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गारण्टर का दायित्व मूल ऋणी से पहले है।

Personal-Guarantee-agreement-documentसमस्या-

योगेन्द्र भाटी ने पाली, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-

मैं ने 2004 में अपने भतीजे की शिक्षा के लिये भारतीय स्टेट बैंक से लिये गये लोन में जमानत दी। उसने दन्त चिकित्सक बनने से पूर्व ही वर्ष 2009 प्रेम विवाह कर लिया और हम से अलग उदयपुर में क्लिनिक लगा रह रहा है। बोल-चाल भी बन्द है। वर्ष 2011 जुलाई तक मैं ने उस की किश्तें भरी, मुझे लकवा हो जाने से मैं अब असमर्थ हो गया हूँ। बैंक उसे नोटिस भेजती है वो लौटा देता है। मुझे पैसे जमा कराने के लिये परेशान किया जा रहा है। लोनी जो कि आसानी से उपल्बध और खाता कमाता है उसे मात्र नोटिस भेजकर मुक्त किया जा रहा है। स्थाई लोक अदालत में बैंक ने वाद दायर किया नोटिस भी लौटकर आ गया कि उस पते पर नहीं रहता, जबकि वह वहीं क्लिनिक चला रहा है। मैं शारिरिक विकलांग भयंकर मानसिक परेशानी में हूँ। कृपया बतावें कि बैंक द्वारा आसानी से उपलब्धता के बाद भी मूल लोनी के स्थान पर जमानती पर दबाव न्यायोचित है क्या? आगामी पेशी 1 जुलाई पर मुझे यह सिद्ध करना है कि मूल लोनी के होते हुए जमानती पर दबाव न्याय संगत नहीं है? बैंक प्रशासन कैसे मूल लोनी से पैसा वसूले यह भी मुझे ही स्थायी लोक अदालत में सिद्ध करना है।

समाधान-

प जिसे जमानत कह रहे हैं वह ऋण की गारण्टी है। इस में गारण्टर का दायित्व उतना ही होता है जितना कि मूल ऋणी का होता है। यह गारण्टी हर किश्त के लिए होती है। एक भी किश्त में चूक होने पर बैंक गारण्टर को कह सकता है कि आप किश्त जमा कराएँ अन्यथा आप से वसूल की जाएगी। इस तरह हम यह मान सकते हैं कि मूल ऋणी से अधिक दायित्व गारण्टर का होता है। आप की परिस्थिति कुछ भी हो आप का दायित्व कम नहीं हो सकेगा।

मूल ऋणी भले ही कमा रहा हो लेकिन बैंक को उस के स्वामित्व की कोई संपत्ति दिखाई नहीं पड़ रही होगी जिस से वह ऋण वसूल कर सकता हो। ऐसी स्थिति में उस का जोर आप की संपत्ति से ऋण की वसूली पर होना स्वाभाविक है। आप दोनों ही बातें साबित करने में असमर्थ रहेंगे। फिर बहुत कुछ आप के द्वारा हस्ताक्षरित गारंटी दस्तावेज पर निर्भर करेगा।

प यह कर सकते हैं कि यदि आप की जानकारी में मूल ऋणी की कोई संपत्ति है जिस से ऋण वसूला जा सकता हो तो वह बैंक को बता सकते हैं और उसे सुझाव दे सकते हैं कि वह उस संपत्ति से ऋण वसूल कर ले।

आप आप के द्वारा चुकाए गए ऋण की राशि ब्याज सहित वसूल करने के लिए मूल ऋणी के विरुद्ध दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं और इस तरह मूल ऋणी से अपना धन वसूल कर सकते हैं।