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आत्महत्या की बात करना बन्द कर मुकदमे में अपनी प्रतिरक्षा करें।

rp_two-vives2.jpgसमस्या-

अतुल कुमार ने कोटद्वार, पौढ़ी गढ़वाल, उत्तराखंड़ से पूछा है-

हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13ख के अन्तर्गत मेरा डायवोर्स 11 दिसम्बर 2014 को हो गया था अप्रेल 2015 में मैं ने दूसरा विवाह कर लिया। 04 मई 2015 को मेरी एक बेटी भी हो चुकी है। अब मेरी पूर्व पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अन्तर्गत भरण पोषण केलिए मुकदमा किया है जिस में 15000 रुपए प्रतिमाह भरण पोषण की मांग की है। जब कि मेरा वेतन 22400 रु. प्रतिमाह ही है। इस में से भी 16000 रु. प्रतिमाह हाउसिंग लोन की किस्त कट जाती है। ऐसे में मैं क्या कर सकता हूँ। मेरे पास आत्महत्या करे के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

समाधान-

मैं ने अपने जीवन में अनेक ऐसे लोग देखे हैं जिन्हों ने मुझे कहा कि यदि उन की समस्या हल नहीं हुई तो उन के पास आत्महत्या के सिवा कोई अन्य विकल्प नहीं है। मैं ने उन की मदद करने की कोशिश भी की। कुछ की समस्या का हल निकला और कुछ की का नहीं। पर उन में से किसी ने आत्महत्या नहीं की है। आप भी नहीं करेंगे। दरअसल उन में से हर कोई आत्महत्या करने की बात सिर्फ सहानुभूति बटोरने और मुफ्त में मदद प्राप्त करने के लिए करता था। मुझे आप भी उन्हीं में से एक लगते हैं। आप आत्महत्या नहीं करेंगे, और कर भी लें तो आप ने इस प्रश्न में जो आत्महत्या करने की बात लिखी है उस से किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वस्तुतः अब मैं आत्महत्या करने की बात करने वालों से घृणा करने लगा हूँ। खैर¡

आप की एक बात समझ नहीं आई की आप की जो बेटी मई 2015 में हुई है उस की माँ कौन है? आप को आत्महत्या ही करनी थी तो इस बेटी को संसार में आने ही क्यों दिया? केवल पूर्व पत्नी के भरण पोषण मांग लेने मात्र से आप आत्महत्या की सोचने लगे?

पूर्व पत्नी ने जो भरण पोषण मांगा है न्यायालय उसे वही देने का आदेश नहीं देगी। आप इस आवेदन का प्रतिरक्षा अच्छे वकील की मदद से करेंगे तो या तो भरण पोषण देना ही नहीं पड़ेगा और देना पड़ा तो वह ऐसा होगा जो आप दे सकें। आप आत्महत्या की बात करना बंद करें और मुकदमा लड़ें। यहाँ आत्महत्या की बात करने के लिए सार्वजनिक रूप से माफी भी आप को मांग लेनी चाहिए।

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