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खरीददार को सावधान रहना चाहिए।

Defamationसमस्या-

संजय ने पाली, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-

मेरे पिताजी ने 1985 में पाली शहर में कृष्णा नगर कॉलोनी में एक कृषि भूमि का भूखण्ड 30 बाई 40 यानि 1200 वर्ग फुट का खरीदा। 2010 तक मैं और परिवार सदस्य उक्त भूखण्ड पर कभी कभार आते जाते रहते थे। जुलाई 2010 में उक्त भूखण्ड के क्षेत्र के पार्षद ने हमारे प्लाट पर अतिक्रमण करने का प्रयास किया हमे जानकारी मिलते ही मोके पर पहुंच कर इसका विरोध किया। तब पार्षद ने बताया की आपके प्लाट की रजिस्ट्री में खसरा न 376 है और में खसरे न 377 में निर्माण करवा रहा हु। राजस्व एजेंसी में मेरे पिताजी के खरीदशुदा भूखण्ड का खसरा 377 में होना पाया। मेरे पिताजी ने एक प्रोपर्टी दलाल से खरीदा था। वह प्रॉपर्टी दलाल हमारे भूखण्ड के विक्रय पत्र की रजिस्ट्री में उसकी गवाह है। उक्त भूखण्ड के बेचानकर्ताओ को हम नही जानते। हमने दलाल के खिलाफ धोखा धडी की शिकायत दर्ज़ करवाई। पुलिस ने धारा 420 और 120 बी में जाँच शुरू की तो दलाल हाईकोर्ट जोधपुर जाकर ऍफ़ आई आर को निरस्त करवा लाय और दलाल ने मेरे व मेरे पिताजी के विरुद्ध न्यायालय में 2 लाख का मानहानि का वाद करवा लिया। इस तरह हमारा प्लाट भी गया और न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं। ऐसी स्थिति हमें क्या करना चाहिये?

समाधान

स में गफलत में रहने की गलती तो आप की ही है। एग्रीकल्चर लैंड के प्लाट्स में इस तरह की धोखाधड़ी होना आम बात हो गयी है। दलाल की भूमिका सिर्फ दो लोगों में सौदा कराने मात्र की होती है। यहाँ तक कि दलाली का कोई दस्तावेजी सबूत तक वे नहीं छोड़ते। यदि उस की गवाही रजिस्ट्री पर है तो वह तो केवल इस बात की है कि क्रेता ने विक्रेता को माल बेचा है और वह इस बात को तस्दीक करता है। इस से उस का कोई अपराधिक दायित्व नहीं बनता है। रजिस्ट्री के आधार पर बेचानकर्ता का ही दोष है। वैसे भी कानून का सिद्धान्त है कि खरीददार को सावधान रहना चाहिए। यदि माल में कोई खोट निकलता है तो नुकसान उसी का होता है। भुगतना उसे ही होता है। न्यायालय न्याय प्राप्ति में आप की मदद तो करता है पर वह क्षतियों की पूर्ति पूरी तरह नहीं कर पाता।  आप सावधान न रहे वर्ना यह हादसा न होता। प्लाट के नुकसान के बाद भी आप को चाहिए था कि मुकदमा केवल विक्रेता व उस के मुख्तार के विरुद्ध करना चाहिए था। इन के नाम दस्तावेजों में होते हैं। वैसी स्थिति में दलाल केवल गवाह की स्थिति में होता और हो सकता है आप का ही पक्ष लेता।

ब आप को चाहिए कि आप विक्रेता और उस के मुख्तार के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराएँ, पुलिस अब इस में हाथ न डालेगी। इस कारण आप को किसी मजबूत व सिद्ध वकील के माध्यम से न्यायालय में अपराधिक परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए। इस के अतिरिक्त विक्रेता के विरुद्ध प्लाट की कीमत और इस सौदे से हुए नुकसान की वसूली का दीवानी वाद भी करना चाहिए। वह सब कैसे होंगे यह सब दस्तावेजों के अध्ययन से निर्धारित होगा।

मानहानि का मुकदमा आप को ध्यान से लड़ना होगा। तब उस मुकदमे में आप के विरुद्ध कुछ नहीं हो सकेगा। आप के साथ धोखाधडी हुई है और आप ने एक रिपोर्ट पुलिस में कराई है वह मिथ्या नहीं है। यह पुलिस की ड्यूटी थी कि वह वास्तविक अपराधी को तलाश कर के उस के विरुद्ध कार्यवाही करती। और केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट करने से कुछ नहीं होता है। इस मुकदमे से डरने की आवश्यकता नहीं है पर पैरवी अच्छे वकील से कराएंगे तो बच सकेंगे।

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