एक तरफा निर्णय व डिक्री साक्ष्य के आधार पर मामला साबित कर देने पर ही प्रदान किए जा सकते हैं।
|समस्या-
सिरोही, राजस्थान से मांगीलाल चौहान ने पूछा है-
मेरी पत्नी और मेरे बीच मे एक साल से किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं है। क्यों कि वह शुरू से संदिग्ध चरित्र की है। फिर भी मैं ने उसको अपनाया। लेकिन अब मैं सहन नहीं कर पा रहा हूँ। इसलिए मैं ने कोर्ट में तलाक़ के लिए आवेदन प्रस्तुत कर दिया है। जिसकी 16-02-2013 को पेशी है। इस कार्यवाही का नोटिस मेरी पत्नी को मिल चुका है। लेकिन वह कोर्ट मे पेशी के लिए आने को तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में क्या एक तरफ़ा फ़ैसला सुनाया जा सकता है? या नही?
समाधान-
किसी भी मामले में यदि प्रतिवादी / प्रतिपक्षी को न्यायालय का समन / नोटिस प्राप्त हो गया हो और वह पक्षकार न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो न्यायालय सब से पहले इस बात की जाँच कर के संतुष्ट होता है कि क्या उस पक्षकार को समन / नोटिस उचित और विधिपूर्ण रीति से तामील हो गया है अथवा नहीं। न्यायालय के संतुष्ट होने पर कि पक्षकार को समन / नोटिस उचित और विधिपूर्ण रीति से तामील हो चुका है तो वह मुकदमे की पत्रावली पर आदेश देता है कि उस पक्षकार के विरुद्ध मुकदमे की एक तरफा सुनवाई की जाए।
इस आदेश के उपरान्त वादी / प्रार्थी को अपने दावे /आवेदन के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। वादी / प्रार्थी द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत कर देने के उपरान्त न्यायालय वादी / प्रार्थी के तर्क सुनेगा और तय करेगा कि क्या वादी / प्रार्थी की साक्ष्य से उस का मामला साबित हुआ है अथवा नहीं। न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि वादी / प्रार्थी ने उस के द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से उस का मामला साबित कर दिया है तो फिर वादी / प्रार्थी को उस के द्वारा चाहा गया निर्णय और डिक्री प्रदान कर दी जाएगी।
न्यायालय द्वारा किसी पक्षकार के विरुद्ध एक तरफा सुनवाई का आदेश दे देने के उपरान्त निर्ण्य होने तक किसी भी समय वह पक्षकार जिस के विरुद्ध ऐसा आदेश दिया गया है आवेदन प्रस्तुत कर एक तरफा सुनवाई के आदेश को निरस्त कर उसे सुनवाई का अवसर प्रदान करने के लिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सकता है। आम तौर पर इस तरह के प्रार्थना पत्र निर्धारित अवधि में प्रस्तुत होने पर तथा उचित कारण होने पर स्वीकार कर लिये जाते हैं। यह वादी / प्रार्थी के लिए भी उचित है क्यों कि एक तरफा निर्णय या डिक्री को इस आधार पर कि उसे समन /नोटिस की तामील नहीं हुई थी तथा उसे मामले का ज्ञान नहीं था चुनौती दी जा सकती है तथा उसे निरस्त कराया जा सकता है।
आप के मामले में आप की साक्ष्य से आप के आवेदन के तथ्य आप की साक्ष्य से साबित हो जाने पर विवाह विच्छेद की एक तरफा डिक्री आप को प्राप्त हो सकती है तथा। डिक्री की अपील या उसे अपास्त किए जाने का आवेदन निर्धारित अवधि में प्रस्तुत नहीं होने पर वह अंतिम हो सकती है।
सर जी एक तरफ़ा तलाक की डिक्री को अपास्त करने के लिए समय सीमा क्या होती है जी ?
कमल हिन्दुस्तानी का पिछला आलेख है:–.एफआईआर में नाम होने मात्र के आधार पर पति-संबन्धियों के विरुद्ध धारा-498ए का मुकदमा नहीं होना चाहिये -उच्चतम न्यायालय…..
बहुत ही अच्छी जानकारी धन्यवाद