किसी भी व्यक्ति को दोषसिद्ध हो जाने के बाद ही सजा दी जा सकती है
|समस्या-
मैं ने अपने पति और सास, ससुर के विरुद्ध दहेज, मारपीट, गाली गलौच का मुकदमा पेश किया हुआ है। केस करते ही पति गिरफ्तार हो गया। लेकिन सास और ससुर को गिरफ्तार नहीं किया गया। ससुर पुलिस में हैं शायद इस लिए वे लोग जमानत पर छूट गए। मुकदमा कर देने के बाद भी अभी तक उन के खिलाफ कोई वारंट भी नहीं निकला है और वे सभी खुले आम घूम रहे हैं। आखिर उन्हें सजा कब मिलेगी? उन के खिलाफ मेरे पास रिकार्डिंग भी है। जिस में उन सब ने हमें जान से मारने की धमकी भी दी हुई है। ये एफ.आई.आर. मैं ने दिसम्बर 2009 में करवाई थी। अभी तक इस का कोई अता-पता नहीं है। क्या ये मुकदमा रद्द हो गया है? मुझे अब उन्हें कैसे भी सजा दिलवानी है। उन्हों ने मुझ पर गंदे गंदे आरोप लगाना शुरु कर दिया था जिस से मेरी बदनामी भी हुई। क्या मैं उन पर मानहानि का मुकदमा भी दायर कर सकती हूँ। उन्हें क्या क्या सजा मिल सकती है।
-सिम्मी नेगी, मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश
समाधान-
आप ने जो प्रथमं सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) की थी उस पर पुलिस ने कार्यवाही की है. उसी के कारण आप के पति की गिरफ्तारी हुई और उन्हें जेल में रहना पड़ा। बाद में उन की जमानत हो गई। शायद आप के सास और ससुर को भी अदालत ने अग्रिम जमानत दे दी है। इस कारण से उन्हें भी गिरफ्तार नहीं किया गया। अब आप को यह पता नहीं है कि आगे क्या हुआ।
जिस मामले में आप के पति को 2009/2010 में गिरफ्तार किया गया है उस मामले में यह नहीं हो सकता है कि पुलिस ने न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल न किया हो। निश्चित रूप से पुलिस ने न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया होगा और आप के पति व सास, ससुर के विरुद्ध न्यायालय में मुकदमा चल रहा होगा। आप चाहें तो उस पुलिस स्टेशन से जिस में आपने रिपोर्ट दर्ज कराई थी जानकारी कर सकती हैं।
आप की शिकायत आप के विरुद्ध क्रूरता का व्यवहार करने, मारपीट करने, गाली-गलौच करने और स्त्रीधन वापस न करने के बारे में होगी। इस मामले में धारा 498-ए, 406, 323, और 504 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हुआ होगा और आप का स्त्री-धन बरामद करने के लिए आप के पति की गिरफ्तारी हुई होगी। बाद में उन्हें जमानत दे दी गई होगी। यह सब स्वाभाविक है। क्यों कि जब तक मुकदमे के दौरान सबूतों और गवाहियों से यह साबित नहीं हो जाता कि अभियुक्तों ने उक्त धारा के अंतर्गत जुर्म किया है यही माना जाएगा कि वे निरपराध हैं। इस कारण से किसी को भी बिना साबित हुए जेल में रखना उचित नहीं है। किसी भी व्यक्ति को दोषसिद्ध हो जाने के बाद ही सजा दी जा सकती है। मुकदमे के दौरान वे जमानत पर रहते हैं और न्यायालय द्वारा दंडित होने के उपरान्त य़दि वे अपील करना चाहते हैं और अपील के निर्णय तक सजा को निलम्बित रखने का आवेदन करते हैं तो न्यायालय मामले की गंभीरता के आधार पर सजा को निलंबित रख सकता है। अपील में भी सजा बरकरार रहने पर दोषियों को जेल में सजा काटने के लिए भेजा जाता है।
हमारी न्याय व्यवस्था की सब से बड़ी कमी यह है कि उस के पास जरूरत की 20 प्रतिशत अदालतें भी नहीं हैं। अदालतों में मुकदमों का अम्बार लगा है। इस के लिए राज्य सरकारें और केन्द्र सरकारें दोषी हैं कि वे पर्याप्त मात्रा में अदालतें स्थापित नहीं करती हैं। इस कारण से मुकदमों के फैसले में कई कई वर्ष लग जाते हैं।आप का मुकदमा भी न्यायालय में सुनवाई आरंभ होने के इन्तजार में रुका होगा। जब भी उस में गवाही की स्थिति आती है आप को न्यायालय से समन प्राप्त होगा तब आप गवाही के लिए प्रस्तुत होंगी तभी आप अपने पास के सभी सबूत न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकती हैं। आप चाहें तो उक्त मुकदमे का पता कर के उस में अपनी ओर से वकील नियुक्त कर सकती हैं जो आप की ओर से मुकदमे की देखभाल करे और आप की पैरवी करे। वैसे आप की ओर से सरकारी वकील पैरवी कर रहा होगा।
आप की बदनामी करने के लिए आप अलग से मुकदमा दायर कर सकती हैं। इस के लिए आप को स्वयं न्यायालय में शिकायत दर्ज करानी होगी और उस मुकदमे की हर तारीख पर उपस्थित होना पड़ेगा। इस के लिए आप किसी वकील से संपर्क कर के उस के माध्यम से धारा 500 भा.दं.संहिता के अंतर्गत न्यायालय में शिकायत प्रस्तुत कर सकती हैं।
मेरे राय में जितना कुछ हो गया है उस के उपरान्त आप का यह विवाह अब बचे रहने के लायक नहीं रह गया है। आप को चाहिए कि आप विवाह विच्छेद के लिए आवेदन करें और विवाह विच्छेद करवा कर अपने जीवन का नया आरंभ करने की बात पर विचार करना चाहिए।
उत्तम राय, क्यूकि ज़िन्दगी एक ही है और इसे व्यर्थ के झगड़ो और किसी को सजा दिलाने के लिए ही जीना व्यर्थ है