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औद्योगिक विवाद अधिनियम में कामगार की परिभाषा

पिछली पोस्ट औद्योगिक नियोजक एवं श्रमिक/कर्मकार में हमने नियोजक और कर्मकार की परिभाषाएँ जानी थीं। इन में कर्मकार की परिभाषा कुछ व्यापक और विस्तृत है। इस परिभाषा को सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने बार बार परिभाषित किया है। इस परिभाषा को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं। पहला भाग कर्मकार को उस व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो किसी उद्योग में शारीरिक, अकुशल, कुशल, तकनीकी, परिचालकीय, लिपिकीय या पर्यवेक्षीय कार्यों के लिए वेतन या ईनाम के  नियोजित है। इस भाग में यह परिभाषित किया गया है कि कर्मकार का अर्थ क्या है? दूसरे भाग में कुछ अन्य चीजों को भी सम्मिलित किया गया है जो पहले भाग में सम्मिलित नहीं था। ‘जिन की सेवाच्युति, सेवामुक्ति और छंटनी के कारण कोई औद्योगिक विवाद उत्पन्न हुआ है वे उस औद्योगिक विवाद से संबंधित किसी भी कार्यवाही के लिए कामगार होंगे। इस भाग से कामगार शब्द में कुछ लोग और शामिल किए गये हैं। तीसरा भाग विशेष रूप से कुछ लोगों को इस परिभाषा से बाहर कर देता है। जिस का अर्थ है कि यदि वह पहले दो भागों के आधार पर कामगार माना जाए तब भी वह इस भाग के कारण कामगार नहीं माना जाएगा।

रिभाषा का प्रथम भाग में यह संकल्पना प्रस्तुत की गई है कि एक व्यक्ति को कामगार होने के लिए किसी के द्वारा नियोजित होना चाहिए। अर्थात उस व्यक्ति और किसी औद्योगिक नियोजक के मध्य नियोजन की संविदा होनी चाहिए। यदि दोनों के मध्य कोई नियोजन संविदा नहीं है या नियोजक और नियोजिति का संबंध नहीं है तो कामगार की परिभाषा की भूमिका आरंभ नहीं हो सकती। एक बार यह संबंध स्थापित होना सिद्ध हो जाए तो वह कितने समय का था, आकस्मिक अस्थाई या स्थाई प्रकृति का था, पूर्णकालिक था या अंशकालिक था यह सब गौण हो जाता है। कोई भी व्यक्ति जो उद्योग में नियोजित है वह कामगार हो सकता है उस की प्रास्थिति गौण हो जाती है।

परिभाषा के प्रथम भाग में प्रशिक्षु (एप्रेंटिस) को विशेष रूप से सम्मिलित किया गया है। जिस का अर्थ है कि यदि किसी व्यक्ति को केवल कोई काम सीखने की संविदा पर भी नियोजित किया गया है तो वह कामगार होगा। लेकिन प्रशिक्षु अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा करने के बाद यह निर्धारित किया गया कि इस अधिनियम अंतर्गत के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति उद्योग में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आता है तो वह कामगार नहीं होगा। लेकिन अन्य व्यक्ति जो प्रशिक्षु अधिनियम के अंतर्गत उ्दयोग में नहीं आए हैं लेकिन जिन्हें किसी प्रशिक्षु संविदा के अंतर्गत काम सीखने के लिए नियोजित किया गया है वे व्यक्ति कामगार माने जाएंगे। इस उपबंध का एक विशिष्ठ कारण यह भी रहा कि बहुत से उद्योग प्रशिक्षु संविदा के अंतर्गत कई वर्षों तक लोगों से नाम मात्र की मजदूरी पर काम कराते रहते हैं और फिर उन्हें नौकरी से हटा कर नए लोगों को प्रशिक्षु संविदा के अंतर्गत काम पर रख लेते हैं। इस तरह गरीब मजबूर बेरोजगारों का शोषण चलता रहता है। इसी को रोकने के उपाय के अंतर्गत प्रशिक्षु शब्द को कामगार की परिभाषा में सम्मिलित किया गया।

रिभाषा के प्रथम भाग में कहा गया कि नियोजित व्यक्ति किसी उद्योग में नियोजित होना चाहिए। यदि जिस संस्थान में उसे नियोजित किया गया है वह उद्योग नहीं है तो उस व्यक्ति को कर्मकार नहीं माना जा सकता। एक और बात है कि नियोजित व्यक्ति को किसी ईनाम या वेतन के लिए नियोजित होना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के काम के बदले में कोई प्रतिफल निश्चित न किया गया हो कोई संविदा ही अस्तित्व में नहीं होगी। संविदा न होने की स्थिति में किसी व्यक्ति को कर्मकार नहीं कहा जा सकता। ईनाम शब्द का उल्लेख यहाँ विशेष रूप से किया गया है जिस का अर्थ है कि हमेशा काम के लिए वेतन ही प्रतिफल नहीं हो सकता। किसी व्यक्ति को उस के काम के परिमाण के आधार पर अर्थात किए गए काम के आधार पर प्रतिफल दिया जाना भी तय किया जा सकता है और यहाँ तक कि कमीशन के आधार पर भी मजदूरी चुकाई जा सकती है।

कामगार की परिभाषा के प्रथम भाग की महत्वपूर्ण शर्त यह है कि दो व्यक्तियों के मध्य नियोजन की संविदा होनी चाहिए। पुराने जमाने में इसे मालिक-मजदूर संबंध कहा जाता था, पर इस औद्योगिक युग में इसे नियोजन संविदा कहा जाना उचित ही है।अगले शनिवार को हम देखेंगे इस संविदा को पहचानने के तरीके क्या हैं?

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