कर्मचारियों के आचरण नियम क्यों नहीं आम किए जाते? ….. भाग-2
|भारत में केन्द्र सरकार, व राज्य सरकार द्वारा निर्मित सभी आचरण नियम सारतः और तत्वतः एक जैसे हैं और केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए बनाए गए नियमों के प्रतिरूप दिखाई देते हैं। हालाँकि उन में अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप कहीं कहीं परिवर्तन भी किए गए हैं। इसलिए आवश्यक है कि प्रत्येक कर्मचारी इन नियमों को सेवा में प्रवेश के पहले गंभीरता के साथ अवश्य पढ़े। यह केवल कर्मचारियों की आवश्यकता नहीं है अपितु नियोजकों (सरकारों और संस्थानों) की भी आवश्यकता है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अनेक बार ये नियम कर्मचारी द्वारा तलाश किए जाने पर भी नहीं मिलते हैं। होना तो यह चाहिए कि कर्मचारी पर प्रभावी आचरण नियमों और सेवा नियमों के सार की एक प्रति उसे नियुक्ति के लिए दिए जाने वाले प्रस्ताव पत्र के साथ ही भेजी जानी चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं किया जाता है। ये प्रत्येक सरकारी विभाग में आसानी से उपलब्ध होने चाहिए, लेकिन इन का अभाव बना रहता है। अब तो यह भी सुविधा है कि प्रत्येक विभाग की अपनी वेबसाइट है, कम से कम विभाग इन्हें हिन्दी, अंग्रे
जी और क्षेत्रीय भाषा में उन पर तो चस्पा कर ही सकते हैं। लेकिन अभी तक उस का भी अभाव बना हुआ है। इस अभाव के पीछे सब से बड़ा कारण स्वयं सरकारी अधिकारी और कर्मचारी स्वयं हैं। वे नहीं चाहते कि ये आचरण नियम जनता जाने। यदि देश के नागरिकों को पता हो कि एक कर्मचारी का आचरण कैसा होना चाहिए तो कोई भी नागरिक किसी भी कर्मचारी के आचरण पर प्रश्न खड़ा कर सकता है। ऐसी स्थिति में सरकारों को चाहिए कि वे आचरण नियमों का प्रचार करें और जनता को प्रोत्साहित करें कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी इन के विरुद्ध आचरण करता है तो उस की शिकायत की जा सकती है और शिकायत सही पाए जाने पर उसे दंडित किया जा सकता है, जिस में उस की सेवा समाप्ति भी सम्मिलित हो सकती है। लेकिन सरकारें भी इस ओर से आँखें मूंदे बैठी रहती हैं। यह आप के सोचने की बात है कि देश में फैले भ्रष्टाचार की एक मूल यहाँ भी है।
आचरण नियमों में अनेक महत्वपूर्ण बातें हैं, लगभग सभी आचरण नियमों के नियम-3 में यह उल्लेख किया गया है कि प्रत्येक राजकीय/अर्धराजकीय कर्मचारी “सदैव” (चाहे वह कर्तव्य पर हो या न हो) ईमानदार रहेगा, कर्तव्यनिष्ठ और कार्यालय की गरिमा बनाए रखेगा। जो कर्मचारी पर्यवेक्षीय पदों पर हैं उन्हें यह कर्तव्य भी सौंपा गया है कि वे ऐसे कदम उठाएंगे जिस से उस के नियंत्रण और प्राधिकार में काम कर रहे कर्मचारियों की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता सुनिश्चित की जा सके। इस तरह हम देखते हैं कि एक राजकीय कर्मचारी से यह अपेक्षा की गई है कि वे अपने व्यवहार को सदैव चाहे वह घर में हो, या बाहर हो या अपने कर्तव्य पर हो चौबीसों घंटे अपने व्यवहार को संयत बनाए रखेगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लक्ष्मीनारायण पाण्डे बनाम जिलाधीश (एआईआर 1960 इलाहाबाद 1955) के मामले में यह निर्णय दिया है कि सरकार अपने कर्मचारी के ऐसे व्यक्तिगत आचरण पर भी कार्यवाही कर सकती है, जो उस के पद से संबंधित नहीं हो। इस तरह एक सरकारी कर्मचारी से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह कर्तव्य करते समय और अन्यथा भी कोई ऐसा आचरण नहीं करे जो नैतिक पतन की श्रेणी में सम्मिलित हो। उसे अपने परिवार, संबंधियों, मित्रों और जनता के बीच ऐसे बेढंगे प्रकार से व्यवहार नहीं करना चाहिए जो उस के पद के लिए अशोभनीय हो। यहाँ सिद्धांत यह है कि सरकारी कर्मचारी का अनुचित और बेढंगा व्यवहार सरकार के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्यों कि किसी भी सरकार की वास्तविक छवि उस के कर्मचारियों के व्यवहार से बनती है।
आचरण नियमों में आचरण के सम्बन्ध में जो दायित्व कर्मचारियों के लिए निर्धारित किए गए हैं वे ही उन के परिवार के सदस्यों के बारे में भी निर्धारित किए गए हैं। इस का अर्थ यह है कि एक सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी को न केवल अपने आचरण को इन नियमों के अनुरूप करना होगा अपितु उस के परिवार के सदस्यों के आचरण को भी नियंत्रित रखना होगा। एक कर्मचारी के परिवार के सदस्यों को भी कुछ गतिविधियाँ करने से निषिद्ध किया गया है। ऐसी स्थिति में यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि किस किस को कर्मचारी के परिवार का सदस्य माना जाएगा। इन नियमों में परिवार के सदस्यों को परिभाषित किया गया है
जिस के अनुसार कर्मचारी की पत्नी या पति चाहे वह पति के साथ निवास करती है या नहीं लेकिन उस में ऐसी पत्नी या पति सम्मिलित नहीं हैं जिस का किसी न्यायालय की डिक्री द्वारा न्यायिक पृथक्करण हो गया हो; कर्मचारी का पुत्र और पुत्री, सौतेला पुत्र और पुत्री जो पूर्णतः सरकारी कर्मचारी पर निर्भर हो लेकिन वह संतान इस में सम्मिलित नहीं है जो कर्मचारी पर आश्रित न हो या किसी कानून के अंतर्गत कर्मचारी के संरक्षण से वंचित कर दिया गया हो तथा अन्य कोई भी व्यक्ति जो रक्त से या विवाह से कर्मचारी की पत्नी या पति से सम्बन्धित हो और पूर्णतः सरकारी कर्मचारी पर आश्रित हो कर्मचारी के परिवार का सदस्य माना गया है।
achchhi jankari….agli kisht jald jari karen !
@ डॉ. अरविंद मिश्र
अभी श्रंखला जारी है, इन सभी मामलों का उल्लेख होगा।
उत्तर प्रदेश कर्मचारी आचार संहिता में यह प्रावधान है कि वैज्ञानिक और कलात्मक प्रक्रति के लेखन के लिए पूर्व अनुमति की जरुरत नहीं है ..आशय यह भी है कि इससे किसी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होता …प्रवीण त्रिवेदी जी शायद यह भी जाना चाहते हैं …
हम जैसो को भी सावधान रहना पडेगा।
nice
http://shayaridays.blogspot.com
great article!
Swachchh Sandesh