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संपत्ति सहदायिक नहीं है इस कारण उसमें आप को कभी कोई अधिकार उत्पन्न नहीं हुआ।

समस्या-

संपत्ति मेरे चाचा जी के द्वारा सन् 1948 में खरीदी गई थी, उस समय मेरे पिताजी की उम्र मात्र 16 वर्ष थी , जब मेरे पिताजी 24 वर्ष के हुए तो मेरे चाचा जी ने उनको संपत्ति का हिस्सा दे दिया  सन् 1963 में । उसके बाद  सन् 1995 में मेरे पिताजी ने एक रजिस्टर्ड वसीयत की जिसमें वह सारी संपत्ति लड़कों के नाम करी लड़कियों को उस संपत्ति वसीयत में कुछ भी नहीं दिया है मेरे पिताजी की मृत्यु सन 2009 में हुई है ।  तो क्या उसके बाद भी मैं अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगने का अधिकार रखती हूं क्या मेरा पिताजी की संपत्ति में हिस्सा बनता है?

-वंदना लखमानी, 2- गोपाल नगर, कानपुर (उत्तर प्रदेश)

समाधान-

आप के कथनानुसार संपत्त्ति को आप के चाचाजी ने खरीदा था, उस में आप के पिता का किसी तरह का हिस्सा था जो आप के चाचाजी ने 1963 में आप के पिताजी को दे दिया। यह संपत्ति आप के पिता को उन के किसी भी पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं हुई थी। इस कारण से यह सहदायिक (पुश्तैनी) संपत्ति नहीं थी बल्कि यह उन की स्वअर्जित संपत्ति थी। इस संपत्ति को उन्हें वसीयत करने का अधिकार था। इस अधिकार का उपयोग करते हुए उन्होंने एक वसीयत निष्पादित कर उसे पंजीकृत करा दिया।

आप के पिताजी की मृत्यु 2009 में हुई थी। हिन्दू उत्तराधाकार अधिनियम में 2005 में हुए संशोधन से सहदायिक संपत्ति में पुत्रियों को पुत्रों के समान अधिकार प्राप्त हुए हैं। लेकिन आप के पिता की संपत्ति सहदायिक नहीं होने से 2005 के इस संशोधन से कोई अधिकार प्राप्त नहीं हुआ। आप के पिता की मृत्यु के उपरान्त वसीयत के अनुसार आप के भाई जिन्हें उक्त संपत्ति वसीयत की हुई है वह उन्हें प्राप्त हुई है। आप को उक्त संपत्ति में कोई अधिकार कभी उत्पन्न नहीं हुआ है। इस कारण इस संपत्ति में हिस्से की लड़ाई लड़ा जाना आप के लिए उचित नहीं है। इस लड़ाई में आप को कुछ भी हासिल नहीं होगा। सिवाय इस के कि आप के भाइयों से संबंध खराब हो जाएंगे।

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