एलआईसी एजेण्ट के विरुद्ध अपराधिक न्यास भंग के लिए परिवाद तथा धन वापसी के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करें
|समस्या-
एलआईसी के डायरेक्ट सेल्स एक्जक्यूटिव ने मुझसे नगद 41000 रुपए ले कर दो पालिसी खोली। जिसमें एक फिक्स पालिसी 38378 तथा एक तिमाही प्रिमीयम पालिसी 3068 रू0 की थी जिसकी रसीद भी मुझे डीएसई द्वारा उपलब्ध करा दी गयी। तिमाही प्रीमियम पालिसी संचालित हो गयी तथा बाण्ड मेरे पास आ गया। किन्तु फिक्स पालिसी का जब बाण्ड नहीं आया तो मैने इंटरनेट के माध्यम से पालिसी रजिस्टर्ड किया जिसमें बताया गया कि डीएसई द्वारा चैक के माध्यम से पालिसी का प्रस्ताव किया गया है लेकिन चैक अनादरित होने के कारण प्रस्ताव पूर्ण नहीं हुआ और पालिसी बाण्ड जारी नही किया जा सकता। चूंकि मैंने एलआईसी के पक्ष में कोई चैक जारी नहीं किया था तथा उपरोक्त बातों की सत्यता के लिये मैंने जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एलआईसी कार्यालय से सूचना मांगी तो एलआईसी द्वारा जो सूचना उपलब्ध कराई गई उसके अनुसार उक्त चैक डीएसई के एकाउण्ट से जारी किया गया था तथा रसीद भी मुझे दे दी गई थी जिसमें एलआईसी द्वारा यह कहा गया कि सूचना अधिकार का पत्र प्राप्ति के 30 दिन के भीतर आप अपीलीय प्राधिकारी वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक के यहां अपील कर सकते हैं। इसमें मुझे क्या करना चाहिए जिससे कि मेरा पैसा मुझे वापस मिल जाय और तथाकथित एलआईसी एजेण्ट को धोखाधड़ी की सजा भी मिले? इसके लिये मैने प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने पर दिया परन्तु थाने पर कोई कार्यवाही न करके मुझे लौटा दिया गया। एलआईसी द्वारा दिये गये समय के अनुसार मेरे पास अपील का समय बहुत ही कम है।
-संजय कुमार, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
समाधान-
एलआईसी के किसी भी एजेण्ट को एलआईसी की ओर से धनराशि प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। इस प्रकार किसी एजेण्ट द्वारा प्रीमियम के लिए किसी ग्राहक से प्राप्त की गई राशि के लिए एलआईसी जिम्मेदार नहीं होती। इस कारण से आप इस मामले में एलआईसी से कोई भी सहायता प्राप्त नहीं कर सकते। यदि आप उक्त पालिसी के प्रीमियम का भुगतान कर देते हैं तो आप की वह पालिसी एलआईसी द्वारा चालू की जा सकती है। फिर भी आप को वरिष्ठ मंडल प्रबंधक के पास अपील जरूर कर देनी चाहिए। जिस से एलआईसी को उस एजेण्ट के विरुद्ध कार्यवाही करने में सुविधा हो।
एलआईसी एजेंट ने आप का पैसा अपने खाते में जमा कर लिया और अपने खाते का चैक एलआईसी को दिया जो अनादरित हो गया। इस तरह एजेंट ने आप के साथ धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराधिक न्यास भंग का अपराध किया है। पुलिस ने आप की रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं की तो आप उस की शिकायत अपनी रिपोर्ट संलग्न करते हुए क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक से कर सकते हैं। फिर भी कार्यवाही न होने पर आप एक परिवाद उक्त पुलिस थाना पर क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत कर उसे धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुलिस थाने भिजवा सकते हैं। पुलिस को इस परिवाद पर कार्यवाही करनी पड़ेगी।
चूंकि आप को एजेण्ट से अपना रुपया भी वापस लेना है इस लिए आप एक नोटिस रजिस्टर्ड ए.डी. से भेज कर एजेण्ट से अपना रुपया एक सप्ताह में ब्याज तथा हर्जाने सहित वापस देने को कहें। यदि वह एजेण्ट आप का रुपया वापस नहीं लौटाता है तो आप अपने धन की वसूली के लिए उस के विरुद्ध दीवानी वाद प्रस्तुत कर रुपया ब्याज और हर्जाने सहित वसूल कर सकते हैं।
सही कहा एक एजेंट ने एइसा मेरे साथ भी किया मैंने लिखित में ऑफिस में शिकायत कर दी उसे नोटिस मिला, पर मेरे पूर्वे पति का दोस्त था और पोलिसी भी मेरे पति के नाम थी बच्चे के भविष्य को धयान में रखकर मैंने पैसे दिए थे की पोलिसी जारी रहेनी चाहिए ! पर मेरे पति ने शिकायत वापस ले ली की गलती से शिकायत की गयी है और वो एजेंट पैसे खा गया की आपके पति ने उधार लिए थे उसमे बराबर हो गए! पैसे डूबे और पोलिसी भी बंद ! तब मैने नई पोलिसी ली !
जहां तक संभव हो किसी भी संगठन को कभी भी नकद भुगतान नहीं करें | आज लगभग सभी सरकारी कर्मचारी और संगठन अविश्वसनीय हो चुके हैं अत: चेक ड्राफ्ट आदि माध्यम से भुगतान करना ही सुरक्षित है |
मनीराम शर्मा का पिछला आलेख है:–.हिंदी भाषा का भारत के उच्चतम न्यायालय में प्रयोग
इस प्रकरण में कुछ सूचनाऍं उपयोगी होंगी –
– एजेण्ट को पहली प्रीमीयम प्राप्त करने का अधिकार है किन्तु ऐसा करते हुए भी वह ‘बीमाकर्ता’ का (इस प्रकरण में ‘एलआईसी’ का) अभिकर्ता नहीं होता। यह माना जाता है कि ऐसा करते समय वह, बीमा प्रस्तावक के अभिकर्ता की भूमिका निर्वहन कर रहा है।
– चूँकि किसी तृतीय पक्ष के हित में, ‘बीमा-हित’ (इंश्योरेबेल इण्टरेस्ट) नहीं होता इसलिए कोई भी ‘बीमाकर्ता’, प्रथम अथवा परवर्ती (फर्स्ट अथवा रीन्यूअल) प्रीमीयम के लिए, ‘तृतीय पक्ष’ (थर्ड पार्टी) का चेक स्वीकार नहीं करता। यदि ऐसा किया जाता है तो इसके लिए, चेक देनेवाले तृतीय पक्ष को बीमाकर्ता के समक्ष लिखित अनुरोध प्रस्तुत करना पडता है जिसे बीमाकर्ता के सक्षम अधिकारी द्वारा स्वीकार किए जाने पर ही चह चेक स्वीकार किया जाता है।
– इस प्रकरण में यदि बीमाकर्ता ने, प्रस्तावक के लिखित अनुरोध के बिना (और सक्षम अधिकारी द्वारा ऐसे लिखित अनुरोध को स्वीकार किए बिना) ही तृतीय पक्ष का चेक स्वीकार कियर है तो मेरे मतानुसार, यह बीमाकर्ता द्वारा की गई चूक है।
विष्णु बैरागी का पिछला आलेख है:–.पड़ता है सा’ब! फरक पड़ता है