कानूनी सलाह : प्रोफेशनल अपने कार्यों की शुल्क कैसे वसूल करें?
|मनीष सहाय पूछते हैं।
मैं एक आर्कीटेक्ट हूँ और स्वतंत्र रूप से काम करता हूँ। मेरी समस्या मेरे मुवक्किलों से मेरी शुल्क वसूल करने की है। पहले मैं अपने मुवक्किलों का काम प्रारंभ करने के पहले भारतीय आर्किटेक्चर काउंसिल के दिशानिर्देशों पर आधारित कँट्रेक्ट हस्ताक्षर करवाता था। लेकिन अधिकांश मुवक्किल उस पर हस्ताक्षर करने से यह कहते हुए मना कर देते हैं कि उन की सामाजिक साख बहुत अच्छी है। बाद में काम सम्पन्न हो जाने पर वे शुल्क के भुगतान के लिए मना कर देते हैं।
मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या मुझे परियोजना के समापन के उपरांत मेरी शुल्क को प्राप्त करने का कोई उपाय है? कृपया मदद करें।
मनीष जी!
आप एक प्रोफेशनल हैं। आप और हम जैसे प्रोफेशनलों की यही समस्या है कि हम अपने पास आए मुवक्किलों को वापस नहीं जाने देना चाहते हैं और इस चक्कर में फंस जाते हैं। इस का दूसरा कारण यह भी है कि बाजार में अनेक प्रोफेशनल हैं जिन से प्रतियोगिता करनी होती है। सही बात तो यह है कि आप को काम प्रारंभ होने के पहले किसी भी प्रकार से कँट्रेक्ट कर ही लेना चाहिए। बिना लिखित कँट्रेक्ट के आप को अपनी शुल्क वसूल करने में समस्या आ ही जाएगी। आप को जब धन की जरूरत होगी तो कोई भी बिना सीक्योरिटी के धन नहीं देगा।
वैसे यह कोई जरूरी नहीं कि कोई भी कंट्रेक्ट लिखित ही हो, वह मौखिक भी हो सकता है। अधिकतर कँट्रेक्ट मौखिक ही होते हैं। एक व्यापारी दूसरे व्यापारी से माल मंगाता है तो फोन पर आदेश देता है दूसरा फोन पर आदेश को प्राप्त कर माल भेजता है और साथ में बिल भी भेजता है। लेकिन वहाँ बहुत सारे सबूत एकत्र हो जाते हैं। आदेश देने वाले व्यापारी के कॉल विवरण फोन कंपनी से प्राप्त किये जा सकते हैं। माल ट्रांसपोर्ट या रेलवे द्वारा प्रेषित किया जाता है उस की बिल्टी बनती है जो अक्सर डाक या कोरियर सर्विस द्वारा प्रेषित की जाती है। फिर बिल्टी को माल उठाने वाले को ही ट्रांसपोर्टर या रेलेवे के पास जा कर छुड़ाना पड़ता है। वहाँ वे प्राप्त कर्ता से हस्ताक्षर कराते हैं। इस तरह से कँट्रेक्ट होने के अनेक सबूत एकत्र हो जाते हैं। आप के पास भी इस तरह के सबूत हो सकते हैं। आप ने जो साइट और कंस्ट्रक्शन प्लान बनाया है वह इस का सबूत है। यदि उस पर स्वीकृति के हस्ताक्षर आप ने कराए हैं तो फिर यह एक मजबूत सबूत है। आप ने स्थानीय कोरियर से पत्र या मानचित्र आदि भेजे हों तो वह भी सबूत हो सकते हैं। मुवक्किल और आप के बीच हुई टेलीफोन वार्ताओं के कॉल विवरण उपलब्ध हो जाएँ तो वे भी सबूत हो सकते हैं। आप ने बिल जरूर दिए होंगे। वे भी सबूत हैं।
यदि आप ने अपने मुवक्किल को बिल दिए हैं और उन की प्रतियाँ आप के पास हैं तो वे भी कंट्रेक्ट होने का सबूत हैं। यदि नहीं दिए हैं तो आप उन्हें बिल नए सिरे से भेज दें। यदि कुछ धनराशि का भुगतान आप को मुवक्किल द्वारा किया गया है तो एक संपूर्ण बिल जिस में अदा की गई राशि और शेष रही राशि का विवरण हो पुनः अपने मुवक्किलों को प्रेषित कर सकते हैं। उन के एक दो स्मरण-पत्र (रिमाइंडर) भेज सकते हैं। इन्हें रजिस्टर्ड एडी डाक से प्रेषित करें। ये भी सबूत का काम कर सकते हैं। मुवक्किल के हाथ की कोई भी लिखावट आप के पास हो वह भी सबूत का काम कर सकती है। आप के पास कुछ सबूत एकत्र हो जाने पर आप वकील के जरिए विधिक-सूचना (लीगल नोटिस) प्रेषित करवा सकते हैं। फिर भी मामला न सुलझे तो आप न्यायालय में इन मुवक्किलों के विरुद्ध दावे पेश कर सकते हैं।
आप के साथ जो अब तक हुआ वह हुआ।
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इस विषय में मैं अपना एक रोचक और उपयोगी अनुभव प्रस्तुत कर रहा हूं ।
मेरे एक इंजीनीयर मित्र भी इसी स्थिति के शिकार हुआ करते थे । एक ‘गप्प-गोष्ठी’ में उन्होंने इस समस्या की चर्चा की । मैं ने कहा – ‘एक उपाय है लेकिन वह कठिन तो है ही, प्रथमदृष्टया अव्यवहारिक भी लगेगा । लेकिन यदि आप अमल कर लेंगे तो समस्या शर्तिया तौर पर दूर हो जाएगी ।’
उन्होंने कहा – ‘बताइए तो ।’
मैं ने कहा कि वे स्थानीय लोगों का काम लेना तत्काल बन्द कर दें और केवल रतलाम से बाहर का काम लें । बाहर से जितने भी लोग आएं, उसने लिखित अनुबन्ध करें । रतलाम के लोग आपसे अनुबन्ध नहीं करेंगे क्योंकि आप ‘लोकल’ हैं लेकिन बाहर के लोग बिना ना-नुकुर, अनुबन्ध कर लेंगे । घर का जोगी जोगडा, आन गांव का सिध्द वाली उक्ति लागू होती है । मैं ने स्पष्ट कहा कि इसमें दो खतरे होंगे । पहला – स्थानीय स्तर पर बात फैलेगी कि आपने काम करना बन्द कर दिया है । दूसरा – बाहर वालों का काम मिलने में तनिक समय लगेगा, प्रतीक्षा करनी पडेगी ।
वे, ये दोनों खतरे उठाने को तैयार हो गए । स्थानीय लोगों को काम लेना बन्द करने की खबर धीरे-धीरे फैली तो जरूर लेकिन यह खबर भी साथ ही साथ फैली कि वे बिना लिखित अनुबन्ध काम नहीं करते । क्यों कि कोई स्थानीय सज्जन जब भी काम लेकर आते तब या तो कोई न कोई बाहर वाला ग्राहक बैठा मिलता या फिर बाहर वालों से किए गए अनुबन्ध टेबल पर पडे दिखाई देते ।
कोई सात/आठ माह में स्थिति यह आ गई कि अब स्थानीय लोगों के काम भी अनुबन्ध कराने के बाद ही हो रहे हैं और अपना भुगतान प्राप्त करने में उन्हें कोई असुविधा नहीं होती । इसका अर्थ यह भी नहीं कि उन्हें प्रत्येक मामले में पूरा भुगतान मिल ही जाता है । किन्तु विवादित प्रकरणों की संख्या नगण्य हो गई है । वैसे भी शत-प्रतिशत सफलता तो कहीं नहीं मिलती ।
इससे उत्साहित होकर अब वे इन्दौर में काम करने लगे हैं । अब वे रतलामवालों के लिए ‘बाहर के’ याने ‘आन गांव का सिध्द’ हो गए हैं ा अब अनुबन्ध कराना उनके लिए और अधिक सरल हो गया है ।
द्विवेदी जी,
आपकी सलाह के लिये बहुत बहुत धन्यवाद. हालांकि मैं करीब १२ वर्ष से प्रैक्टिस में हूं तथापि कभी कभी यह पुनराव्रत्ति हो ही जाती है. आपकी सलाह को ध्यान रखते हुए आगे की कार्यवाही करता हूं. एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद.
हमेशा की तरह आपने एक और व्यवहारिक विधिक जानकारी दी, पाठक के प्रश्न का उत्तर देते हुए।
धन्यवाद।
sahi! kaha aapne
vaise samaj ke hisaab se bhi apne kaam ko jamaane ki koshish karni chahiye!!!!!!
low profit more output
par bhi dhyaan rakhna chahiye!!!!!1
बहुत काम की बात बतायी आपने। प्राइवेट प्रैक्टिस वाले व्यवसायों की शुरुआत में ऐसी दिक्कतें आती हैं। एक बार साख बन जाने के बाद तो क्लाइण्ट एडवान्स के साथ लाइन लगाए रहते हैं।
जरुरत अपनी योग्यता को चमकाने की है, फिर तो अपनी शर्तों पर ही काम करने का मौका मिलता है।
@अफलातून जी, गलती मेरी है। मुझे सवाल हिन्दी में मिला था। शीघ्रता में हिन्दी अनुवाद करने में मैं ही फिसल गया।
आप प्रश्नोतरी के माध्यम से हर उपयोगी कानूनी सलाह देते हैं ! बहुत सुंदर और लाजवाब है आपका यह प्रयास ! बहुत धन्यवाद !
मनीषजी, ‘शुल्क’ पुलिंग है ।
बहुत ही बढ़िया लेख, हमेशा की तरह। जब मैं डाक्टरी की प्रैक्टिस शुरू करूंगा तो शायद कहीं यह सलाह काम आ जाये! बहुत बहुत आभार!
उचित सलाह, आभार.