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क्या दीवानी प्रकृति का वाद दायर करने से पूर्व कानूनी नोटिस भेजना जरूरी है?

मनीष कुमार ने पूछा है –

क्या दीवानी प्रकृति (सिविल नेचर) का वाद दायर करने से पूर्व कानूनी नोटिस भेजना जरूरी है?

उत्तर –

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अनुसार यदि कोई भी दीवानी वाद किसी सरकार के विरुद्ध या लोक अधिकारी के विरुद्ध उस लोक अधिकारी द्वारा उस की पदीय हैसियत में किए गए किसी कार्य के संबंध में है तो ऐसे वाद के पूर्व नोटिस देना निहायत जरूरी है। ऐसे नोटिस में वादी के नाम,उस के निवास स्थान, वाद का हेतुक और अनुतोष सहित जो उस वाद में मांगा जाना है का वर्णन किया जाना आवश्यक है। ऐसा नोटिस केन्द्रीय सरकार के मामले में सरकार के सचिव को, रेलवे के मामले में उस रेल के प्रधान प्रबंधक को, जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार के विरुद्ध मुख्य सचिव या उस राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किसी अन्य प्राधिकारी को तथा अन्य राज्य सरकारों के मामले में सरकार के सचिव या जिला कलेक्टर को दिया जाना आवश्यक है। ऐसा नोटिस प्राप्त हो जाने के दो माह का समय व्यतीत होने के उपरांत ही ऐसा दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।

यदि ऐसा वाद कोई अत्यावश्यक या तुरंत अनुतोष प्राप्त करने के लिए हो तो न्यायालय की अनुमति से ऐसा वाद दायर किया जा सकता है। लेकिन वाद में कोई भी अनुतोष चाहे वह अंतरिम ही क्यों न हो प्रतिवादी सरकार या अधिकारी को नोटिस प्राप्त हो जाने और अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिए बिना पारित नहीं किया जा सकता है।  यदि न्यायालय यह समझता है कि ऐसा कोई अत्यावश्यक या तुरंत अनुतोष वांछित नहीं है तो वह वाद को नोटिस देने और समय व्यतीत होने के उपरांत प्रस्तुत करने के लिए वाद प्रस्तुत करने वाले पक्षकार को लौटा देगा।

इस के अलावा बहुत सी सरकारी, अर्धसरकारी और विधि द्वारा स्थापित संस्थाओं और निगमों के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने के लिए नोटिस की आवश्यकता के संबंध में कानून बने हुए हैं, इन कानूनों में कुछ कानून ऐसे भी हैं कि अत्यावश्यक या तुरंत अनुतोष की आवश्यकता होने पर भी बिना नोटिस के वाद ग्रहण किया जाना संभव नहीं है और नोटिस देना जरूरी है। अन्य दीवानी मामलों में नोटिस देना आवश्यक नहीं है लेकिन यदि किसी संविदा पर आधारित वाद की संविदा में इस तरह की शर्त हो कि नोटिस देना आवश्यक हो या किसी मामले में नोटिस देने पर ही वाद के लिए वाद कारण उत्पन्न होता हो तो नोटिस देना आवश्यक होगा अन्यथा नोटिस देना जरूरी नहीं होगा।

यहाँ आपने किसी विशिष्ठ मामले में यह पूछा होता कि इस मामले में नोटिस आवश्यक है अथवा नहीं तो आप को स्पष्ट उत्तर दिया जा सकता था। लेकिन यह प्रश्न महत्वपूर्ण होने के कारण उस का उत्तर दिया जा रहा है। यहाँ यह भी जान लेना आवश्यक है कि नोटिस भी बहुत सोच समझ कर दिया जाना चाहिए और उस मे कोई भी अनावश्यक बात सम्मिलित नहीं की जानी चाहिए और न ही कोई आवश्यक तथ्य या बात छूटनी चाहिए। अन्यथा नोटिस देना बेकार हो जाएगा। जब भी किसी व्यक्ति को कोई वाद प्रस्तुत करना हो तुरंत किसी अच्छे और विश्वसनीय वकील की सलाह उसे लेनी चाहिए और नोटिस देने का काम उसी से करवाना चाहिए।

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