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तलाक़ और दूसरा निक़ाह भी शरीयत के कायदे से ही करें।

समस्या-

यूसुफ ने जयपुर राजस्थान से पूछा है-

मेरा निकाह 2012 में अहमदाबाद में हुआ था। शादी के छह माह बाद ही वह बच्चेदानी का इलाज करवाने के बहाने अपने पिता के साथ अहमदाबाद चली गयी। अब आने से इन्कार कर दिया है और दस लाख की मांग की। फिर मैं ने उसे आने के लिए तीन नोटिस भी दिए मगर उस ने लेने से इनकार कर दिया। बाद में मैं ने 4 फरवरी 2015 को तलाक भिजवा दिया। मगर उस ने तलाक भी नहीं लिया और इद्दत के पैसे भी नहीं लिए। तीन माह बाद मैं ने उसे अपना सामान ले जाने के लिए नोटिस दिया वह भी नहीं लिया। अब मैं दूसरा निकाह करना चाहता हूँ। क्या मैं दूसरा निकाह कर सकता हूँ। मुझे क्या करना होगा?

समाधान-

प ने कायदे से निकाह किया है तो तलाक भी कायदे से ही होना चाहिए। कायदा ये है कि पहला तलाक हो जाने के बाद दोनों पक्षों के प्रतिनिधि आपस में बात करें और समझाइश कराएँ, समझाइश से बात न बने तो तीसरा तलाक भी हो जाए। जिन काजी साहब ने आप का निकाह पढ़ाया था और तब जो वकील आप की बीवी के थे उन से बात की जा सकती है।

खैर, यह तो बात हुई तलाक की। दूसरा निकाह तो आप तलाक के बिना भी पढ़ सकते हैं। उस के लिए यह जरूरी है कि आप की दो बीवियाँ हों तो दोनों के प्रति प्रत्येक व्यवहार में समानता बरतें। जब आप की पहली बीवी साथ रह ही नहीं रही है तो यह तो हो नहीं सकता। दूसरी बात कि पहली बीवी की अनुमति या सहमति हो। वह भी नहीं ली जा सकती। बेहतर है कि आप अपनी बीवी को नोटिस दें कि वह साथ आ कर रहने को तैयार नहीं है और दस लाख रुपए मांगती है जो नाजायज है। इस कारण आप दूसरा निकाह पढ़ने को तैयार हैं, यदि एक हफ्ते में उस का कोई जवाब न मिला तो आप निकाह पढ़ लेंगे। यह नोटिस रजिस्टर्ड डाक से भेजा जा सकता है, बीवी के रहने की जगह अखबार में शाया कराया जा सकता है और दो गवाहों के सामने बीवी के रहने के मकान और पड़ौस के मकानों पर चस्पा किया जा सकता है। ऐसा करने के बाद आप बेशक दूसरा निकाह पढ़ सकते हैं।