जारता के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त की जा सकती है।
|श्रीकान्त ने 603, गिरिराज हाइट, गुफा मंदिर रोड़ लालघाटी, भोपाल, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरी पत्नी के एक अन्य पुरुष के साथ संबंध थे। वो उसके साथ चली गयी। बच्चे (11 साल एवं 8 साल के) मेरे पास है। महिला थाने मे हुई कौंसिलिंग मे उन्होंने (दोनो पक्ष अलग रहना चहते थे इसलिये) धारा 13 के अंतर्गत कोर्ट मे तलाक के लिये आवेदन करने के लिये बोले। अब वो दिखावे के लिये बाहर अलग रह रही है। मेरे ऊपर घरेलु हिंसा का झूठा केस दर्ज किया है। मासिक भरण पोषण की, बच्चो की कस्टडी की एवं गृहस्थी में आधा हिस्सा की मांग की है। मेरे से तलाक भी लेना नहीं चाहती। परेशान कर रही है। मुझे पत्नी से कैसे तलाक मिले इसके लिये उपाय बताएँ।
समाधान-
आप की पत्नी बच्चों को छोड़ कर दूसरे व्यक्ति के साथ चली गई थी, उस के दूसरे व्यक्ति के साथ संबंध हैं। इसे आप प्रमाणित कर सकते हैं। इस के लिए दस्तावेजी सबूत (काउंसलिंग के रिकार्ड सहित) भी आप को जुटाने होंगे तथा मौखिक गवाही जिस में आप के बच्चों की गवाही भी कराई जा सकती है, भी करानी होगी। आप विवाह के दौरान किसी दूसरे व्यक्ति से संबंध रखने के जारता के आधार पर ही विवाह विच्छेद की डिक्री न्यायालय के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
आप की पत्नी ने जो भी मुकदमे किए हैं उन में आप को सजग हो कर पैरवी करानी चाहिए जिस से वे निराधार साबित हो सकें और उन में आप को राहत मिले। इस के लिए आवश्यक है कि आप किसी अच्छे वकील की सहायता स्थानीय स्तर पर प्राप्त करें। गृहस्थी में आधा हिस्सा उसे नहीं मिलेगा। बच्चों की उम्र भी 8 वर्ष से अधिक है इस कारण न्यायालय उन की कस्टडी पर इस आधार पर विचार करेगा कि उन का हित किस की कस्टडी में रहने पर है। आप को साबित करना होगा कि बिना किसी उचित कारण से पत्नी अलग रह रही है और जिस के साथ उस के संबंध है वही उस का खर्च उठा रहा है।
अछा लगा आर्टिकल. बहुत कुछ सिखने को मिला. हमेशा याद रखूंगी. ऐसे बहुत सरे आर्टिकल लिखते रहिये.
माननीय वकील महोदय जी! समाज का एक वहम बन चुका है।महिला के पास कानून,समाज सब की सहानुभूति है। रही बात पुरूष के अपराध प्रतिशत की तो वह तो महिलाओं से कई गुना कम है लेकिन महिलाओं का अपराध किसी को दिखाई नहीं देता। न कानून को और न समाज को। बस बलि का बकरा पुरूष ही बनाया जाता जबकि हकिकत सब जानते है।
पीयूष, लगता है आप भुक्तभोगी हैं इस कारण स्त्रियों के प्रति इतना दुर्भाव रखते हैं। आप अपनी समस्या बताएँ तो उस का पोस्टमार्टम किया जाए। ऐसी भड़ास निकालने के लिए ब्लाग, फेसबुक वगैरा बहुत स्थान हैं। हमारा भी तीन दशकों से अधिक का अनुभव है। कोई स्त्री ऐसी नहीं मिलती जिसे पति और उस के रिश्तेदारों की क्रूरता का शिकार न होना पड़ा हो। पुरुष वैसी क्रूरता को अपना अधिकार समझते हैं, यहाँ तक कि स्त्री के ससुराल की स्त्रियाँ तक उस के प्रति क्रूरता को अपना अधिकार समझती हैं,जो अब अपराध है। वे सालों तक उस क्रूरता के विरुद्ध चुप रहती हैं। पुरुष है जो एक या दो बार में बिलबिला पड़ता है, ठीक आप की तरह। यही कारण है कि जब एक बार कोई स्त्री अपने पति और उस के संबंधियों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट लिखाती है तो मुकदमा बनता ही बनता है। पुलिस नहीं चाहती पर उसे दर्ज करना पड़ता है, वह नहीं करती तो अदालत के आदेश पर ऐसा करना पड़ता है। यही कारण है कि आप का गुस्सा उस कानून पर है जिस ने स्त्रियों के प्रति क्रूरता को अपराध बना दिया है। जो सारे स्त्रीधन पर अपना अधिकार समझता है लेकिन जिस ने दहेज को अपराध बना दिया है।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया …
दहेज और क्रूरता के जो मुकदमे महिलाओं की शिकायत पर दर्ज किए जाते हैं उन के पीछे भी पुरुष ही होते हैं, चाहे वे पिता, भाई वगैरा कुछ भी क्यों न हों। महिलाएँ वहाँ भी टूल ही होती हैं।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.जारता के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त की जा सकती है।
मोहदय
९०% पारिवारिक मामले के झुटे होते है जिस से समाज बिखराव की और बढ़ रहा है लड़के के परिवार परेशान हो रहे है
महोदय जैसे हम आज के समाज में देख रहे है उससे तो यही पता लगता है की स्त्रियों द्वारा ही पुरुषो पर जयादातर झूठे मुकदमे दर्ज किये जाते है और ओरतो के प्रति समाज में एक सहानुभूति होती है जिसका वो फायदा उठाती है में कहता हूँ की जब दो लोग सहमति से सम्बंद बनाते है और कोई तीसरा देख लेता है तो वो समाज में इज्जत के लिए बलात्कार हो जाता है जब सासु पानी मांगती है और बहु भागो व् गोपी का नाटक देख रही होती है तो सास का पानी मांगना दहेज मांगना बन जाता है बाकी कोई कमी रह जाती है तो उसे पुलिस , अधिवक्ता , और पंचायत पूरी कर देती है और आखिर में कोर्ट में बेगुनाह छूट जाते है तबी तो माननीय न्यायालय द्वारा कहा गया है की जयादातर दहेज के मुकदमे झूठे है
थोड़े दिनपहले की एक घटना है कुछ दोस्त ट्रैन में बैठे थे मैं भी उनके साथ बैठा था सामने सीट पर दो ओरते व् एक लड़की बैठी थी सामने में मैं और कुछ और दो लड़के बैठे थे वो दो आपस में अपने बास की बात कर के हस रहे थे सामने से एक औरत ने खड़े होकर एक लड़के को चांटा जड़ दिया सभी देखते रह गए जबकि मैं उन लड़को की सीट पर बैठ था उन लड़को का कोई दोष नहीं था लड़को ने तो कुछ नहीं कहाँ पर एक औरत और उसके साथ वाली लड़की ने ही उस औरत की ऐसी और तैसी कर दी यदि सभी लोग उन लड़को को दोषी मान कर पिटाई \ करते तो वो लड़के क्या करते कुछ भी कर सकते थे
यश जी मै आप से सहमत हु कानून में बदलाव होना चहिये और यदि जूठा केस फाइल पर सजा होने लगे तो परिणाम बदल सकते है और बहुए जेल यात्रा पर होगी किंतु कानून में सिविल केस में सजा नहीं होती है
महिलाओं के लिए भी शख्त कानून बनना चाहिए, क्योंकि आजकल महिलाएं रिश्तो का धड़ल्ले से कानून का परवाह किये बगैर पुरूषों की भावनाओं एवं इज्जत को अपने निजी स्वार्थों के लिये खुलेआम बीच बजार निलाम कर रहीं है और पुरूष कानुन के भय से आत्महत्या के लिए विवस हो रहा है।महिलाओं के मन मे कानून का जरा सा भी भय नही है अपराध करके भी उनके पास बच निकलने के हजार कानूनी हथियार है। जागो न्याय के पुजारियों नारी की रक्षा करते करते पुरूषों का बलि मत दो उनको भी ससम्मान जीने का अधिकार होना चाहिए।” जय हो नारीवादी कानून की”
कानून का भय किसी भी अपराधी पर नहीं होता। वह अपराध करता ही इसी कारण से है। कानून तो हर अपराध के लिए दंड की व्यवस्था करता है। बस जो उसे लागू करने की मशीनरी है वह गड़बड़ है। हमारी पुलिस के पास अलग से कोई अन्वेषण शाखा नहीं है, उसे दूसरे कामों से फुरसत नहीं है। अदालतें जरूरत की केवल २० प्रतिशत हैं। ऐसी स्थिति में समाज में अपराध बढ़ेंगे ही। वैसे पुरुष स्त्रियों से अधिक अपराध कर रहे हैं। स्त्रियों के प्रति पुरुषों द्वारा किए जा रहे अपराधों की दर बहुत अधिक है।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.जारता के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त की जा सकती है।
” जय हो नारीवादी कानून की”
नहीं मेरे भाई इंकलाब बोलो इस कानून को बदलो इस पर आवाज़दो सब पुरुष एक हो और ” जय हो नारीवादी कानून की” नहीं मुर्दाबाद नारीवाद यदि जूठा केस फाइल पर सजा होने लगे तो परिणाम बदल सकते है और बहुए जेल यात्रा पर होगी कानून में सिविल केस में सजा की मांग करते रहो एक दिन सुबह जरूर आएगी