कोशिश करें कि पत्नी को समझ आ जाए, वह आप के साथ रहने को तैयार हो जाए
| सोनू ने पूछा है – – –
मैं अजमेर का रहने वाला हूँ, छुटपुट धंधा करता हूँ। 2006 में मेरी शादी हुई थी, शादी के कुछ दिन बाद से ही मेरी पत्नी मायके जाने की जिद करने लगी। समझाने पर भी नहीं मानी और अपने पिता को फोन कर के मेरे घर बुला कर लड़ाई-झगड़ा करती। इस कारण उस के पिता उसे अपने साथ ले गए। और मुझ पर घरेलू हिंसा और दहेज का केस लगाने की धमकी देने लगी। मैं ने दस्तो से मशविरा कर परिवार न्यायालय में धारा 9-ए का मुकदमा कर दिया। इस पर उस ने मुझ पर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया। समाज वालों के हस्तक्षेप से मामला सुलझा। पर इस के एक साल बाद ही उस का पिता उसे वापस अपने घर ले गया। समाज में मेरी और मेरे परिवार की बुराई करता है। मेरी पत्नी को वापस भेजने को मना करता है। बताएँ मैं क्या करूँ? मेरा तीन साल का बेटा भी है, जिस का भविष्य इस कारण से खराब हो रहा है।
उत्तर – – –
सोनू जी,
आप की समस्या जटिल है। आप की संक्षिप्त सूचनाओं से लगता है कि आप की पत्नी किसी कारण से आप के साथ रहना नहीं चाहती है। यह कारण आप को तलाश करना होगा। हो सकता है इस का कारण आप के परिवार में हो, यदि ऐसा है तो उस कारण का पता लगा कर उसे दूर करें। हो सकता है इस का कारण उस का अतिमहत्वाकांक्षी होना हो। यदि ऐसा है तो आप का आप की पत्नी के साथ तब तक साथ रह पाना कठिन है जब तक कि उस की महत्वाकांक्षाएँ कुछ कम हो कर यथार्थ के धरातल पर न आ जाएँ। यदि इस के अतिरिक्त अन्य कोई कारण है तो फिर आप की पत्नी का राह पर आना दुष्कर सिद्ध हो सकता है। आप ने यह नहीं बताया कि आप के बेटे का भविष्य किस तरह खराब हो रहा है, और उस की उम्र कितनी है। वैसे विवाह 2006 में हुआ है तो उस की उम्र अभी पाँच वर्ष की नहीं है।
आप को तुरंत चाहिए कि आप पुनः धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा लगाएँ। पिछली सारी परिस्थितियों का वर्णन उस में करें। यह भी बताएँ कि किस तरह आप के बेटे का जीवन खराब हो रहा है? क्यों कि उस की उम्र अभी पाँच वर्ष की नहीं है तो वह स्कूल जाने लायक तो नहीं ही है। यदि कुछ विशेष परिस्थितियाँ हैं और आप समझते हैं कि आप के बेटे का जीवन खराब हो रहा है तो आप अपने बेटे को अपने पास रखने के लिए उस की कस्टडी प्राप्त करने के लिए भी हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-26 के अंतर्गत न्यायालय को आवेदन कर सकते हैं, लेकिन यह आवेदन आप के द्वारा धारा-9 का मुकदमा कर देने के उपरांत ही दिया जा सकता है। एक बार दोनों आवेदन प्रस्तुत कर देने पर न्यायालय आप दोनों के बीच सुलह कराने का प्रयत्न करेगा। आप को चाहिए कि आप न्यायालय को सारी परिस्थितियाँ सही-सही बताएँ और कहें कि आपसी समझाइश से मामला बन सकता है। यदि न्यायालय के न्यायाधीश को आप की बात सही लगेगी तो वह दोनों पक्षों को समझाने का प्रयत्न करेगा। यह संभव है कि इस समझाइश से बात बन जाए और आप की पत्नी आप के पास आ कर रहने लगे। यदि आप की पत्नी के आप के पास आ कर न रह पाने का कारण तीसरी प्रकृति का है तो उस का समझ पाना दुष्कर होगा और फिर पत्नी से तलाक ही बेहतर होगा।
यदि फिर भी बात नहीं बनती है तो आप आप के पुत्र के पाँच वर्ष का होने तक प्रतीक्षा करें, न्यायालय से उस की कस्टडी आप को मिल जाएगी। यदि आप की पत्नी और उस के पिता में जरा भी समझ हुई तो बेटे की कस्टड़ी मिलने के बाद आप की पत्नी आप के पास आ कर रहने लगेगी। यदि फिर भी ऐसा नहीं होता है तो अंतिम मार्ग यही बचेगा कि आप सहमति से तलाक लेने का प्रयत्न करें। यदि वह भी संभव न हो तो तलाक की कार्यवाही करें। इस सब में समय तो लगेगा, लेकिन इस के अलावा कोई मार्ग नहीं हैं। चुप न बैठें, कार्यवाही तुरंत करें।
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