क्या आप अपने लिए एक काम करेंगे?
|लेकिन इस की फिक्र कम से कम उन्हें नहीं है जिन के पास भारी भरकम लाठियों वाले लठैत हैं। उन तमाम लोगों को नहीं है जो राजनीति में हैं और चुनाव जीत कर संसद और विधानसभाओं में विराजमान हैं। उन्हें भी नहीं है जो अन्य स्थानीय संस्थाओं में अच्छे पदों पर बैठे हैं। उन्हें भी नहीं जो बड़ी बड़ी कंपनियाँ चला रहे हैं। उन अफसरों को भी नहीं है जिन के पास प्रशासन का डंड़ा है।
इस मार से यदि कोई परेशान है तो वह आम व्यक्ति है। जिस में गांव का किसान है, खेत मजदूर है, कस्बों और नगरों में नौकरियाँ कर रहे कर्मचारी हैं, छोटे-बड़े दुकानदार हैं, फुटकर मजदूर हैं, छोटे उद्योगपति हैं। उन्हें इन लठैतों की मार सहन करनी होती है। जनता का यह सारा हिस्सा देश के अस्सी प्रतिशत से अधिक आबादी का निर्माण करता है। देश की यह अस्सी प्रतिशत आबादी से मेरा यही प्रश्न है कि क्या वे सरकारों को इस न्याय-व्यवस्था को सुधारने और इसे विस्तार देने के लिए बाध्य करने में सक्षम नहीं हैं। मैं जानता हूँ कि इस ब्लाग को केवल कुछ सौ लोग ही पढ़ेंगे। लेकिन वे सौ लोग यदि अन्य लोगों तक यह बात पहुँचाएँ और आगे पहुँचाने के लिए कहें तो शायद यह बात एक दिन उन अस्सी प्रतिशत लोगों तक जरूर पहुँच जाएगी।
क्या आप इस काम को करेंगे?
महोदयजी
कोशिश करने वालो की हर नहीं होती
संजय सेठ कुशलगढ़ राजस्थान
9610152288
अवश्य पर्यास करंगे /
राजेंद्र सिंह / अजमेर
I’d have to cut a deal with you on this. Which is not something I usually do! I really like reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to comment!
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ये जो बीच में समझौता करवाने वाले होते हैं वो बड़े खतरनाक लगते हैं , अक्सर वे किसी न किसी तरफ झुककर नतीजा सुनाते हैं . उनके सुनाये नतीजे ज्यादा दिनों तक चलते, या माने भी नहीं जाते . सचमुच सही साधन तो व्यवस्था को झकझोरने से ही पूर्ण होगा . और इसके लिए आप को एक नहीं ऐसे १०० पोस्ट लिख कर , ब्लॉग से बाहर निकल कर कुछ लोगों अपने साथमेहनत करवानी होगी
भारतीय न्याय व्यव्यस्था- बिनायक सेन
बहुत ही गम्भीर और सार्थक प्रश्न उठाया है आपने। पर पुलिस के प्रति, अदालतों के प्रति, चुनावों के प्रति आम लोगों की उत्तरोत्तर बढ़ती उदासीनता व्यवस्था से उनके मोह-भंग का लक्षण भी तो हो सकती है। आवश्यकता इस मोह-भंग को और तेज़ करके किसी सार्थक विकल्प की तलाश के लिये लोगों को जागरूक और सक्रिय करने की है।
जरूर कुछ लोगों तक सन्देश पहुचाया जाएगा.
बहुत बढिया और सार्थक पहल की है। इसके लिए सभी को एक साथ मिलकर पहल करनी होगी। आपके प्रयास के लिए बधाई
भारत के एक पूर्व न्यायधीश ने भी बरसो पहले एक किताब लिखी थी’ वी द पियूपल’ .लाखो प्रतिया बिकी..पर हालात जस के तस है….सवाल विचारो को प्रयोग में लाने का है …..जो लोग ब्लॉग पढ़ते है ओर कम्पूटर का इस्तेमाल करते है .वे पढ़े लिखे है .वे कोई न कोई रास्ता खोज सकते है .पर जिस तबके को न्याय की जरुरत है उसका क्या द्रिवेदी जी ?
दरअसल तमाम सरकारी महकमों को अब प्रबंधन कौशल की जरुरत है….
अच्छा सुझाव है। लेकिन यह फलित होगा, इसकी संभावना कम ही है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
purnta sahmat hu, aaj se hi yeh prayaas aarmbh karta hu.
m.h.
समीर जी से सहमत
आपने शंख बजा दिया है, निश्चित ही शंखनाद दूर दूर तक पहुँचेगा. साधुवाद इस सार्थक प्रयास के लिए.
दिनेश जी काश भारत मै यह सब हो जाये, भगवान आप का यह सपना सचा कर दे तो हर गरीब को अपना अधीकार जरुर मिले, लेकिन अभी तो जिस की लाठी उसी की भेंस है, मेने गरीब को पीट्ते ओर फ़िर उस गरीब को समझोते करते देखा है, वो भी सिर्फ़ डर के मारे.
धन्यवाद आप की यह बात सॊ तक नही तो २० लोगो तक तो जरुर पहुचाऊगां
अवश्य. मैं ऐसे सरकारी दफ्तर में हूँ जहाँ एक पद पब्लिक प्रोसिक्यूटर का भी होता है और एक दिन मैं उनके साथ इसी विषय पर चर्चा कर रहा था. आपके सुझाव अपनाए जाने चाहिए. मैं आपके ब्लौग से इत्तेफाक रखता हूँ.
हिंदी में प्रेरक कथाओ, प्रसंगों, और रोचक संस्मरणों का एकमात्र ब्लौग http://hindizen.com अवश्य देखें.
हम तो कोशिश कर ही रहे हैं
इस पहल के लिये कोशिस की जा सकती है ।
आपकी सोच सार्थक है. हमारा समर्थन तो प्रारंभ से ही है लेकिन अब आपने एक दायित्व दिया है. अवश्य ही इस जोत को आगे बढायेंगे.
dinesh jee, bahut hee sateek baat kahee hai aapne aur janmat banaane ke liye jantaa ko hee khud aage aanaa hoga ,aur naukarshaahon ko sunaane ke liye apnee baat kehne kaa ek achha maadhyam chitthi hai….
kaash ki ye alakh har or jage….
@ हिमांशु । Himanshu,
बहुत बहुत आभार! आप ने मेरी हिम्मत बढ़ा दी।
@काजल कुमार Kajal Kumar,
लोक अदालतों में एक्सीडेण्ट क्लेम अदालतों के निर्णयों से मिलने वाली राशि से कम ही दिला रही हैं। इंश्योरेंस कंपनी को तो बचत ही होती है। वकील को भी जल्द उस की फीस मिल जाती है। हाँ यह जरूर है कि शीघ्र क्लेम लेने के चक्कर में पीड़ित को कम क्षतिपूर्ति मिलती है।
@ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey,
लेण्ड रेकार्ड का कम्प्यूटरी करण बहुत हद तक हो चुका है मेरे जिले में तो संपूर्ण है। अदालतों का कम्प्यूटरी करण भी तेजी पर है। लेकिन इस मामले में राज्य सरकारों की जिम्मेदारी वे ठीक से नहीं निभा रही हैं।
इस अस्सी प्रतिशत की उपेक्षित आबादी के लिये ये ब्लॉग सोच रहा है, मैं इतने से ही मन को संतोष देने लग गया हूँ । मुझे संतोष यह भी है कि मैं सौ ब्लॉग पढ़ने वालों में से एक हूँ, और दृढ़ हूँ कि सौ तक तो यह बात पहुँचा ही दूँगा । आभार ।
चिंता सही है किन्तु पहल करने के बाद उसे अनाथ छोड़ दिए जाने का सर्वोत्तम नमूना बीमा (साधारण) लोक अदालतें हैं. इन लोक अदालतों में नियुक्ति किन शर्तों पर होती है, सबको पता है. जिस तरह से बंधे हुए रेटों पर क्लेम सैटल होते हैं ये भी छुपा नहीं है. सरकार ने ये अदालतें बनायीं और फिर सब सो गए. आज ये अदालतें निरंकुश तानाशाहों की तरह चलाई जा रही हैं. इंश्योरेंस कम्पनियों से सभी तरह के अनाप शनाप क्लेम दिलवाए जा रहे हैं, बिचौलियों के साथ मिलकर, सभी ऐश कर रहे हैं. कीमत अदा कर रहा है इमानदारी से बीमा करवाने वाला.
गृहमन्त्री जी कहते हैम कि सन २०११ तक हर नागरिक को स्मार्ट-कार्ड (यूनीफाइड पहचान पत्र) दे दिये जायेंगे। उनके साथ ही अगर लैण्ड रिकार्ड का कम्प्यूटरीकरण हो जाये तो यह माफिया रोल भी कम हो और निरर्थक मुकदमे भी।
माननीय न्यायधीश जी को आईटी प्रयोग की अलख जगानी चाहिये।
सदविचार,इसकी पहल अवश्य होनी चाहिए .
एक जरासी कोशीश भी एक दिन अवश्य रंग लाती है. शुभकामनाएं.
रामराम.
कोशिश जरूर करूंगा