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कॉट्रेक्ट का उल्लंघन कर इन्सेन्टिव न देने पर दीवानी न्यायालय में वाद प्रस्तुत करें।

TELECOM COMPANYसमस्या –
मेरठ, उत्तर प्रदेश से शहजाद हसन ने पूछा है –

मैं रिलायन्स कम्पनी (रिलायन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्युनिकेशन लिमिटॅड R.I.C.L)  का डिस्ट्रीब्यूटर हूँ और मेरी फर्म कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत रजिस्टर्ड है जिसका नाम (हसन सिद्दीकी एण्ड कम्पनी) है। मेरा डिस्ट्रीब्यूटर कोड 6123730015 है। मैंने रिलायन्स कम्पनी का कार्य करने के लिये टिन नम्बर भी लिया हे जिस में मैं कम्पनी के सिम कार्ड, ई-रिचार्ज, मोबाईल, पेपर कूपन आदि की रिटेलर को सप्लाई करता हूँ,  जिस से मुझे कम्पनी की शर्तानुसार कुछ कमीशन मिलता है। सिम बिक्री करने का एक टारगेट होता है जिस पर कम्पनी एक निश्चित इन्सेंटिव भी देती है। मैं ने सितम्बर २०१२ और अक्टूबर २०१२ में सिम बिक्री का टारगेट पूरा किया था जिसका इंसेंटिव (incentive ) नवम्बर २०१२ में आना था। परन्तु नवम्बर मे नहीं आया तब मैं ने कम्पनी के कर्मचारी  मि.प्रवीण अरोरा  से पता किया तो उन्हों ने मुझे बताया कि इस महीने किसी का भी पे आउट रिलीज नहीं हुआ है, अगले महीने दिसम्बर में आयेगा। तब मैं ने अगले महीने का इंतजार किया। मगर मैं यह देख्कर चौंक गया कि सभी डिस्ट्रीब्यूटरों  का टारगेट पे आउट रिलीज हो गया है (जिसकी पूरी डिटेल मेरे पास उपलब्ध है) परन्तु मेरा पे आउट रिलीज नही हुआ। तब मेंने मि.प्रवीण अरोरा ra) से पता किया तो उन्हों ने मुझे कुछ नहीं बताया। फिर मेंने मि.प्रवीण अरोरा जी के बॉस मि. राजकुमार यादव जी से बात की तो उन्होने भी 5 से 10 बार फोन और ई मेल करने के बाद भी कोई सही जवाब नहीं दिया और कहा कि तुमने हमारे कहे अनुसार काम नहीं किया इसलिए आप का पे आउट रिलीज नहीं कराया। फिर मैं ने उन से कहा कि मैं आप कि शिकायत आप के ऊपर के अधिकारी से करूंगा तब उन्हों ने कहा कि कुछ नहीं होगा। क्यो कि उनके कहने पर पर ही तेरा पेसा रुकवाया गया है। अगर तू ज्यदा शिकायत करेगा तो हम तुम्हें डिस्ट्रीब्यूटरशिप से डिसमिस कर देंगे और सिक्योरिटी राशि के लिए धक्के खिलायेगे। इस के बाद मैं ने मि. राजकुमार यादव जी के बॉस और मेरठ ऑफिस के क्लस्टर हेड मि. अमित सिंह जी सम्पर्क किया और मैं ने जब उनसे अपने सितम्बर 2012 और अक्टूबर 2012 के पे आउट के बारे में पता किया तो उन्होने कहा कि तुमने हमारे कहे अनुसार काम नहीं किया इसलिए आप का पे आउट मैं ने रूकवाया है और अब वो तुम्हें नहीं मिलेगा। अब मेरी पोस्टिंग मेरठ से दिल्ली हो गयी है। तब मैं ने उनसे कहा कि आप ने मेरे साथ धोखा किया है और मैं आप को इस साल की एन.ओ.सी.  नही दूंगा। तब उन्हों ने कहा कि ऐसी एन.ओ.सी. (NOC) तो हम अपने ऑफिस में तैयार कर लेते हैं। उन्हों ने कहा कि अगर तुम मुझे 10,000 रु. दो तो मे तुम्हारे 44,500 रुपये का दो माह का पे आउट रिलीज करा दूंगा।  मैं ने रिश्वत देने के लिए मना कर दिया तो उन्हों ने यह कह कर फोन काट दिया कि अब आप नये क्लस्टर हेड से मिलो।  फिर मैं ने प्रत्येक आये नये अधिकारी से बात कर ली। मगर कोई अधिकारी सही जानकारी देने को तैयार नहीं और अब धमकी देते हैं कि आप को रिलायन्स का काम करना हो तो करो, नहीं तो काम छोड दो। मैं अपना दो माह का पे आउट 44,500 रुपए कैसे प्राप्त कर सकता हूँ? मैं इस पे आउट को पाने के लिये कौन से कानून या कोर्ट में अपना केस डाल सकता हूँ। मुझे इसके लिए वकील की जरूरत होगी या मैं स्वयं किसी विभाग में इस केस को डाल सकता हूँ? उपभोक्ता तो, उपभोक्ता कोर्ट में केस फाईल कर सकता है मगर डिस्ट्रीब्यूटर और रिटेलर कहाँ केस फाईल कर सकेगा? क्या प्राईवेट टेलीकॉम कम्पनी आर.टी.आई. एक्ट 2005 के अंतर्गत आती है? यदि हाँ तो आर.टी.आई किस पते पर भेजनी होगी?

समाधान-

प को रिलायन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्युनिकेशन लिमिटेड ने आप के साथ एक कॉन्ट्रेक्ट कर के अपना डिस्ट्रीब्यूटर नियुक्त किया। जिस में शर्तों के अनुसार आप को माल रिटेलर्स को विक्रय करना था तथा टारगेट पूरा करने पर आप को इन्सेन्टिव मिलना था। अर्थात जो कुछ भी होना था आप के साथ हुए कॉन्ट्रेक्ट की शर्तों के अनुसार होना था। आप ने टारगेट पूरे किए लेकिन कम्पनी ने आप को इन्सेन्टिव नहीं दिया। कंपनी ने कॉन्ट्रेक्ट की शर्तों के अनुसार आप के काम का भुगतान आप को नहीं किया। इस तरह कंपनी ने कॉन्ट्रेक्ट का उल्लंघन किया है।

प ने कंपनी के अधिकारियों से बात की तो उन्हों ने रिश्वत की मांग की। यह बात आप को अच्छी नहीं लगी। लेकिन भारत में बहुत से उद्योगों और व्यापारों ने अपना यह कायदा ही बना लिया है कि किसी लाभ को देने के लिए उस के अधिकारी रिश्वत मांगें। यह बात कंपनी के ऊपर तक के अधिकारियों की जानकारी में होती है इस कारण से आप की सुनवाई कंपनी में होना कठिन है। हो सकता है वे सोचते हों कि इस इन्सेन्टिव के लिए आप को दीवानी मुकदमा करना होगा जिस में 10,000 रुपए तक का खर्चा आ जाएगा इस कारण आप परेशानी से बचने के लिए उन्हें इतनी राशि रिश्वत के रूप में दे देंगे। यह भी हो सकता है कि दूसरे डिस्ट्रीब्यूटरों ने इस तरह की रिश्वत जिसे वे कमीशन कहते हों कंपनी के अधिकारियों को दी हो। इस तरह की रिश्वत का रिवाज ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने से बना हुआ है. नया नहीं है। आजाद भारत में भी कंपनियाँ और इस के अफसर इस का उपयोग करते हैं।

प को चाहिए कि आप एक कानूनी नोटिस कंपनी को किसी वकील के माध्यम से भिजवाएँ जिस में आप उक्त दो माह की इन्सेन्टिव की राशि और उस का अदायगी तक का ब्याज व हर्जाने की मांग करें। यदि नोटिस की अवधि निकल जाने तक भुगतान न हो तो आप कंपनी के विरुद्ध दीवानी वाद सक्षम क्षेत्राधिकार के दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत करें यही आप के लिए एक मात्र मार्ग है।

प को इस काम में वकील की मदद लेनी पड़ेगी, आप स्वयं यह काम नहीं कर पाएंगे। आप उपभोक्ता नहीं है इस कारण से आप उपभोक्ता न्यायालय में शिकायत प्रस्तुत नहीं कर सकते। कॉन्ट्रेक्ट के मामलों के लिए दीवानी अदालत ही एक मात्र अदालत है, कोई विशेष अदालत इस के लिए नहीं बनी है।  निजि कंपनियों पर आर.टी.आई. अधिनियम प्रभावी नहीं होता इस कारण से इस मामले में आप आर.टी.आई. का उपयोग नहीं कर सकते।