कानून की पालना में प्रधानमंत्री कार्यालय कोताही क्यों करे?
|देश में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के साथ ही कानून का राज स्थापित हो गया। एक ऐसा राज जिस में कानून सब से ऊपर है। कोई भी कानून का उल्लंघन नहीं कर सकता। सभी को कानून के अनुसार काम करने का निर्देश प्राप्त हुआ। लेकिन लोग कानून को मानें इस के लिए यह जरूरी है कि संवैधानिक संस्थाएँ सब से आगे बढ़ कर उस की पालना करें। यदि सरकार, उन के मंत्रालय, मंत्री, प्रधान मंत्री और उन का कार्यालय कानून की पालना करने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें तो निश्चित ही पूरे देश को इस बात की प्रेरणा मिले कि उन्हें भी कानून के अनुसार चलना होगा। इस देश में कोई बड़ा नहीं है अपितु कानून बड़ा है। निश्चित रूप से अदालतों का अस्तित्व इसी लिए है कि वे कानून का पालन कराएँ। उल्लंघन करने वालों को दंडित करें और संवैधानिक व सरकारी संस्थाओं को बताएँ कि वे या कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा नहीं है।
लेकिन यदि प्रधानमंत्री कार्यालय ही कानून की पालना न करे या उसे करने के लिए लगातार बिना कोई कारण बताए समय मांगता रहे तो देश भर की जनता से कैसे यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे कानून की पालना करेंगे। समाचार है कि स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के अंतर्गत राष्ट्रपति के सचिवालय के साथ कार्यालय के पत्राचार से संबंधी जानकारी उपलब्ध कराने में विफल रहा है। यह मामला वर्ष 2004 में पद्म पुरस्कार पाने वालों की सूची पर पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा की गई आपत्ति से जुड़ा हुआ है। सुभाष चंद्र अग्रवाल ने अधिनियम के तहत इस वर्ष फरवरी में आवेदन देकर वर्ष 2004 की पद्म पुरस्कार सूची की संचिका तथा पत्राचार एवं संस्तुतियों पर की गई कार्रवाई के बारे में जानकारी मांगी थी। लेकिन यह जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा अभी तक उपलब्ध नहीं कराई गई है।
केंद्रीय सूचना आयोग ने अप्रैल में दिए अपने फैसले में प्रधानमंत्री कार्यालय को निर्देश दिया था कि तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम के सचिवालय द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को 22 जनवरी, 2004 को भेजे गए कथित पत्र के बारे आवेदक को जानकारी 10 कार्यदिवसों के भीतर दी जानी चाहिए। इस पत्र के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा तैयार की गई पुरस्कार योग्य व्यक्तियों की सूची पर तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम ने आपत्ति जताई थी। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने आपत्ति की तथा दो बार इसके लिए अतिरिक्त समय की मांग की। जुलाई में भेजे गए पत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय के केंद्रीय जनसूचना अधिकारी ने कहा था कि यह ‘संवैधानिक मुद्दा’ है, जिस पर विचार किया जा रहा है तथा ‘विभिन्न वैधानिक विकल्प’ ढूंढ़े जा रहे हैं। इसके लिए चार सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा गया। तीन सितम्बर को भेजे गए ताजा ई-मेल में प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि अंतिम तिथि महीने के अंत तक बढ़ाई जाए।
प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा सूचना के अधिकार कानून की पालना में यह टालमटोल अन्य विभागों के लिए कोई अच्छा उदाहरण नहीं है। इस से देश भर के सरकारी तंत्र को कोई अच्छी प्रेरणा नहीं मिलती। हमें आशा करना चाहिए कि प्रधानमंत्री कार्यालय शीघ्र ही अपनी त्रुटि को सुधारेगा और कानूनों की पालना में मुस्तैदी दिखाएगा। जिस से देश भर का सरकारी तंत्र उस से प्रेरणा प्राप्त कर सके।
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7 Comments
बाबो सबने मारै पर बाबे नै कुण मारै रा जी की बात खरी लग रही है.
रामराम.
namshkaar…mera hindi ithna acha nahee hoon…lekin abhi baath karna padtha hey..mein ek 15 years vaala ladka hein…mein abhi indiblogger ki ek contest mein bhaag raha hein…muje aapka vote bahuth zaroori hein….kripaya mujhe vote karo…..
mera post ka link: http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=30629
Bye
हमारे यंहा शेखावाटी में एक कहावत है कि बाबो सबने मारै पर बाबे नै कुण मारै | यानी की मुखिया ही सर्वोपरी है | सूचना का अधिकार एक आंदोलन है ना कि कानून और जब तक यह क़ानून नहीं बन जाता इसका समुचित लाभ मिलना मुश्किल है
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पता नही इस देश का क्या होगा, इमान दार प्रधान मंत्री ऎसा है तो बेईमान की क्या जरुरत होगी…इस देश को.
आप के लेख से सहमत है.
प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा सूचना के अधिकार कानून की पालना में यह टालमटोल अन्य विभागों के लिए कोई अच्छा उदाहरण नहीं है। आपने बिलकुल सही कहा है अगर प्रधान मन्त्री के विभाग मे ये हाल है तो बाकी सब लोग अन्दाज़ा लगा सकते है। द्धन्यवाद।
आप सही कह रहे हैं । सुप्रीम कोर्ट का आदेश न मानना अनाज को सडने देना ये भी तो उदाहरण है और ऊपर से वेक हते हैं कि 37 प्रतिसत लोगों को अनाज कैसे बांटा जा सकता है तो क्या वे सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर हैं ।
देरी के लिये क्षमा चाहती हूँ पर आपको जन्मदिन की ढेर सारी शुभ कामनाएं ।
अजी किसे चाहिए प्रेरणा और काहे की मुस्तैदी…
समझदार सरकार ने समस्या को जड़ से ही समाप्त कर दिया है…अब कभी कोई आपत्ति आने वाली ही नहीं है राष्ट्रपति की तरफ से….ये तो पुरानी एनडीए सरकार की बदमाशियां थीं कि किसी सिरफिरे को राष्ट्रपति भवन में बिठा गए जिन्हें बेचारे मन्नू भाई भुगत रहे हैं…अब तो प्रधानमंत्री के साथ-साथ राष्ट्रपति भवन में भी मैडम को अर्ध्य देकर ही दिन शुरू होता है…
अजी पुरस्कारों के चक्कर में काहे परेशान होते हैं….परम आदरणीया राष्ट्रपति ने जब राज्यसभा में नेताओं को नॉमिनेट किया विशेष कोटे में तो पुरस्कार बांटने में काहे की टेंशन….राजमहल के स्वामीभक्त नौकरों को विशेष अवसरों पर खैरात बंटती है…तो ऐसे में मैडम के तलवे सहलाने वालों का कुछ तो ख्याल रखना होगा ना