चाचा का लायसेंस समाप्त कर कमरों का कब्जा प्राप्त करने का दीवानी वाद संस्थित करें।
|अंशुल ने मेरठ, उत्तर प्रदेश से भेजी है कि-
मेरे दादा जी ने अपने जीते जी वसीयत में लिखा था कि उन के मरने के बाद उनकी संपत्ति की मालिक उनकी पत्नी अर्थात मेरी दादी जी होंगी तथा उन के बाद उनके दो बेटे संपत्ति के मालिक होंगे। दादा जी के मएने के बाद इस वसीयत को चाचा ने बुआओं के साथ मिलकर 4 बार बदलवाया। जिस से तंग आकर मेरे पापा ने दादी जी से अपने हिस्से का दान पात्र लिखवा लिया। अब मेरे पापा की मृत्यु हो गई है। लेकिन उनका छोटा भाई हमारे हिस्से के (जिसका पापा ने दान पात्र लिखवाया है) उस के चार कमरों को खाली नही कर रहा है। जब कि अभी उसके नाम कुछ भी नहीं है। वो अपने हिस्से का मलिक भी दादी जी के मरने के बाद बनेगा।. वो हमारे हिस्से में से भी जगह मांग रहा है और कहता है कि हम कोर्ट जाएँ, उस पर केस करें, जो करना चाहें कर लें वो कमरे खाली नहीं करेगा, जब तक उसे जो वह माँग रहा है वो नहीं मिलेगा। हमें क्या करना चाहिए?
समाधान–
यह हमारे देश की विडम्बना है कि जहाँ हमारी न्याय पालिका उच्च स्तर पर अपने अच्छे निर्णयों की बहुलता के कारण पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित है वहीं इस का आकार आवश्यकता के चौथाई से भी छोटा होने के कारण मुकदमों के निर्णीत होने में कई वर्ष लग जाते हैं। इस का लाभ कानून की परवाह न करने वाले तथा दूसरों को पीड़ित कर खुद का स्वार्थ सिद्ध करने वाले लोगों की बन आई है। वे किसी भी संपत्ति पर कब्जा करते हैं और फिर पीड़ित को कहते हैं कि तुझे जो चाहे कर ले मैं तो कब्जा नहीं छोड़ूंगा। वह जानता है कि इस मामले को सुलझने में 10-20 वर्ष लग जाएंगे और अदालती प्रक्रिया से परेशान हो कर हो सकता है उन की नाजायज मांग मान ली जाए।
इस उपरोक्त स्थिति का इलाज यही है कि हमारे यहाँ अधीनस्थ अदालतों की संख्या में कम से कम चार गुनी वृद्धि हो। पर यह इलाज सिर्फ और सिर्फ केन्द्र और राज्य सरकारों पर निर्भर करता है। उन में इस स्थिति को लाने की इच्छा ही नहीं है। बल्कि राजनीति में भ्रष्ट नेतृत्व यही चाहता है कि कम से कम न्याय पालिका उस के अपने छोटे आकार के कारण पंगु बनी रहे और उन्हें प्रभावित नहीं करे।
फिलहाल आप को वही करना चाहिए जो चाचा कह रहा है। वह आप के दादा जी की संपत्ति में रह रहा था उन की अनुज्ञप्ति से, फिर दादी को संपत्ति मिली तो उन की अनुज्ञप्ति से रह रहा था। दान होने के बाद भी वह रहता रहा अर्थात आप के पिता की भी उन को मौन अनुमति थी। अब आप के पिता नहीं हैं और आप लोग जो कि पिता के उत्तराधिकारी हैं स्वामी हो गये हैं। आप सभी संपत्ति के संयुक्त स्वामियों की ओर से उस की अनुज्ञप्ति (लायसेंस) समाप्त करने का नोटिस दें और उन चार कमरों का कब्जा प्राप्त करने के लिए दीवानी अदालत में कब्जे का दावा करें। इस काम में समय तो लगेगा लेकिन यही एक मात्र विधिक उपाय है।
मैं राजबाई शादी सुदा हूँ मेरे पिता की मृत्यु हो गई है मेरा भाई पिता सम्पति में मुघको हिस्सा नहीं दे रहा है मुझको क़ानूनी सलाह दें। मैं क्या करूँ कहाँ जाउँ किससे मिलूं मेरे पति भी मर कर घर से निकल फन दिया है.