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जाति परिवर्तन और आरक्षण का लाभ


बस्सी, उत्तरप्रदेश से हृषिकेश पूछते हैं-

मैं 50 वर्षीय मध्यम किसान हूँ मेरा जन्म एक सवर्ण परिवार में हुआ और मुझे 12 साल की उम्र में पंजीकृत गोदनामा के माध्यम से एक अनुसूचित जाति की 2 वर्ष की आयु में विधवा हो गई महिला को गोद दे दिया गया।  उन की मृत्यु के बाद मुझे विरासत में कुछ कृषि भूमि मिली।  1982 में सरकार द्वारा यह दावा किया गया कि मेरा गोद जाना विधि सम्मत नहीं है क्यों कि एक सवर्ण किसी अनुसूचित जाति के परिवार में गोद नहीं जा सकता और इस कृषि भूमि का मेरे नाम नामान्तरण नहीं हो सकता।  न्यायालय ने दावा खारिज करते हुए यह फैसला दिया कि मेरा गोद जाना कानूनी और सामाजिक रीति रिवाजों के मुताबिक है और कृषि भूमि का नामान्तरण मेरे नाम खोले जाने का आदेश दिया।  1984 में भूमि मेरे नाम अंतरित हो गई। मेरा विवाह 1986 में एक सवर्ण किन्तु ओ.बी.सी. जाति के परिवार में हुई। मैं 1995 में सरपंच का चुनाव अ.जा. सीट से लड़ चुका हूँ। विरोधियों द्वारा ऐतराज उठाने पर माननीय उप खण्ड अधिकारी ने मेरा जाति प्रमाण-पत्र वैध ठहराते हुए चुनाव लड़ने कि स्वीकृति प्रदान की। मेरी पत्नी भी ओ. बी. सी.सीट से चुनाव जीत चुकी है। विरोधियों द्वारा ऐतराज उठाया गया कि जब मैं अनुसूचित जाति की सीट से लड़ चुका हूँ व अनुसूचित जाति का हूँ तो मेरी पत्नी ओ.बी सी के लिए आरक्षित पद से कैसे चुनाव लड़ सकती है, माननीय उप खण्ड अधिकारी ने उन का जाति प्रमाण-पत्र वैध ठहरातें हुए चुनाव लड़ने कि स्वीकृति प्रदान की।

अब प्रश्न है कि –

1. मेरे पुत्रों कि जाति  क्या होगी? (अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र बनाया हुआ है)
2. मेरे बच्चों को किस जाति का राजनितिक, शैक्षिक व सरकारी आरक्षण मिलेगा?
3. क्या मेरे बच्चे वापिस अपनी मूल जाति में वापिस लौट सकते हैं? (क्योंकि मैंने गोद जाने के बाद सामाजिक व पारिवारिक तौर पर बहुत खामियाजा भुगता है)
4. मेरी मृत्यु के बाद मेरी कृषि भूमि मेरी पत्नी के नाम करना चाहता हूँ। पर वह अपनी जाति कैसे बदले क्योंकि शायद कानून ये करने कि इजाज़त ना दे।  मेरे परिवार के भरण-पोषण का जरिया एक मात्र यही कृषि भूमि है। बच्चे अभी पढ़ रहे हैं।

आशा है आप मेरी इन जिज्ञासाओं का समाधान अवश्य करेंगे।


उत्तर –

हृषिकेश जी,

जातिवाद की जड़ें भारत में इतनी गहरी हैं कि लगता है इसे समाप्त होने में युग गुजर जाएंगे। इस ने हमारे समाज को बहुत गहराई से विभाजित किया है। विभाजन रेखा इतनी गहरी है कि जितना इसे भरने का प्रयत्न किया जाता है यह और गहरी होती जाती है। परंपरागत रूप से किसी व्यक्ति की जाति जन्म से ही निर्धारित होती है। समाज किसी भी व्यक्ति की जाति जन्म के आधार पर मानता है। जातिगत मर्यादाओं का उल्लंघन करने (गोद चले जाने, विजातीय  विवाह करने) से भी किसी की जाति नहीं बदलती है, वह उसी जाति का बना रहता है जिस में वह पैदा हुआ था। यह अवश्य है कि मर्यादा भंग करने के कारण उसे जाति में सम्मान नहीं मिलता। बल्कि पग
-पग पर अपमान मिलता है। यदि इस मापदंड को मानें तो आप की जाति गोद जाने पर भी बदली नहीं है। आप आज भी अपनी पूर्व जाति के सदस्य हैं। आप की पूर्व जाति में आप की स्थिति अब कभी भी सम्मानजनक नहीं हो सकती। लोग आप के निम्न जाति में गोद जाने को पीढ़ियों नहीं भूलेंगे। केवल एक स्थिति में आप अपनी पूर्व जाति में पुनः प्रतिष्ठा बना सकते हैं। आप बहुत धनी हो जाएँ और आप की पूर्व की जाति के प्रतिष्ठित परिवारों में अपनी संतानों के विवाह कर दें। आप की मजबूत आर्थिक राजनैतिक स्थिति के कारण जाति में आप का आना जाना होने लगेगा। लेकिन पीठ फेरते ही पुरानी घटनाओं का उल्लेख करना आरंभ कर देंगे। समाज की इस स्थिति का कोई विकल्प नहीं है। वस्तुतः समाज में आप की स्थिति ऐसी हो गई है कि आप को हर जाति के लोग विजातीय समझने लगेंगे। इस का विकल्प यही है कि आप समाज में जाति की परवाह करना बंद कर दें। आप की संतानों के विवाह जाति का विचार किए बिना करें। फिर जो भी स्थिति बनेगी बनती रहेगी।
ब बात करें, आरक्षण लाभ के लिए कानूनी स्थिति की। कानून का मानना है कि आरक्षण का लाभ देने का सिद्धांत यह है कि लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्ति ने उस आरक्षित जाति की असुविधाओं को वहन किया हो। आप को बारह वर्ष की अल्पायु में निम्न जाति के परिवार में गोद दे दिया गया। उस में आप के माता-पिता की इच्छा सम्मिलित थी, लेकिन आप की स्वयं की नहीं, आप उस समय अवयस्क थे। आप ने नई जाति की तमाम असुविधाओं को भुगता। आप को उस का लाभ मात्र इतना मिला कि आप को उस जाति का प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ और आप अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ लेने के अधिकारी हो गए। आप की पत्नी ने अपना विवाह पूर्व जीवन अपनी जाति में बिताया। उस ने स्वेच्छा से आप से विवाह किया। उस ने आप की जाति की कोई असुविधा वहन नहीं की। इस कारण से उसे विवाह पूर्व जाति का ही माना गया। कानून के अनुसार दोनों के जाति प्रमाण पत्र सही हैं।

अब आप के प्रश्नों के उत्तर –

1. मेरे पुत्रों कि जाति  क्या होगी? (अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र बनाया हुआ है) और मेरे बच्चों को किस जाति का राजनितिक, शैक्षिक व सरकारी आरक्षण मिलेगा?
प के पुत्रों की जाति अनुसूचित जाति ही होगी। क्यों कि उन का जन्म अनुसूचित जाति के परिवार में हुआ है।   वे इस जाति के आरक्षण का लाभ प्राप्त करते रहेंगे। सामाजिक रूप से उन्हें एक सामान्य जाति के व्यक्ति का पुत्र माना जाएगा जो अनुसूचित जाति में गोद चला गया था।
2. क्या मेरे बच्चे वापिस अपनी मूल जाति में वापिस लौट सकते हैं? (क्योंकि मैंने गोद जाने के बाद सामाजिक व पारिवारिक तौर पर बहुत खामियाजा भुगता है)
स प्रश्न का आंशिक उत्तर तो आप को मिल गया होगा। सामाजिक रूप से आप की मूल जाति के लोग आप के बच्चों को अपनी जाति का मान तो लेंगे लेकिन उन की स्थिति सामान्य नहीं रहेगी। आप के गोद जाने का धब्बा उन पर बना रहेगा। वे आप की मूल जाति में विवाह कर लें तब भी। राजकीय रूप से उन के आप की मूल जाति में विवाह करने के बाद भी उन की जाति अनुसूचित ही बनी रहेगी। 
3. मेरी मृत्यु के बाद मेर
ी कृषि भूमि मेरी पत्नी के नाम करना चाहता हूँ। पर वह अपनी जाति कैसे बदले क्योंकि शायद कानून ये करने कि इजाज़त ना दे।  मेरे परिवार के भरण-पोषण का जरिया एक मात्र यही कृषि भूमि है। बच्चे अभी पढ़ रहे हैं। 
प के देहान्त के उपरान्त आप की कृषि भूमि उत्तराधिकार की विधि के अनुसार आप की पत्नी और आप की संतानों को समान भाग में प्राप्त होगी। जब तक बच्चे वयस्क न होंगे, इस संपत्ति की देख-रेख प्राकृतिक संरक्षक होने के कारण आप की पत्नी करती रहेंगी। वयस्क होने पर वे अपने हिस्से की संपत्ति के स्वयं स्वामी होंगे। आप को यह संपत्ति गोद जाने के कारण विरासत में प्राप्त हुई है। लेकिन गोद माता से प्राप्त होने के कारण आप इसे  किसी भी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के नाम वसीयत कर सकते हैं। लेकिन आप अपनी पत्नी के नाम इसे वसीयत नहीं कर सकते क्यों कि आप की पत्नी अनुसूचित जाति की नहीं है। लेकिन आप के देहान्त के उपरांत आप की पत्नी विरासत में उस का एक भाग प्राप्त करेगी। क्यों कि विरासत पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

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