DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

आपसी बातचीत से समाधान निकालने के लिए प्रयत्न करें …

two wives one husbandमस्या-

वनित ने जलालाबाद, पंजाब से समस्या भेजी है कि-

मेरे विवाह १४-०७-२०१३ को विधिवत हुआ था। ये मेरी दूसरी शादी थी। मेरी पहली पत्नी का देहांत हो चुका है। मेरे पास पहले भी एक बेटी थी। पूनम (जिस से दोबारा शादी हुई) के पास भी एक बेटी थी। शादी के बाद दोनों बेटियां इकठ्ठी रहने लगी। छोटी छोटी बातों से समस्या उत्पन्न होने लगी। जब भी पूनम की बेटी की कोई फरमाइश या उसकी पसंद की चीज न लाई जाती तो घर में तू-तू मैं मैं होने लगती। मैं जब भी पूनम की बेटी नाम अन्वी को किसी भी शरारत या किसी और बात के लिए डांटता तो ये मुझसे ऊंचे स्वर में बात करने लगती। पूनम मुझसे पहले शादी करने से पहले विधवा थी। ये हर बात में अपने पहले पति की बातें या पति के ननदों की बाते ही हर समय में करती रहती। जब मैं पूनम को कहता कि अब तुम उन रिश्तों को भूल जाओ तो वो कहती कि मैं उन रिश्तो को नहीं भूल सकती। तब हम किराये के मकान में रह रहे थे। एक बार अनजाने में पूनम द्वारा ये कहने पर कि तुम मेरी बेटी को हाथ लगा कर दिखाओ, तो मैंने पूनम के बेटी अन्वी को एक थप्पड़ मार दिया और इस पर पूनम ने मुझ पर हाथ उठा दिया। तब मकान मालिक भी उपस्थित थे। किसी तरह से मैं ने उस को रोका। उस के बाद अपनी बेटी को नीचे ले कर जाते हुए ये कहती हुई गयी कि मैं पुलिस स्टेशन जा रही हूँ। खैर नीचे मकान मालिक ने उसको थाने न जाने दिया। इस की मैंने कम्प्लेंट थाने में की तो उन्होंने इस पर कोई भी कार्रवाई करने से मना करते हुए मुझसे ये लिखवा लिया कि मैं अपना झगड़ा कोर्ट द्वारा निबटाऊंगा। इस की कापी मेरे पास मौजूद है। इसके बाद इस के भाइयों ने आकर सुलह सफाई करवा दी। लेकिन ये नोंक झोंक चलती रही। इसके बाद इसके दोबारा फिर तू तू मैं मैं होने पर इस ने मेरे और मेरी लड़की के लिए खाना बनाना, बर्तन धोना, कपडे धोना तक छोड़ दिया। घर से लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। पूनम किसी न किसी बहाने लड़ाई का कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेती। इस के बाद मैं ने वो किराये का मकान छोड़ दिया व अपने पुराने छोटे से घर में अपनी बेटी निहारिका के साथ आ कर रहने लगा। ये २२ या २३ दिसम्बर की बात है। इसके कुछ दिनों बाद सुबह के वक्त जब नहा रहा था तो किसी ने दरवाजा खटखटाया। मुझे नहाने में पांच सात मिनट लग गये। जब नहा कर निकला तो फिर से दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने पूछा कि कौन है? पूनम की आवाज आयी कि दरवाजा खोलो। मैं ने पूछा कि क्या काम है? इस पर तो कहने लगी कि पहले दरवाजा खोलो फिर बताउंगी। मेरे मना करने पर बोली कि मर्द हो तो दरवाजा खोलो। मैं इसके साथ लड़ाई नहीं चाहता था इसलिए मैंने दरवाजा नहीं खोला। वह बाहर खड़ी ऊँचे स्वर में बोलने लगी कि मुझे पता है कि दोपहर को तैयार रहना मैं तुम्हारा जलूस निकाल के जाउंगी। तो मैंने अंदर से कह दिया कि तुमने जो करना है कर लो, क्या जान ले लोगी? तो बाहर से ही बोलने लगी कि जरूरत पड़ी तो जान भी ले लूँगी। इस के बाद बोलती हुई दरवाजे को लात मार कर वहां से चली गई। मैंने ये बात अपने मामा जी के बेटे की पत्नी को बताई क्योंकि मेरा सारा परिवार मोहाली में रहता है। इसके कुछ दिन बाद किसी अंकल ने हमारा पैचअप करवा दिया। मैं २४ जनवरी को फिर से उसी किराये के मकान में पूनम के साथ रहने लगा। इसके १० दिन बाद फिर वही चिक-चिक शुरू हो गयी। वही इल्जाम। मेरी बेटी ध्यान नहीं रखते, उस को डांटते रहते हो। कुछ इसी तरह से दिन कट रहे थे कि एक दिन मुझे कहने लगी कि आप के पुराने घर में चलते हैं। मैंने कहा की यहाँ पर ठीक है तुम्हे तो वो घर पसंद ही नहीं था, तभी हम किराये के मकान में आये थे। तो कहने लगी कि मुझे किसी ने राय दी कि तू उस पुराने घर में शिफ्ट हो जा तो ये फिर तुझ को छोड़ कर नहीं जा सकेगा। मैंने ये बात मान ली व मकान मालिक को कह दिया कि हम इस फरवरी के आखिर में मकान खाली कर देंगे। एक मार्च को हम अपने पुराने घर में शिफ्ट हो गये। इस के बाद तीन अप्रैल को अन्वी के कारण एक बार फिर हम दोनो में तू-तू मैं मैं हुई तो गुस्से में पूनम बोलने लगी कि मैं तुम्हारा जलूस निकाल दूँगी, अब मैं सर्विस करने लगी हूँ, मैं अपनी बेटी को पाल लूंगी। मैंने इतना कह दिया कि चल आज जुलूस निकाल ही दे तो ये बाहर आंगन में आ गई व जोर से चिल्लाने लगी। बाहर के गेट को ताला लगा हुआ था फिर अन्दर जा कर ताले के चाबी उठा कर में गेट खोल कर बाहर बैठ गई व जोर से चिल्लाने लगी। आस पडोस वाले इकठ्ठे हो गये इस ने मेरे मामा जी के लडके को भी फोन कर दिया, वो भी आ गये। इस ने आपने भाइयों की भी फोन कर दिया। मेरे मामा जी के लडके ने इसे बहुत कहा कि पूनम चल अन्दर बैठ कर बात करते हैं। लेकिन ये नहीं मानी व अपनी बेटी को उठा कर अपने पास गली में बैठा लिया। जब इसके भाई फाजिल्का से यहाँ पहुंचे तो आते ही उन्होंने मुझसे लड़ाई झगड़ा शुरू कर दिया। मेरे मामा जी के लडके ने बीच बचाव किया फिर उसके बाद गली खड़े बोलते रहे। खैर किसी तरह से मेरे मामा जी का लड़का व उस की पत्नी इनको समझा कर अपने घर ले गये। उस रात से हम दोनों अलग अलग रह रहे हैं। अब मुझे तिथि ३०-१०-२०१४ को उसकी तरफ से 125 CPC के तहत के सम्मन प्राप्त हुआ है इस में दी गई सारी बाते झूठ हैं। मैंने किसी तरह की कोई मांग नहीं की, न ही किसी तरह की मारपीट की है और मेरे परिवार वाले तो यहाँ पर रहते ही नहीं। जब से मुझे यहाँ पर जॉब मिली है मैं अकेला ही जलालाबाद में रह रहा हूँ। मेरे परिवार का मेरी फैमली में किसी तरह का कोई दखल ही नहीं है। मैं क्या करूं? मैं एक जॉब ही करता हूँ। मेरा कोई रियल एस्टेट का बिजनेस नहीं है हाँ कटकटा के मुझे सेलरी २६०००/- प्रति मास मिलती है। जिस में से मुझे अपनी बेटी की स्कूल फीस, ट्यूशन फीस घर का राशन, दूध का बिल, बिजली का बिल, राशन का बिल, बाइक का पट्रोल, गैस सिलेंडर का रिफिल आदि भरने होते हैं। मुझे कितना गुजारा भत्ता प्रति महिना देना होगा? 406 व 498A के तहत मुझे किस तरह की परेशानी उठानी पड़ेगी। ये 406 व 498A क्या है कृपया सही रास्ता दिखाने की अनुकम्पा करे।

समाधान-

मैं लगभग सभी से कहता हूँ कि विवाह के पहले स्त्री-पुरुष का एक दूसरे को समझना जरूरी है। उन में तालमेल बनेगा या नहीं यह परखना जरूरी है। लेकिन हमारा समाज है कि इसी बात की उपेक्षा करता है। यदि कहीं विवाह की बात चलेगी तो दोनों को मिलने नहीं दिया जाएगा। मिलने दिया भी जाएगा तो किसी की उपस्थिति जरूरी होगी। ऐसा लगता है कि यदि विवाह के पहले लड़के लड़की आपस में अकेले में मिल लिए तो जरूर कोई आतंकवादी षड़यंत्र कर डालेंगे।

प का तो यह दूसरा विवाह था। दोनों के पास एक एक बेटी थी। एक ही माता-पिता की दो सन्तानों के होने पर भी बच्चों के कारण झगड़े उठ खड़े होते हैं। फिर यहाँ तो दोनों के माता पिता अलग थे। एक के साथ अधिक और दूसरे के साथ कोई लगाव नहीं की स्थिति बनना स्वाभाविक था। इस बात पर पहले विचार करना था और विवाद की स्थिति में विवाद से बाहर निकलने का तरीका भी तय कर लेना था। आप दोनों गरम मिजाज के हैं और एक दूसरे से उलझ पड़ते हैं। यही आप के बीच के झगड़ों का मूल कारण है। दोनों ही यदि यह तय कर लें कि दूसरे की गर्मी के वक्त वह ठंडी से काम लेगा तो अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है आप दोनों के बीच बात फिर से बन सकती है। आप दोनों को एक लंबे समय तक काउंसलिंग की जरूरत है। यदि आप को अपने यहाँ अच्छे काउंसलर मिल जाएँ तो उन की सहायता से आप यह मामला निपटा सकते हैं।

प को चाहिए कि आप अपने यहाँ के जिला विधिक प्राधिकरण के समक्ष अपना आवेदन दें और कहें कि आप की समस्या काउंसलिंग से दूर हो सकती है। जिला विधिक प्राधिकरण के पास प्रशिक्षित काउंसलर होते हैं, वे आप की मदद कर सकते हैं आप की पत्नी को भी इस मामले को आपस में बैठ कर निपटाने को तैयार कर सकते हैं। इस मामले में आप को सब से पहले धारा 125 का मामला जिस न्यायालय में है उस में भी आवेदन देना चाहिए कि आप राजीनामे से मामले को निपटाना चाहते हैं इस कारण मामला लोक अदालत या जिला विधिक प्राधिकरण को प्रेषित किया जाए।

498ए व 406 आईपीसी के मामले में फिलहाल पुलिस अन्वेषण करेगी। आप सारी बातें पुलिस के सामने स्पष्ट रखें और नीयत बता दें कि आप मामले को आपसी बात से निपटा सकते हैं, तो वहाँ भी मामले को आपसी बातचीत से निपटाने की कोशिश होगी। यदि पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ले तो आप की गिरफ्तारी भी हो सकती है। इस कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त कराने के लिए आप उच्च न्यायालय में रिविजन कर सकते हैं, तथा गिरफ्तारी पर रोक लगाने व अग्रिम जमानत देने की प्रार्थना भी कर सकते हैं।

म ने आप के द्वारा भेजा 125 का आवेदन पढ़ा है। उस में वही तथ्य हैं जो कि हर आवेदन में वकील सामान्य रूप से करते हैं। यदि उस के तथ्य मिथ्या हैं तो उन्हें साबित करने की जिम्मेदारी आप की पत्नी की है। आप को घबराने की जरूरत नहीं है। आप अपने तथ्य रखें। कोशिश करें कि आप के सभी मामले एक ही वकील करे जिस से अनावश्यक रूप से विपरीत कथन करने से बचा जा सके। यदि आप केवल नौकरी करते हैं और आप को 26000 वेतन मिलता है तो आप पर 8 से 10 हजार रुपया प्रतिमाह भरण पोषण देने का दायित्व आ सकता है। वर्ष में यह दायित्व एक लाख रुपया हो सकता है। उस के साथ ही मुकदमे लड़ने पड़ेंगे। यदि आप दोनों में तालमेल अब भी संभव हो तो उस तरफ बढ़ें और संभव न हो तो आपस में मिल कर पत्नी को एक मुश्त भरण पोषण राशि तय कर के उसे देते हुए विवाह विच्छेद करने का सोचें।