आपसी सहमति से विवाह विच्छेद का मार्ग निकालना आप के पुत्र के लिए बेहतर होगा।
|आर के श्रीवास्तव ने बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से समस्या भेजी है कि-
मेरे पुत्र की शादी दि. 13.07.12 को बालाघाट म.प्र. निवासी श्रीमती शुभा श्रीवास्तव से बिलासपुर छ.ग. में सम्पन्न हुई। शुभा श्रीवास्तव ने मेरे पुत्र के साथ अपने 28 दिनों के बिलासपुर में रहने के दौरान कोई शारीरिक संबंध नहीं बनाया। हमेशा टाल-मटोल करती रही। दि. 19.08.12 को उन्हें उनकी माँ, चाचा-चाची रक्षा बंधन के नाम से विदाई कराकर ले गये । उस समय वह पूर्ण हमसे प्रदत्त गहनों से सुसज्जित थी। इस बीच सिंतम्बर 12 में मेरे पुत्र के द्वारा बालाघाट जाकर लाने का प्रयास किया गया। जिसे शुभा ने इंकार कर दिया। फिर जनवरी 13 को मैं अपने साला एवं बड़े पुत्र के साथ बालाघाट स्वयं शुभा को लाने गये। हमारे अनुरोध पर वह नहीं आई और हमने जब उनसे पूछा कि अब लड़की नहीं आना चाहती तो क्या किया जाये। इस पर लड़की के मॉ-बाप एवं लड़की ने एक-दो दिन में आपको समस्या का हल बतायेंगे कहा गया। फिर मैं लौट आया । दि. 25.01.13 से 29.01.13 तक मुझे लड़की के फूफा एवं भाई के द्वारा 20 लॉख रूपये की मांग की गई। अन्यथा पुलिस केस कर देने की धमकी दी गई। इस घटना को स्थानीय पुलिस अधिकारी एस.पी,आई.जी. एवं बालाघाट एस.पी., आई.जी. को भी लिखित में एहतियातित सूचना के रूप में पत्र दिया। इस बीच दि. 30.01.13 को मेरे पुत्र द्वारा बिलासपुर छ.ग. परिवार न्यायालय में हिन्दू विवाह अधिनियम धारा 09 के तहत उसे बुलाने एवं विवाह की पुनसर्थापना हेतु वाद दायर किया गया। जिस पर शुभा ने कोर्ट में 03.04.13 को आकर कह दिया कि वह किसी भी शर्त में बिलासपुर मेरे घर में नहीं आयेगी। उसने पुनः कहा कि उस का मेरे पुत्र के साथ कोई शारिरिक संबंध नहीं हुआ है। परंतु दि. 05.04.13 को हमें शुभा श्रीवास्तव के शिकायत कि दि. 19.08.13 को उसे हम लोगों ने मारपीट कर प्रताड़ित किया था एवं कार के डिमांड की गई थी पर स्थानीय महिला पुलिस थाना द्वारा मुझे एवं मेरे पूरे परिवार को बुलाया गया। यह पूर्णतः मिथ्या शिकायत थी जो पुलिस की विवेचना में भी साबित हुई और हम पर 498 का प्रकरण दर्ज नहीं किया गया। परंतु अभी मार्च 15 में मुझे मेरे पुत्र के विरूद्ध तलाक के लिए धारा 13 1(क) हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत विवाह विच्छेद हेतु नोटिस परिवार न्यायालय बालाघाट म.प्र. के द्वारा प्राप्त हुआ है। दूसरा प्रकरण दण्ड प्रक्रिया संहिता 125 के तहत भरणपोषण हेतु भी इसी न्यायालय द्वारा नोटिस प्राप्त हुआ है। परंतु यह दोनों नोटिस सिर्फ टाइप किया हुआ है इसमें आवेदिका का न तो दस्तखत है और न ही शपथनामा है और न ही संदर्भित दस्तावेजों की छायाप्रतियॉ हैं। समस्त भ्रामक एवं गलत-सलत घटनाक्रम का विवरण बताकर विवाह विच्छेद एवं भरण पोषण की लिए 15000/-रूपये मासिक राशि एवं 10 लाख रूपये की डिमांड की गयी है। मेरा पुत्र न्यायालय जांजगीर छ.ग. में सहायक ग्रेड-3 के पद पर मासिक वेतन लगभग 18000/- रूपये प्राप्त करता है और पदस्थ है। उपरोक्त परिस्थिति में मुझे क्या करना चाहिये कृपया बतलावें।
समाधान-
आप को स्वयं को भाग्यशाली मानना चाहिए कि आप के विरुद्ध धारा 498ए का मामला दर्ज नहीं हुआ। आप को उस मामले की जो भी विवेचना पुलिस द्वारा की गई है और जो दस्तावेज उन के द्वारा एकत्र किए गए हैं उन की प्रतियाँ सूचना के अधिकार में पुलिस से प्राप्त कर लेनी चाहिए वे आप के काम आएंगी।
एक प्रकरण आप के पुत्र द्वारा धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का पहले से लंबित है। विवाह विच्छेद के लिए एक प्रकरण आप के पुत्र के विरुद्ध पुत्रवधु ने कर दिया है। आप को चाहिए कि आप न्यायालय को आवेदन कर के बाद वाले प्रकरण को पहले वाले प्रकरण के न्यायालय में स्थानान्तरित कराने का प्रयत्न करें। जिस से उन की सुनवाई एक साथ हो सके। जिस से अलग अलग तथ्य दोनो मुकदमों में न आएँ।
हमारी राय में यह विवाह समाप्त हो चुका है। जितनी देर बना रहेगा आपके पुत्र के जीवन को नष्ट करेगा। आप को चाहिए कि ऐसा प्रयास करें जिस से आपस में बातचीत कर के सहमति से विवाह विच्छेद का हल निकल आए। विवाह किया है तो कुछ तो भरण पोषण राशि और जो भी स्त्रीधन आप के बेटे पास हो वह वापस लौटाना ही होगा।उन के द्वारा मांगी जा रही धनराशि 20 लाख रुपया बहुत अधिक है। इस कारण यदि सहमति हो तो 4-5 लाख रुपए तक दे कर इस मामले का निपटारा हो सके तो कराने का पर्यत्न करें। यह वाजिब राशि है क्यों कि लड़की स्वयं स्वीकार कर रही है कि उस के साथ विवाह कंजूम ही नहीं हुआ है।
क्या यह मेन्टल हरासमेंट नहीं है . लड़की खुद चली गयी.or अब पैसे मांग रही है हद है यह तो
Yadi police ne yah paya ho ki sikayat jhuthi hai to kya ladka paksh IPC182 ke liye police ko nai bol sakta hai