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आप न्यायिक पृथक्करण का उपाय अपना सकते हैं।

rp_judicial-sepr2.jpgसमस्या-

मोहित ने सिरसा, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-

मेरी शादी दिसंबर 2010 में हुई थी हमारा अभी 3 साल का बेटा है। मेरी पत्नी झगड़ालू प्रवृति की है। अभी एक साल से स्थिति ज्यादा ही खराब है। वो हर समय जान बूझ कर ऐसे काम करती है जिस से मुझे गुस्सा आये। हमारे बीच में न ही तो प्यार है और न ही शारीरिक सम्बन्ध। अगर उसे उस की गलती पर थोडा सा भी बोल दो तो आत्महत्या की बातें करने लगती है। मैं ने उसे प्यार से बहुत समझाया है पर वो नही सुधरती। मैं ने उसके मायके वालों को भी सब बता रखा है, पर वो कहते है ये आपका अपना मामला है अपने आप सुलझाओ। अब समझ नही आ रहा क्या करूँ। मुझे डर है कि कहीं इसने कोई गलत कदम उठा लिया तो मैं बेवजह फँस जाऊंगा। क्या मेरे पास कोई क़ानूनी या नैतिक रास्ता है।

समाधान-

स तरह के मामलों में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 10 में न्यायिक पृथक्करण का उपाय सुझाया गया है। जैसा कि आप की पत्नी के व्यवहार के बारे में आप ने संक्षेप में हमें बताया है उस का व्यवहार आप के प्रति क्रूरतापूर्ण है। इस आधार को सिद्ध करने पर आप को तलाक भी मिल सकता है और न्यायिक पृथक्करण भी।

न्यायिक पृथक्करण में आप को अपनी पत्नी को अलग रखना पड़ेगा और उस का सारा खर्च आदि भी देना पड़ेगा। अलग उसी घर के अलग कमरे में रखा जा सकता है जिस में आप भी रहते हैं। न्यायिक पृथक्करण के उपरान्त उस का आप के मामलों से और आप का उस के मामलों से कोई संबंध नहीं होगा। यदि एक वर्ष की अवधि में दोनों के बीच संबंधों में कोई सुधार आता है तो आप दोनों कभी भी साथ रह सकते हैं। लेकिन संबंधों में कोई बदलाव नहीं होता है तो इसी आधार पर कि न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के बाद भी दोनों के बीच वही स्थिति है आप उस से तलाक ले सकते हैं।

स उपाय को करने के पहले आप को पत्नी के मायके वालों को अपने कॉन्फिडेंस में लेना पड़ेगा। उन्हें बताना पड़ेगा कि यह आप इस कारण कर रहे हैं जिस से आप की पत्नी में सुधार आ सके।

स बीच काउंसलिंग आदि का उपयोग किया जा सकता है। यह भी हो सकता है कि एक वर्ष में भी सुधार न होने पर आप साथ वापस न रहें अपितु न्यायिक पृथक्करण में रहते रहें।

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