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उपभोक्ता शिकायत कारण उत्पन्न होने की तिथि से दो वर्ष की अवधि में न्यायालय को की जा सकती है

समस्या-

मैं ने अपने 2 बच्चों का एडमीशन एक प्राइवेट स्कूल में कराया था। एडमीशन मे कुल रु. 6000/- लगे।  जिसमें स्कूल की तरफ से बच्चों को घर से स्कूल ले जाने और वहाँ से लाने का तीन माह का वाहन किराया भी शामिल था।  उसके बाद जब हमने अपने बच्चों को स्कूल भेजना प्रारंभ किया तो स्कूल की तरफ से स्कूल वहाँ सिर्फ़ एक सप्ताह तक ही बच्चों को ले गया।  उसके बाद स्कूल ने घर पर वाहन भेजना बंद कर दिया।  इसके बारे में जब मैं ने प्रिन्सिपल से पूछा कि वहाँ क्यों बंद कर दिया? तो प्रिन्सिपल ने कहा की मेरे स्कूल का ड्राइवर उधर गाड़ी नही ले जाना चाहता।  वो मना कर रहा है।  जब मैं ने प्रिन्सिपल से अपने बच्चो के आने-जाने के बारे मे बात की तो प्रिंन्सिपल ने कहा कि हम आपके कुछ पैसे काटकर आपको आपके पैसे वापस लौटा देंगे।  फिर मैं ने बच्चो का एडमीशन दूसरे स्कूल में करा दिया।  और एक सप्ताह के बाद जब मै उस प्रिन्सिपल के पास गया तो उसने पैसे देने से तत्काल मना कर दिया।  काफ़ी बहस के बाद मात्र उस ने हमें रु. 300 (तीन सौ) वापस करने को कहा।  उसके बाद मैं बिना पैसे लिए वापस घर आ गया।  फिर मैं ने अपने फ़ोन द्वारा “उपभोक्ता फोरम” में शिकायत की।  उपभोक्ता फोरम द्वारा ये निर्देश दिया गया कि आप लिखित तौर पर स्कूल संचालक को लीगल रिमाइंडर भेजो।  हमने 2 बार लीगल रिमाइंडर भेजा।  फिर भी कोई प्रतिक्रिया नही हुई।  उसके बाद उपभोक्ता फोरम से दोबारा बात की तो उन्हों ने कहा कि आप अब “कन्ज़्यूमर कोर्ट” में मुक़दमा दर्ज़ करो।  लेकिन हमने कन्ज़्यूमर कोर्ट में शिकायत नहीं की।  यह मामला 2011 का है, क्या अब हम इस पर कोई लीगल कार्यवाही कर सकते हैं या नहीं?  अगर कर सकते हैं तो क्या कार्यवाही करें और कहाँ पर करें?

–    धर्मेन्द्र गिरी कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

पभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जिला उपभोक्ता प्रतितोष मंचों का गठन होता है इसे ही उपभोक्ता फोरम कहा जाता है।  यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि किसी उपभोक्ता को कोई सलाह दी जाए। वस्तुतः यह उपभोक्ता अदालत है।  जिस में उपभोक्ता को अपनी शिकायत दर्ज करानी होती है शिकायत के साथ आवश्यक दस्तावेज जिन्हें उपभोक्ता सबूत के साथ प्रस्तुत करना चाहता है और मौखिक साक्ष्य की एवज में शपथ पत्र प्रस्तुत करने होते हैं जिन पर सुनवाई की जा कर निर्णय दिया जाता है।  आप ने जो फोन किया उसे उठाने वाले ने आप को सही सलाह दी कि पहले आप एक कानूनी नोटिस प्रिंसिपल को दे दें।  उस ने बाद में यह भी सही कहा कि आप को अदालत में शिकायत प्रस्तुत करनी चाहिए।

प का मामला उचित है।  आप ने स्कूल द्वारा बच्चों को घर से स्कूल तक लाने ले जाने की सुविधा की शर्त पर अपने बच्चों को वहाँ प्रवेश दिलाया।  यह सुविधा न देने पर आप का स्कूल से प्रवेश समाप्त करने और शुल्क वापस करने की मांग करना उचित और न्यायिक है।  इस के विपरीत स्कूल का शायद यह कहना है कि एक बार प्रवेश दे देने पर वे शुल्क वापस करने को बाध्य नहीं है।  आप चाहे बच्चों को उन के स्कूल में रखें या न रखें।  वे केवल उन के द्वारा न दी गई सुविधा के पैसे वापस लौटाने को तैयार हैं।  आप की शिकायत वाजिब है और आप को जिला उपभोक्ता प्रतितोष मंच के समक्ष अपनी शिकायत यथारीति प्रस्तुत करनी चाहिए।

जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करने की निर्धारित अवधि शिकायत के लिए कारण उत्पन्न होने से दो वर्ष की है। इस तरह आप 2011 में जिस तिथि को उन्हों ने बच्चों को स्कूल लाने ले जाने की सुविधा बंद की उस तिथि से दो वर्ष की अवधि में अपनी शिकायत जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं।  आप के पास पर्याप्त समय है। फिर भी आप को अपनी शिकायत जितनी जल्दी हो प्रस्तुत कर देनी चाहिए।

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