घरेलू हिंसा की शिकायत से बचने के स्थान पर स्वयं अंतरिम सहायता प्रस्तुत कर प्रतिवाद करने का निश्चय करें।
|समस्या-
हरिद्वार, उत्तराखंड से अमित ने पूछा है –
मेरे तथा मेरे परिवार के विरुद्ध मेरी पत्नी ने घरेलू हिंसा का एक केस अदालत में किया हुआ है जिस में कोर्ट ने हमारे विरुद्ध समन जारी किये हुए हैं। परन्तु इसके विरुद्ध हमने जिला जज के यहाँ अपील की हुई है जो की एडमिट तो हो गयी है परन्तु न तो जिला जज महोदय ने निचली अदलत से फाइल तलब की है और न ही निचली अदालत की कार्यवाही स्टे करने का कोई आदेश पारित किया जिस से हमें काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आप बताएँ हमें क्या करना चाहिए? कोई नजीर हो तो बताएँ।
समाधान-
सब से पहले तो आप यह जान लें कि महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा से संरक्षण के कानून के अंतर्गत न्यायालय को किसी को पहली बार में दंडित करने का कोई अधिकार नहीं है। केवल उस न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश की पालना यदि नहीं की जाती है या उस का उल्लंघन किया जाता है तो न्यायालय आदेश की पालना न करने वाले या उल्लंघन करने वाले को दंडित कर सकता है। इस कारण यदि किसी के विरुद्ध इस कानून में कोई शिकायत होती है तो उसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है उसे न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो कर अपना पक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।
आप ने अपनी समस्या में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है। न तो आप ने यह बताया कि क्या कारण है कि आप की पत्नी ने आप के व आप के परिवार के विरुद्ध घरेलू हिंसा की शिकायत की है। शिकायत में आप की पत्नी ने क्या लिखा है? यह भी आप ने नहीं बताया। पत्नी द्वारा उस की शिकायत में अंकित तथ्य सही हैं या नहीं हैं, और वे तथ्य सही नहीं हैं तो आप के अनुसार क्या कारण हैं जिस से आप की पत्नी ने आप के विरुद्ध यह शिकायत की है? आप ने यह भी नहीं बताया कि आप को काफी परेशानी क्या हो रही है।
वास्तविकता तो यह है कि देश में ऐसी महिला तलाश कर निकालना दुष्कर ही नहीं लगभग असंभव है जिसे कभी न कभी घरेलू हिंसा का शिकार न होना पड़ा हो। अहिंसा के पुजारियों के इस देश में इस हिंसा को जारी तो नहीं रखा जा सकता है न? तो महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा से संरक्षण का कानून इसीलिए बनाया है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा से निजात मिल सके। अब एक महिला ने अपने पति के और उस के परिजनों के विरुद्ध घरेलू हिंसा की शिकायत न्यायालय ने प्रस्तुत की है। न्यायालय ने उस पर आप के विरुद्ध समन जारी किया है, इस लिए कि आप उस शिकायत का उत्तर प्रस्तुत करें। दोनों और के जो भी तथ्य शपथ पत्रों और दस्तावेजों से न्यायालय के समक्ष प्रकट हों उन के आधार पर यह निर्णय किया जा सके कि आप की पत्नी वास्तव में उस शिकायत पर अंतिम निर्णय होने तक किसी प्रकार की कोई अंतरिम राहत प्राप्त करने की अधिकारी है या नहीं? इस में क्या गलत है। शिकायतकर्ता आप की पत्नी ही तो है। वह किन्हीं कारणों से आप से नाराज है और आप की अदालत को शिकायत करती है तो इस से उस का आप से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार या किसी स्थान में निवास करने का अधिकार तो छिन नहीं गया है। अंतरिम आदेश के रूप में न्यायालय अधिक से अधिक कुछ धनराशि उस महिला के भरण पोषण हेतु अदा करने का आदेश देगा जो उस के भरण पोषण के वास्तविक खर्चे से बहुत कम होगा, साथ में इतना आदेश दे सकता है कि वह पति या उस के परिवार के जिस मकान में रह रही है उसे शांतिपूर्वक निवास करने दिया जाए। यह तो उस का अधिकार है। यदि ऐसा आदेश होता है तो उस में गलत क्या है?
आप ऐसा आदेश भी नहीं होने देना चाहते और पत्नी की शिकायत को सुना ही न जाए इस के लिए ऊँची अदालत में चले गए। ऊंची अदालत ने आप की निगरानी याचिका दर्ज कर ली उस मे कोई बड़ी बात नहीं है, इस तरह की सभी याचिकाएँ दर्ज कर ली जाती हैं। लेकिन आप का सोचना है कि बिना आप की पत्नी को आप की याचिका की सूचना मिले ही निचली अदालत की पत्रावली वहाँ मंगा ली जाए जिस से वह शिकायत जो आप की पत्नी ने की है उस में सुनवाई रुक जाए, या फिर उस सुनवाई को रोकने का आदेश ही दे दिया जाए। यदि ऊंची अदालत ऐसा करती है तो निश्चित रूप से वह न्याय करने के जिस उद्देश्य से स्थापित की गई है उस उद्देश्य के विरुद्ध ही काम करने लगेगी। ऐसा कैसे संभव है?
आप को करना तो यह चाहिए था कि जो समन आप के विरुद्ध जारी हुए हैं उन्हें आप प्राप्त कर के न्यायालय में उपस्थित हों और शिकायत का प्रतिवाद प्रस्तुत करें। यदि आप की पत्नी ने किसी तरह की अंतरिम राहत भरण पोषण या निवास के लिए चाही है तो बिना न्यायालय के आदेश के स्वयं रखें कि वह आप की पत्नी है और आप उसे प्रतिमाह कुछ राशि और निवास की सुविधा प्रदान करने को तैयार हैं। आप के इस प्रस्ताव से आप की सदाशयता ही प्रकट होगी। इस के उपरान्त आप अपने विरुद्ध की गई शिकायत का प्रतिवाद कर सकते हैं। इस से बेहतर मार्ग कोई नहीं है। आप की निगरानी याचिका में कोई दम नजर नहीं आता है। उसे आप को निरस्त करा लेना चाहिए। अच्छा तो यह है कि आपसी बातचीत से या ऐसा संभव नहीं हो तो न्यायालय की मध्यस्तता से पत्नी से अपने विवाद को सुलझाएँ।