घरेलू हिंसा और अमानवीय क्रूरता से पीड़ित स्त्री को मदद करें और मुक्त कराएँ।
समस्या-
सत्यम ने जबलपुर, मध्यप्रदेश से पूछा है-
मेरी एक फ्रेंड है, उसका हस्बैंड उसको मारता पीटता है, मेंटली टॉर्चर करता है, बिना बात के ही लड़ता रहता है। आज तो उसने हद ही कर दी, सुबह से बिना बात के लड़ने लगा और बोलता है कि मेरे घर में सिगड़ी नहीं चलना चाहिए। वाइफ बोलती है, सिगड़ी ना जलाओ तो मर जाऊं क्या ठंड में। तो हस्बैंड बोलता है कि मर जा, अब यदि सिगड़ी जलाई तो वही सिगड़ी तेरे ऊपर डाल दूंगा जलती हुई। उस लड़की की लाइफ को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। घर से निकलने नहीं देता। किसी रिलेटिव पहचान वालों के यहां जाने नहीं देता। कहता है कि मैं जिस से बोलूंगा उससे मिलेगी, उससे बात करेगी, नहीं तो किसी से नहीं करेगी। बिना बात के लड़ता रहता है। लड़की को डिवोर्स भी नहीं देता है, बोलता है कि मैं तुझे छोड़ने नहीं दूंगा। सबसे ज्यादा शक करता। उसको कहीं आना जाना नहीं देता और मारने के लिए हाथ उठाता है। एक दो बार मारा भी। लड़के की फिजिकल रिलेशन किसी और के साथ है शायद। वह दूसरी लड़के को घर में लाना चाहता है। लड़की बोलती है कि तेरे को देख के साथ रहना है, जिसको लाना है ले आ। बस मुझे शांति से रहने दे। इस पर लड़का बोलता कि मैं ना तुझे जीने दूंगा, ना मरने दूंगा। लड़की करे तो क्या करे? लड़की के पास कोई सबूत नहीं है कि उसका हस्बैंड कहीं और रिलेशन में है। लड़की का साथ देने वाला कोई नहीं है कि वह अपने हस्बैंड के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करा सके। लड़की तो अपने हस्बैंड से बात करना पसंद नहीं करती, तो क्या करें? कोई रास्ता बताइए।
समाधान-
लड़की के साथ घरेलू हिंसा हो रही है। भंयकर अमानवीयता और क्रूरता का व्यवहार किया जा रहा है। मारपीट भी हुई है। यह सब विवाह विच्छेद के लिए पर्याप्त है। इस के अलावा धारा 498ए आपीसी में संज्ञेय अपराध भी है, जिस की रिपोर्ट पुलिस को की जा सकती है। यह रिपोर्ट कोई भी परिजन या मित्र भी कर सकता है।
न्यायालय में किसी भी मामले में निर्णय होने में हमारे यहाँ समय लगता है। इस का मुख्य कारण हमारे मुल्क के पास जरूरत की चौथाई अदालतें भी नहीं होना है। अमरीका में 10 लाख की आबादी पर 140 अदालतें हैं जब कि भारत में मात्र 12 इस तरह वहाँ के अनुपात में हमारी अदालतों की संख्या 8 प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में सभी तरह के विक्टिम पुलिस या न्यायालय के पास जाने के बजाए यातनाएँ भुगतते रहते हैं। इसी कारण अनेक प्रकार के अपराध पलते रहते हैं। हर रिपोर्ट कराने आने वाले को हतोत्साहित करती है कि रिपोर्ट कराने के बजाए भुगतते रहो, क्यों कि उसे भी अपने रिकार्ड में अपराध कम दिखाने होते हैं।
जहाँ तक स्त्रियों का मामला है वे तब तक पुलिस के पास जाने में झिझकती हैं जब तक कि उन्हें यह पक्का विश्वास न हो जाए कि उन के पास जीवन जीने और सुरक्षा के पर्याप्त विकल्प हैं। जब कभी कोई परिचित इस तरह की रिपोर्ट करा भी दे तो स्त्रियाँ पुलिस के या अपने पति व ससुराल वालों के दबाव के कारण टूट जाती हैं और कह देती हैं कि वह कोई कार्यवाही नहीं चाहती। वैसी स्थिति में वह परिचित बहुत बुरी स्थिति में फँस जाता है। अक्सर लड़की के मायके वाले भी उस का साथ नहीं देते, क्यों कि हमारा तो विचार ही यह है कि लड़कियाँ परायी होती हैं। इस विचार के अनुसार लड़कियाँ समाज में सब के लिए पराई होती हैं, वे कभी किसी की अपनी नहीं होतीं।
इस मामले में यदि आप मन, वचन कर्म से चाहते हैं कि लड़की उन यातनाओं से मुक्त हो अच्छा जीवन जिए तो आप को उसे विश्वास दिलाना होगा कि उस के पास सुरक्षित जीवन जीने के न्यूनतम वैकल्पिक साधन हैं। आप को भी प्रयास करना होगा कि वह किसी तरह अपने पैरों पर खड़ी हो सके। तभी वह यह लड़ाई लड़ सकती है। यदि आप आश्वस्त हैं कि लड़की को न्यूनतम वैकल्पिक जीवन साधन उपलब्ध होने का विश्वास दिला सकते हैं तो आप पुलिस को रिपोर्ट करें, पुलिस कार्यवाही न करे तो एस.पी. को मिलें। यदि फिर भी काम न चले तो मजिस्ट्रेट को शिकायत दें। लड़की को उस के पति की कारा से मुक्ति दिलाएँ।
लड़की के मुक्त हो जाने पर उस की ओर से विवाह विच्छेद के लिए धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम में आवेदन, धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भरण पोषण के लिए परिवार न्यायलय में आवेदन प्रस्तुत कराएँ। घरेलू हिंसा अधिनियम में भरण पोषण, वैकल्पिक आवास तथा लड़की के आसपास न फटकने के लिए निषेधात्मक आदेश प्राप्त किए जा सकते हैं। इस से लड़की को जो मदद आप अभी उपलब्ध करा रहे हैं उस की जरूरत कम हो जाएगी। आप लड़की को कोई नियोजन दिला कर उसे अपने पैरों पर खड़े होने में मदद करें। उसे नियोजन मिल जाने पर वह स्वावलंबी हो जाएगी। जब उस का विवाह विच्छेद हो जाए तो वह निर्णय कर सकती है कि उसे एकल स्त्री की तरह जीना है अथवा एक अच्छा जीवन साथी तलाश कर उस के साथ जीवन व्यतीत करना है।