदर्श नहीं हैं उनका महिमा मंडन तुंरत बंद हो जो भी समुदाय व्यक्ति ऐसा करे उसे सम्मान न दीजिए चाहे वो पिता ही क्यों न हो।6. ईमानदार लोक सेवकों का सम्मान करें ।
7. भारतीयता को भारतीय नज़रिए से समझें न की विदेशी विचार धाराओं के नज़रिए से ।8. अंधाधुंध बेलगाम वाकविलास बंद करें ।9. नकारात्मक ऊर्जा उत्पादन न होनें दें ।10. देश का खाएं तो देश के वफादार बनें ।11. किसी भी दशा में हुई एक मौत को सब पर हमला मानें ।12. देश की आतंरिक बाह्य सुरक्षा को अनावश्यक बहस का मसला न बनाएं प्रेस मीडिया आत्म नियंत्रण रखें ।13. केन्द्र/राज्य सरकारें आतंक वाद पे लगाम कसने देश में व् देश के बाहर सख्ती बरतें । 14: वंदे मातरम कहिये