क्या माँ की चचेरी बहिन की बेटी से विवाह वैध होगा?
| अमित ने पूछा है –
क्या मैं अपनी माँ की चचेरी बहिन की बेटी से शादी कर सकता हूँ? हम दोनो हिन्दू हैँ।
उत्तर –
अमित जी,
हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 जिन संबंधियों के बीच विवाह का निषेध करता है उन संबंधियों में आप दोनों नहीं हैं। इस के अतिरिक्त सपिण्ड संबंधों में के बीच भी इस अधिनियम में विवाह को निषेध ठहराया गया है। सपिंड की जो परिभाषा हिन्दू विवाह अधिनियम में दी गई है उस के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने पिता के रिश्तों में पाँच पीढियों तक और माता के रिश्तों में तीन पीढ़ियों तक के रिश्तों में विवाह नहीं कर सकता। यहाँ आप दोनों के बीच जो संबंध है वह माता के रिश्ते है। आप का दोनों से गिना जाए तो क्रम-1 पर आप हैं, क्रम-2 पर आप की माता जी, क्रम-3 पर आप की माता जी के पिता जी हैं और क्रम चार पर आप की माता जी के दादा जी हैं। जिस लड़की से आप विवाह करना चाहते हैं उधर से गिनें तो लड़की क्रम-1 पर आप है, क्रम-2 पर उस की माता जी, क्रम-3 पर उस की माता जी के पिता जी हैं और क्रम चार पर उस की माता जी के दादा जी हैं। अर्थात आप दोनों की ओर से माँ के संबंध से चौथी पीढ़ी के पूर्वज एक ही हैं। इस तरह दोनों की माताओं की ओर से तीन पीढि़यों तक का कोई भी पूर्वज एक न होने से आप दोनों के बीच सपिण्ड संबंध नहीं है। इस तरह हिन्दू विवाह अधिनियम आप दोनों के विवाह को निषेध नहीं करता। यदि आप दोनों अविवाहित हैं और विवाह योग्य आयु प्राप्त कर चुके हैं तो आप दोनों के मध्य विवाह हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 के अनुसार अवैध नहीं होगा।
हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 के अस्तित्व में आने के पूर्व परंपरागत हिन्दू विधि में कुछ समुदायों में पिता के संबंध से सात पीढि़यों तक और माता के संबंध से पाँच पीढ़ियों तक के संबंधों को सपिण्ड माना जाता था। अनेक हिन्दू समुदाय इस प्राचीन विधि का अभी भी अनुसरण करते हैं। ऐसा विवाह कानून के अनुसार वैध होने पर भी उन्हें समुदाय या परिवार स्वीकृत नहीं करते। इस से सामाजिक बाधाएँ आती हैं। यदि आप के समुदाय में उस प्राचीन विधि का अनुसरण अभी भी किया जा रहा है तो आप के विवाह में कोई कानूनी बाधा तो नहीं आएगी लेकिन सामाजिक बाधाएँ आ सकती हैं। वैसी स्थिति में आप को सामाजिक बाधाओं से जूझना होगा। यदि आप दोनों इन संभावित सामाजिक बाधाओं से जूझने की क्षमता रखते हैं तो यह विवाह किया जा सकता है। इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए आप तीसरा खंबा की सपिंड संबंधों से संबंधित इन चिट्ठियों को पढ़ सकते हैं।
More from my site
6 Comments
रमेश कुमार जैन उर्फ़ “सिरफिरा” ji
जनहित याचिका हाई कोर्ट में या सुप्रीम कोर्ट में लगाई जाती है जनहित याचिका का अर्थ है जनता के हित से जुड़ा हुआ मामला जो मामला जनता के हित से जुड़ा हुआ हो उसके लिए आप हाई कोर्ट में या सुप्रीम कोर्ट में साधारण रूप में मामले की पूरी जानकारी लिख कर भेज सकते है इसके लिए आपको किसी अधिवक्ता की जरुरत नहीं है परन्तु आपका मामला राजनीति से प्रेरित नहीं होना चाहिए और नहीं अपने स्वार्थ के लिए होना चाहिए बीएस मामला जनता के हित जुड़ा होना चाहिए जैसे यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम एम सी मेहता का यमुना नदी , गंगा नदी , ताजमहल आदि का मामला. इन सब गंगा , यमुना नदी , ताजमहल आदि में जनता का हित होने के कारन न्यायलय द्वारा जनहित का मामला मन गया और अहम फैंसला दिया गया
गुरुवर जी, वैसे मेरे निम्नलिखित प्रश्न को भी चार सप्ताह से अधिक हो चुके है.
गुरुवर जी, एक छोटी-सी और महत्वपूर्ण जिज्ञासा है.कृपया शांत करें.
जनहित याचिका कब,कहाँ और कैसे लगाईं जाती है.समाज और देशहित के मामलों में अगर दिल्ली पुलिस, दिल्ली नगर निगम और संबंधित विभाग लापरवाही बरत रहे हो. तब किसी व्यक्ति के पास वकील करने के लिए धनराशी न हो और उसने सभी को पत्र भी लिखें हो. फिर भी कोई कार्यवाही (राजनीतिज्ञ दवाब के कारण) न की जा रही हो. जबकि उस व्यक्ति के पास उस मामले
से संबंधित सबूत हो. जिनको देखते ही प्रथम दृष्टि में ज्ञात हो जाता है कि-इस संदर्भ में बने कानूनों का उल्लंघन हो रहा है.
१. तब वो व्यक्ति कैसे और कहाँ जनहित याचिका लगा सकता है? क्या इसके लिए उस व्यक्ति को दिल्ली हाई कोर्ट में या सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगनी होगी या कब दोनों स्थानों पर भी लगाईं जा सकती हैं, क्योंकि यह समस्या एक शहर की नहीं पूरे देश में उसी तरह के मामलों में स्थानीय सरकार और संबंधित विभाग का रुखा व्यवहार रहता है.
२. क्या इस संदर्भ में उसको न्यायप्रणाली से वकील मिलेगा ? अगर नहीं मिलता हैं तब उसको संविधान के कौन से अनुच्छेद या धारा के तहत मुख्य न्यायादिश को संज्ञान लेने के लिए पत्र लिखा जा सकता है? इसमें उसकी बाद कितनी भूमिका या कर्तव्य रह जाता है?
गुरुवर जी, आपने आज बहुत अच्छी जानकारी दी है.आपने http://teesarakhamba.blogspot.com/2011/08/blog-post_12.html 12 अगस्त की पोस्ट में प्रश्नकर्त्ता को आग्रह किया था कि-प्रश्नकर्ताओं से आग्रह है कि वे अपना प्रश्न एक ही बार भेजें, तीसरा खंबा को प्रेषित हर प्रश्न को ध्यान से पढ़ा जाता है। हाँ, यदि दो सप्ताह तक प्रश्न का उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो आप अपने प्रश्न को पुनः स्मरण करा सकते हैं। यह आपने बहुत अच्छा किया है.मगर क्या इससे आपके ऊपर दवाब नहीं बढ़ जाएगा,समय सीमा तय कर देने पर आपको बहुत मेहनत के साथ ही त्याग और बलिदान करना पड़ेगा. अब मेरे दो प्रश्न को लीजिए जो दो अगस्त की पोस्ट में पूछे गए थें. उनको भी दो सप्ताह हो चुके हैं. आपके कथन के अनुसार याद दिला रहा हूँ. इसके अलावा काफी प्रश्न हैं. जिनको दो सप्ताह से भी अधिक हो चुके हैं. कृपया आप समय सीमा को खत्म कर दें. इससे आपको भविष्य में आपको काफी परेशानी हो सकती है.मेरा मानना है कि-क़ानूनी कई प्रश्नों का उत्तर देने के लिए काफी खोजबीन करनी होती है और काफी अध्ययन करना पड़ता है.आप स्वयं इतने अनुभवी है कि आपको कुछ कहना.सूरज को दीपक दिखाने के समान है.बाकी आपकी जैसी मर्जी. मेरा एक सुझाव और भी है कि एक पाठक एक साल में एक ही क़ानूनी प्रश्न को "तीसरा खम्बा" पर पूछ सकता है. एक ऐसा नियम बना दें.जिससे मेरे जैसा जिज्ञासु प्रवृति का व्यक्ति आपको भविष्य में परेशान ना करें, क्योंकि इससे हर व्यक्ति की काफी उम्मीदें बढ़ जाती है. मेरी किसी भी बात को अनाथा ना लें.
ये तो एक दिलचस्प बात पता चली. मां की चचेरी बहन तो मौसी हुई और उसकी बेटी, बहन ही होगी. ये इतनी दूरी भी नही है, सभी के रिश्ते यहां तक तो जीवंत ही रहते हैं. पर कानूनी अडचन नही है यह शायद अधिकतर लोगों को मालूम ही नही होगा. बहुत लाजवाब जानकारी निली आज.
रामराम.
कुल मिलाकर यह कि जिसे दुनिया बहन बता रही है और ख़ुद भी कल तक बहन कह रहे थे उससे एक युवक विवाह कर ले तो धर्म-संस्कृति और क़ानून की तरफ़ से कोई पाबंदी नहीं है।
यह एक अच्छी सलाह है। समाज के ठेकेदारों को भी फ़ालतू अड़ंगेबाज़ी नहीं करनी चाहिए।
माँ की चचेरी बहन की बेटी पे दिल आया,
'खंबे पे तीसरे' ये 'अमितजी' को ले आया,
था मामला 'सपिंड' का, 'विद्वान राय' ने,
दिखला के हरी झंडी, 'पिंड' उनका छुडाया.
http://aatm-manthan.com