क्या ‘तीसरा खंबा’ भारतीय न्याय प्रणाली का उत्प्रेरक बनेगा ?
|विगत कुछ वर्षों से न्याय जगत में घट रही घटनाऐं मेरे मानस पटल को लगातार झकझोर रही थीं। २००७ में ही मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के सम्पर्क में आ सका। मुझे यह एक ऐसा औजार प्रतीत हुआ जो भविष्य में अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का उत्प्रेरक सिद्ध हो सकता है। फिर कुछ-कुछ इस की तकनीक जानने का प्रयत्न किया। आखिर इस चिट्ठे ‘तीसरा खंबा’ ने जन्म लिया। भारतीय न्याय प्रणाली पर चर्चा का मंच के रूप में ‘तीसरा खंबा’ ने पिछले ढाई माह में एक मंजिल हासिल की है।
एक वकील के रूप में उनतीस वर्षों में मैं ने इतनी घुटन कभी भी महसूस नहीं की जितनी विगत पाँच-छह वर्षों में की है। ‘तीसरा खंबा’ ही थोड़ी बहुत ऑक्सीजन का स्रोत बन सका है, नतीजतन जीवित हूँ। बजरिए ‘तीसरा खंबा’ यह स्पष्ट हो चुका है कि किसी भी राज्य की न्याय प्रणाली उस राज्य की जीवनी क्षमता का `मानक` है। जिस राज्य में छोटे से छोटे अन्याय के लिए भी न्याय प्रणाली का दरवाजा खटखटाया जा सके और उसे तत्काल अथवा न्यूनतम समय में न्याय प्राप्त हो जाए वही राज्य सर्वोत्तम हो सकता है। दास युग से ले कर आज के पूंजीवादी, समाजवादी और जनवादी राज्यों के तक के लिए यह सही है। यदि कभी साम्यवादी समाज का सपना सच हो पाए, तो वहाँ राज्य के अनुपस्थित होते हुए भी समाज में न्याय प्रणाली ही साम्यवाद का मूल आधार बनेगा।
आज जनतंत्र का युग है। लेकिन हमने विगत ६० वर्षों में जैसा जनतंत्र जिया है, वह क्या जनता के लिए यथार्थ में जनतंत्र है? सब कुछ धन की ताकत के इर्द-गिर्द है। आप के पास खर्च करने को धन है, तो आप के लिए यह जनतंत्र स्वर्ग है, अन्यथा आपके पास हाथ, दिमाग और काम करने की क्षमता होते हुए भी आप हाशिए पर ही खड़े रहेंगे। राज्य के सारे तंत्र धन की ही सेवा करते दिखाई पड़ेंगे। धन की इस ताकत ने राजनीति, विज्ञान, व्यक्ति, उस की आजादी, उसका जीवन, उस का धर्म, उस का आध्यात्म सभी को अपने अधीन कर लिया है। मानव मात्र को धन के पराधीन बना देने वाली इस व्यवस्था का प्रतिकार क्या आवश्यक नहीं है?
जब तक राज्य जीवित है तब तक राजनीति मानव जीवन का आवश्यक तत्व बना रहेगा। राजनीति से विमुखता के तमाम नारे भी एक राजनीति हैं, जिस से सचेत लोगों को राजनीति से दूर रखा जा सके, और शासक वर्गों का राज्य पर बरकरार स्वामित्व इस आंच से दूर ही रहे। जब तक समाज में राज्य जीवित है, तब तक उस में हलचल का कोई भी प्रयास राजनीति से विलग हो ही नहीं सकता। इस कारण से ‘तीसरा खंबा’ जो समाज में हलचल का प्रयास कर रहा है वह भी राजनीति से विलग नहीं है और न ही रह सकता है। लेकिन ‘तीसरा खंबा’ की राजनीति राजनैतिक दलों की राजनीति नहीं है, यह जनता के सुनहरे भविष्य की राजनीति है, जो हो सकता है हमारे भविष्य के वास्तविक जनतंत्र की नींव का एक पत्थर बन सके।
‘तीसरा खंबा’ में टिप्पणियों के माध्यम से अनेक व्यक्तियों ने चर्चा में हिस्सेदारी की है और उन से ही विचार को आगे बढ़ा पाने में सफलता प्राप्त हुई। मैं इस चिट्ठे पर आ कर, इसे पढ़ कर टिप्पणी करने वाले सभी साथियों का आभारी हूँ, उन से ही मुझे दिशा और बल प्राप्त हुआ है और मुझे विश्वास है कि यह भविष्य में भी प्राप्त होता रहेगा। मैं चिट्ठाजगत, ब्लॉगवाणी, हिन्दी ब्लॉग्स, नारद, टेक्नोक्रेटी और अन्य एग्रीगेटर्स का भी अत्यन्त आभारी हूँ जिन्हों ने तीसरा खंबा को आप तक पहुंचाया। मैं गूगल का भी आभारी हूँ जिस ने अपने व्यवसाय के क्रम में ही सही मुझे और सभी ब्लॉगर्स को निःशुल्क सुविधाऐं प्रदान कर रखी हैं। अनूप शुक्ल जी ‘फुरसतिया’ से मैं कभी भी उऋण नहीं हो सकता जिन्हों ने मुझे मेरे गुरुजी श्री अशोक शुक्ल जी का पता और टेलीफोन नम्बर उपलब्ध करवाया और मुझे उन से पुनः सम्पर्क का अवसर प्राप्त हुआ साथ ही साथ अपना ब्लॉग शुरु करने की सलाह दे डाली जिस पर अमल के परिणाम के रूप में ही ‘तीसरा खंबा’ और(‘अनवरत’जो न्याय प्रणाली के अतिरिक्त अपनी अभिव्यक्तियों के लिए शुरु करना पड़ा) आप के सामने हैं।
‘तीसरा खंबा’ अब केवल ‘भारतीय न्याय प्रणाली पर चर्चा का मंच’ बना नहीं रह सकता। इसे ‘भारतीय न्याय प्रणाली को दुनियां की सर्वश्रेष्ठ जनतांत्रिक न्याय प्रणाली बनाने के अभियान का प्रथम उत्प्रेरक’ के रूप में बदलना आवश्यक प्रतीत हो रहा है। यदि मेरे टिप्पणीकारों की राय रही तो यह किया जा सकेगा अन्यथा यह अपने पूर्व रूप में ही चलता रहेगा। इस काम में यदि अन्य वकील साथी और वर्तमान व भूतपूर्व न्यायाधीश साथी भी साथ आऐं तो काम की गति को आगे बढ़ाया जा सकेगा। भारतीय न्याय प्रणाली में कार्यरत कुल विधि स्नातकों में वकील साथियों की संख्या ९० प्रतिशत से ऊपर ही है। इस प्रणाली की अपर्याप्तता और अपकर्ष का दुष्प्रभाव के भोक्ता आम जनता के बाद सब से अधिक वे ही हैं, उन्हें तो एक न एक दिन इस अभियान में उतरना ही है, वे साथ दें तो काम आसान भी होगा और तेजी से गति भी पकड़ेगा।
साल का यह आखिरी आलेख बहुत लम्बा हो गया है। सब को नववर्ष की ढ़ेरों-ढ़ेर शुभ कामनाऐं। फिर मिलेंगे नए वर्ष में…………..
Thanku so much sir aap samanay logo ke liye ek nayi ujale ki kiran lekar aaye he thanku
This post seems to get a large ammount of visitors. How do you promote it? It gives a nice unique spin on things. I guess having something real or substantial to say is the most important thing.
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आशा है नए साल में आपका अभियान सफल होगा. नए साल की ढेरों शुभकामनाएँ.
साल मुबारक .
आपके व्यक्तित्व और लेखन से मुझे पूरा भरोसा है कि तीसरा खम्बा को लेकर आपका संकल्प पूर्ण होगा।
हम दोनो एक ही वय के हैं और अलग-अलग खम्बा ले कर खड़े हैं। आइये नये वर्ष में एक दूसरे को सफलता का भरोसा दें।
नव वर्ष मुबारक।
इतना महान विचार आपके मन में आया, यह हिन्दी चिट्ठाकारी की सफलता का प्रतीक है। मेरी भी हार्दिक अभिलाषा यही है कि आप का चिट्ठा भारतीय न्याय-प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ बनाने और उसके जरिये भारत को सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने में महती भूमिका अदा करे।
द्विवेदीजी नववर्ष में आपने वाकई कमाल का विचार सामने रखा है.
मैं काफी समय से तीसरा खंबा पढ़ रहा हूं. मैं भी एक विधि स्नातक ह यदि किसी प्रकार का सहयोग कर सकूं तो मुझे खुशी होगी.