टीवी सीरियल में आपत्तिजनक अंशों के लिए क्या कार्यवाही की जाए?
|अख़्तर खान ‘अकेला’ मेरे साथी वकील हैं। पिछले 7 मार्च 2010 को उन्हों ने अपने ब्लाग पर पहली पोस्ट प्रकाशित की थी। लेकिन उन की गति को क्या कहिए? साल के अंतिम दिन 31 दिसंबर 2010 तक वे 1791 पोस्टें प्रकाशित कर चुके थे। निश्चित रूप से हिंदी ब्लागीरी में यह एक रिकॉर्ड होना चाहिए। वे एक अच्छे वकील हैं और सामाजिक मुद्दों के लिए लड़ाई भी लड़ते रहते हैं। इस पोस्ट के साथ ही वे तीसरा खंबा से जुड़ रहे हैं। तीसरा खंबा के पाठक बंटी निहाल के प्रश्न का उत्तर अख्तर ख़ान ‘अकेला’ ही दे रहे हैं।
बंटी निहाल ने पूछा है –
एक टीवी सीरियल पर मैंने देखा कि एक पति अपनी पत्नी को बैंक मैनेजर को अपना लोन पास करवाने के लिए एक रात के लिए भेज देता है, जो कि मुझे बहुत ही बुरा लगा। बिचारी पत्नी अपने पति के लिए रोते हुए उस गलत कार्य में साथ देती है। इस तरह के सीरियल को देख कर बहुत से लोगो में गलत सीख जाएगी और फैमिली के साथ भी नहीं देखा जा सकता। मैं आपसे इतना जानना चाहता हूँ कि –
१. इस तरह की गलत चीजे दिखाने वाले चैनल, निर्माता, निर्देशक के ऊपर क्या मुकदमा दर्ज किया जा सकता है और कैसे ?
२. इस पर कौन सी धारा लगेगी ?
३. क्या मैं अपने थाना में दर्ज करवा सकता हूँ ? पर कैसे ?
कृपया आप मुझे मार्गदर्शन दें कि इस तरह के सीरियल, टीवी शो और विज्ञापन पर कैसे रोक लगाई जा सकती है।
उत्तर –
बंटी भाई!
आप का प्रश्न भारतीय टेलीविजन चैनलों की गिरावट को रोकने की दिशा में एक सकारात्मक सोच का परिणाम है। टी वी सीरियल में लोन लेने के लिए पत्नी को चारे की तरह परोसने का दृश्य उसे सभी दर्शकों के देखने के अयोग्य बनाता है। इस तरह का कृत्य वेश्यावृत्ति निरोधक अधिनियम के तहत अपराध है। यदि उस की पत्नी शिकायत करे तो धारा 498 ए के अंतर्गत अपराध होगा।
आप के पहले प्रश्न कि -इस तरह की गलत चीजे दिखाने वाले चैनल, निर्माता, निर्देशक के ऊपर क्या मुकदमा दर्ज किया जा सकता है और कैसे? का उत्तर है कि -यदि सीरियल की कहानी समाज के एक सच को बताने और लोगों में इस परम्परा के प्रति घृणा की सीख देने की गरज से अगर प्रस्तुत की गई है तो फिर यह कोई अपराध नहीं। यदि यह दृश्य फिल्म सेंसर की तरह दूरदर्शन नियमावली और भारतीय नाट्य प्रदर्शन अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत बोर्ड स्वीकृत है तो भी अपराध नहीं है। लेकिन अगर ऐसा नहीं किया गया है तो केबल नेटवर्क टेलीविजन एक्ट 1994 के प्रावधानों और भारतीय नाट्य प्रदर्शन अधिनियम के अंतर्गत सीरियल के निर्माण और प्रदर्शन से जुड़े व्यक्तियों को दंडित किये जाने का प्रावधान है जिस का दंड तीन माह से तीन वर्ष का कारावास और लाखों रूपये जुर्माने तक हो सकता है।
आ span>प के दूसरे प्रश्न कि -इस पर कौन सी धारा लगेगी ? का उत्तर है, -ऐसे अपराध के लियें केबल नेटवर्क टेलीविजन एक्ट के प्रावधानों के के अंतर्गत ऐसे चैनल, ऐसे नाटक या सीरियल को प्रतिबंधित कर इसके प्रदर्शन में शामिल लोगों को इस कानून के अंतर्गत दंडित किया जा सकता हे वैसे ऐसे सीरियल और प्रदर्शनों पर प्रतिबंध के लिए राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वयमेव प्रसंज्ञान लेकर वर्ष 2002 में सरकार के लिए निर्देश जारी किया है।
आप के तीसरे प्रश्न कि -क्या मैं अपने थाना में दर्ज करवा सकता हूँ ? पर कैसे ? का उत्तर है कि, -नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते। इस मामले में सीधे थाने में मुकदमा दर्ज नहीं करवाया जा सकता। एक तो केबल टेलीविजन एक्ट 1994 और फिर संशोधन2004 के प्रावधानों के अंतर्गत जिला कलेक्टर को शिकायत कर स्क्रिप्ट के साथ न्यायालय में परिवाद पेश किया जा सकता है और ऐसे कार्यक्रमों को रुकवाने के लियें दंडित करवाने के लियें दूरदर्शन शिकायत प्राधिकरण, दूरदर्शन नियामक आयोग, दिल्ली में निर्धारित शुल्क के साथ शिकायत की जा सकती हे जो इस मामले में आर्थिक जुर्माना लगा सकते हैं। वर्तमान में यह मामला संसद में विचाराधीन है। इस पर नया कानून बनाने के लिए हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अम्बिका सोनी ने इस मामले को प्रेस पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 में दंड का प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव किया है। जिसे केन्द्रीय मंत्रिमंडल अनुमति दे चुका है। कानून बनना और प्रभाव में आना शेष है।
आप के पहले प्रश्न कि -इस तरह की गलत चीजे दिखाने वाले चैनल, निर्माता, निर्देशक के ऊपर क्या मुकदमा दर्ज किया जा सकता है और कैसे? का उत्तर है कि -यदि सीरियल की कहानी समाज के एक सच को बताने और लोगों में इस परम्परा के प्रति घृणा की सीख देने की गरज से अगर प्रस्तुत की गई है तो फिर यह कोई अपराध नहीं। यदि यह दृश्य फिल्म सेंसर की तरह दूरदर्शन नियमावली और भारतीय नाट्य प्रदर्शन अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत बोर्ड स्वीकृत है तो भी अपराध नहीं है। लेकिन अगर ऐसा नहीं किया गया है तो केबल नेटवर्क टेलीविजन एक्ट 1994 के प्रावधानों और भारतीय नाट्य प्रदर्शन अधिनियम के अंतर्गत सीरियल के निर्माण और प्रदर्शन से जुड़े व्यक्तियों को दंडित किये जाने का प्रावधान है जिस का दंड तीन माह से तीन वर्ष का कारावास और लाखों रूपये जुर्माने तक हो सकता है।
आ span>प के दूसरे प्रश्न कि -इस पर कौन सी धारा लगेगी ? का उत्तर है, -ऐसे अपराध के लियें केबल नेटवर्क टेलीविजन एक्ट के प्रावधानों के के अंतर्गत ऐसे चैनल, ऐसे नाटक या सीरियल को प्रतिबंधित कर इसके प्रदर्शन में शामिल लोगों को इस कानून के अंतर्गत दंडित किया जा सकता हे वैसे ऐसे सीरियल और प्रदर्शनों पर प्रतिबंध के लिए राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वयमेव प्रसंज्ञान लेकर वर्ष 2002 में सरकार के लिए निर्देश जारी किया है।
आप के तीसरे प्रश्न कि -क्या मैं अपने थाना में दर्ज करवा सकता हूँ ? पर कैसे ? का उत्तर है कि, -नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते। इस मामले में सीधे थाने में मुकदमा दर्ज नहीं करवाया जा सकता। एक तो केबल टेलीविजन एक्ट 1994 और फिर संशोधन2004 के प्रावधानों के अंतर्गत जिला कलेक्टर को शिकायत कर स्क्रिप्ट के साथ न्यायालय में परिवाद पेश किया जा सकता है और ऐसे कार्यक्रमों को रुकवाने के लियें दंडित करवाने के लियें दूरदर्शन शिकायत प्राधिकरण, दूरदर्शन नियामक आयोग, दिल्ली में निर्धारित शुल्क के साथ शिकायत की जा सकती हे जो इस मामले में आर्थिक जुर्माना लगा सकते हैं। वर्तमान में यह मामला संसद में विचाराधीन है। इस पर नया कानून बनाने के लिए हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अम्बिका सोनी ने इस मामले को प्रेस पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 में दंड का प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव किया है। जिसे केन्द्रीय मंत्रिमंडल अनुमति दे चुका है। कानून बनना और प्रभाव में आना शेष है।
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7 Comments
बहुत बहुत धन्यवाद् आपने बहुत ही अच्छी और पूर्ण जानकारी दी है. आपने जवाब दिया इसके लिए शुक्रिया आप इसी तरह मार्ग दर्शन देते रहे – बंटी निहाल, रायपुर छत्तीसगढ़
दिनेश जी,
ये बहुत अच्छा ढंग है आपके ब्लॉग का , इस तरह से मैं पहली बार इसको देख रही हूँ क्योंकि इस पर मैं पहली बार ही आई हूँ. . लेकिन ब्लॉग भी इस तरह दिशा दे सकता है. इसके लिए बहुत बहुत आभार.
श्री अख्तरखानजी अकेला के पोस्ट प्रसारित करने के तरीके से मैं तो कतई सहमत नहीं हूँ । ऐसा लगता है जैसे अखबार की कतरनें हूबहू पेस्ट की जाती रही हों । श्री रवि रतलामीजी का एक उद्धरण मुझे याद आता है कि इस अन्तर्जाल (इन्टरनेट) पर हमें व्यर्थ कचरा फैलाने से बचना चाहिये और मैं इससे सहमत भी हूँ । यदि हम ये देख रहे हैं कि मात्र 9 महीने और तीन सप्ताह में आपने रेकार्ड 1791 पोस्ट प्रसारित की तो हमें फिर ये भी देखना चाहिये कि इस 1791 पोस्ट को पढने के लिये हमारे ब्लाग पर कितना ट्रेफिक आया । दूसरे शब्दों में कहें तो पाठकों के कितने हिट्स इस अवधि में हमारे ब्लाग को मिले और यदि ये आंकडे निराशाजनक लगें तो फिर इस मशक्कत का फायदा ?
यदि हम सामान्य वार्तालाप में जब ये चर्चा करते हैं कि शेर का बच्चा एक ही अच्छा या थोडा खाओ अच्छा खाओ तो इन सोच व सिद्धान्तों का क्या मतलब हुआ ?
चूंकि मैंने भी श्री अख्तरखानजी को फालो किया हुआ है और जहाँ हमारी चाहत कुछ नई मौलिक व चुनिन्दा पोस्ट पढने की रहती है वहीं श्री अकेलाजी की ये छोटे-छोटे समाचारनुमा अनगिनत पोस्टें डेशबोर्ड की उस समूची जगह का 75-80% पर अतिक्रमण सी करती महसूस होती हैं इसलिये बिना मांगी सलाह के रुप में ये टिप्पणी देने की गुस्ताखी कर रहा हूँ कि चाहे दो दिन में हमारी एक पोस्ट प्रसारित हो किन्तु उसे अधिक से अधिक वास्तविक पाठक मिलें । यहाँ तुलना करने के नाम पर मैं टिप्पणियों की तो बात ही नहीं कर रहा हूँ । कृपया इस बिना मांगी सलाह के लिये मुझे क्षमा करें लेकिन यह भी विश्वास रखें कि बिल्कुल दोस्ताना शैली में ये मेरी ओर से श्री अकेलाजी के लिये 100% शुभचिंतकीय सलाह है । अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे लेते-देखते हैं । पुनः क्षमा व धन्यवाद सहित…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
काश सभी इस बारे सोचे ओर ऎसे प्रोगराम ओर चेनल देखना ही बंद कर दे, क्योकि यह चेनल वाले,ओर फ़िल्म वाले कानून के हिसाब से ही चलते हे, इन्हे पता होता हे कि जनता मे से कोई भी कुछ कर सकता हे, इस लिये सब से अच्छा उपाय इन्हे देखे ही नही ,
आप की राय से १००% सहमत हे
सही कह रहे हैं.
zrre ko aaftaab bnane ke liyen shurkiyaa bhaaijaan. akhtar khan akela kota rajsthan