कीडों का कनस्तर खुलता है तो उसे खुलने दो!
|तहलका में प्रकाशित प्रशांत भूषण के साक्षात्कार में भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश श्री एस.एच. कपाड़िया के संबंध में की गई टिप्पणी पर कि ‘उन्हें उस कंपनी के मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी जिस के वे शेयरधारक हैं,’ सर्वोच्च न्यायालय में चल रही अवमानना कार्यवाही के दौरान प्रशांत भूषण के वकील राम जेठमलानी ने अपने मुवक्किल का लिखित बयान पेश किया। इस बयान में कहा गया था कि ‘उन के मुवक्किल के बयान का यह गलत अर्थ लगाया गया कि ‘न्यायमूर्ति कपाड़िया किसी आर्थिक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, न्यायमूर्ति कपाड़िया आर्थिक शुचिता के लिए जाने जाते हैं और मेरा मुवक्किल भी इस धारणा को सही मानता है। उन का मुवक्किल न्यायमूर्ति कपाड़िया का बहुत सम्मान करता है।’
इस बयान को देखने के उपरांत न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर ने जेठमलानी से पूछा कि उन का मुवक्किल अदालत के सामने क्षमा याचना या खेद क्यों नहीं प्रकट कर देता?
तब जेठमलानी ने कहा कि ‘आप (अदालत) मेरे मुवक्किल से क्षमायाचना या खेद प्रकट करने को नहीं कह सकते। अवमानना कार्यवाही किसी दबाव में नहीं चलनी चाहिए, केवल वे कायर ही जो कार्यवाही का सामना नहीं कर सकते क्षमा याचना या खेद प्रकट कर सकते हैं। मैं अपने मुवक्किल को क्षमायाचना या खेद प्रकट करने की सलाह नहीं दे सकता।’
इस के उपरांत न्यायालय ने संक्षिप्त आदेश पारित किया कि वह प्रशांत भूषण के लिखित बयान को स्वीकार नहीं करती, मामले का निर्णय गुणावगुण पर करने के लिए कार्यवाही को आगे चलाया जाए। तब जेठमलानी ने कहा कि ‘यदि कार्यवाही आगे चलाई जाती है तो वह कीड़ों का कनस्तर खोल देगी’। तब न्यायमूर्ति कबीर का उत्तर था कि ‘वह खुलता है तो खुलने दिया जाए’।
इस पर जेठमलानी ने कहा कि ‘हर कोई जानता है कि पिछले दो वर्षों से इस न्यायालय में क्या चल रहा है, लेकिन कोई मुहँ नहीं खोलना चाहता। यदि जनता को सच बोलने के लिए भुगतना चाहिए तो लाखों लोग सींखचों के पीछे जाने को तैयार हैं’
इसी अवमानना कार्यवाही में तहलका के अरुण तेजपाल के वकील राजीव धवन ने उन की ओर से कहा कि उन का मुवक्किल भी प्रशांत भूषण के रुख का समर्थन करता है। यदि सच ही अवमानना की प्रतिरक्षा बनने जा रहा है तो कुछ पूर्व मुख्यन्यायाधीश भी एक्स-रे की जद में आ सकते हैं।
न्यायमूर्ति सिरिक जोसेफ ने कहा कि जब कभी न्यायाधीश यह महसूस करते हैं कि उन का कही गई बात का अर्थ कुछ और समझ लिया गया है, तो वे भी खेद प्रकट करते हैं। अवमानना कार्यवाही का सामना करने वालों के लिए खेद प्रकट करने में कोई खराबी नहीं है।
पूर्व कानून मंत्री शान्तिभूषण जिन्होंने यह कहा था कि उच्च-न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, चाहते थे कि इस अवमानना कार्यवाही में उन्हें भी पक्षकार बनाए जाने की उन के आवेदन पर विचार किया जाए, इस पर अदालत ने उन के आवेदन पर अगली तिथि पर विचार करने को कहा। अब इस मामले की सुनवाई 13 अप्रेल को की जाएगी।
More from my site
5 Comments
अच्छी पोस्ट.
जेठमलानी जी, बहुत खतरनाक प्रतीत होते हैं।
क्या कहें कुछ कहा नहीं जाए,
बिन कहे भी रहा नहीं जाए।
अब तो हम भी खेद प्रकट कर सकेंगे। आभार।
———
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
क्या हम जजों के किसी भी कार्य पर उँगली नहीं उठा सकते है जो केस आप बता रहे है उसमे तो सब कुछ सामने है फिर भी नहीं |